कभी गाँवों में लोगों के जीवन का जरूरी हिस्सा तालाब लुप्त होते जा रहे हैं, जबकि भारत सरकार के पास नहीं है इनका कोई आंकड़ा

कभी तालाब ग्रामीण जन जीवन का एक जरूरी हिस्सा हुआ करते थे। पीने के पानी की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ, वे उनके सामाजिक ताने-बाने से भी जुड़े थे। धार्मिक और पेयजल दोनों उद्देश्यों के लिए उनका सम्मान किया जाता था और उन्हें बनाए रखने की हरसंभव कोशिश भी। लेकिन जैसे-जैसे गांवों में हैंडपंप और अब पाइप से पानी आने लगा, ये स्थानीय जल निकाय धीरे-धीरे गायब होने लगे। असंख्य तालाबों पर अतिक्रमण कर लिया गया। जहां पहले तालाब थे, वहां अब इमारतें, घर, खेल के मैदान या कूड़े के ढेर हैं। बढ़ते जल संकट के साथ बदलते परिवेश में गांव के तालाबों का संरक्षण और पुनरुद्धार जरूरी हो गया है।

गाँव कनेक्शनगाँव कनेक्शन   21 April 2022 10:07 AM GMT

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पूरे देश में लू चल रही है और मानसून को अभी करीब दो महीने बाकी हैं। 70 साल के कंधई गौतम अपने गांव के सूखे तालाब के पास बैठे उसे टकटकी लगाए देख रहे थे। जब हमने उनसे गांव के तालाब के बारे में पूछा तो ढेर सारी पुरानी यादें उनके जहन में खलबली मचाने लगीं।

वह याद करते हुए कहते हैं, "गर्मी के महीनों की चिलचिलाती धूप में खेलने के बाद मैं और मेरे दोस्त तालाब के हरे भरे किनारे के पास आराम करने बैठ जाया करते थे।" उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के छेदा गांव में रहने वाले गौतम ने गांव कनेक्शन को बताया, मुझे अब भी तालाब के पास वह सुकून देने वाली ठंडी हवा याद है। तालाब के आसपास खूब हरियाली हुआ करती थी और हर समय वहां फूल खिले रहते थे। हम तितलियों का पीछा करते और "

जिस तालाब की खूबसूरती का जिक्र गौतम कर रहे हैं फिलहाल वहां कचरे का ढेर है। इसके चारों ओर कहीं कोई हरियाली नहीं है। कूड़े और बदबू से पटे तालाब की इस सूखी जमीन को गांव के बच्चे शायद ही कभी देखने आते हों।

उन्होंने कहा, "लोग तालाब के पानी का इस्तेमाल नहीं करते हैं। पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अब उनके पास हैंडपंप और बोरवेल है। अब तो बस इसमें कूड़ा डाला जाता है। तालाब के साथ-साथ हमारे गांव की खूबसूरती भी मर गई।'


तालाब जो कभी देश के ग्रामीण परिदृश्य की खूबसूरती का हिस्सा हुआ करते थे, वे गौतम के छेदा गांव के तालाब की तरह तेजी से गायब हो रहे हैं। उनमें से सैकड़ों हजारों पहले ही दम तोड़ चुके हैं। उनकी सूखी जमीन पर इमारतें, भवन, खेल के मैदान या कूड़े के ढेर खड़े हैं और जो बचे हैं उनकी हालत भी ठीक नहीं है।

इस महीने की शुरुआत में 6 अप्रैल को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की स्वतंत्रता के 75वें वर्ष को यादगार बनाने के लिए देश के प्रत्येक जिले में 75 तालाबों के निर्माण का सुझाव दिया था। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों ने देश को आने वाले दशकों में गंभीर जल संकट और स्थानीय जल निकायों की सुरक्षा की आवश्यकता के बारे में चेतावनी दी है।

पीएम मोदी ने कहा था, "तापमान लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में आने वाले दिनों में पानी की किल्लत की समस्या और विकराल हो सकती है। मैं सभी नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं से श्रमदान करने और अपने क्षेत्रों में अधिक से अधिक तालाबों को बनाए जाने की अपील करता हूं।"

नीति (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) आयोग की जून 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें स्थान पर है और लगभग 70 प्रतिशत पानी दूषित है। कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स रिपोर्ट में कहा गया है कि महत्वपूर्ण भूजल संसाधन देश की जल आपूर्ति का 40 प्रतिशत हिस्सा है और ये तेजी से अपना स्वरूप खोते जा रहे हैं।

2018 की रिपोर्ट में कहा गया, "भारत जल संकट के अपने इतिहास में सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। लाखों लोगों की जान और आजीविका खतरे में है। मौजूदा समय में, 60 करोड़ भारतीय अत्यधिक पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। साफ पानी न मिल पाने की वजह से हर साल लगभग दो लाख लोग मर जाते हैं।"

रिपोर्ट में आगे कहा गया, "संकट बदतर होने वाला है। 2030 तक देश की पानी की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी होने का अनुमान है। जिसका सीधा सा मतलब है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी की गंभीर कमी और देश के सकल घरेलू उत्पाद में 6% का नुकसान।


तालाबों के पुनरुद्धार पर काम कर चुके मेरठ के पर्यावरणविद् रमन कांत त्यागी ने गांव कनेक्शन को बताया, "तालाबों का गायब होना केवल ग्रामीण इलाकों की प्राकृतिक सुंदरता को खोने के बारे में नहीं है। ये जल निकाय भूमिगत जलभर (एक्विफर) को फिर से भरने और पानी को शुद्ध करने का प्राकृतिक तरीका हैं। ये देश में पीने के पानी का प्राथमिक स्रोत हैं।" उन्होंने आगे कहा, "तालाबों के जरिए जमीन में पानी का रिसाव हमारे तेजी से खत्म हो रहे भूजल भंडार को फिर से भरने का एकमात्र तरीका है।"

लुप्त हो रहे तालाब, गुम हुए आंकड़े

तालाब हमेशा से ग्रामीण परिदृश्य का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। लेकिन उसके बावजूद केंद्र सरकार के पास देश में तालाबों की संख्या पर कोई आधिकारिक डेटा नहीं है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने तालाबों को लेकर की गई एक गणना रिपोर्ट को प्रकाशित किया था। उसमें देश भर में लघु सिंचाई गतिविधियों के लिए उपयोग किए जाने वाले तालाबों/ टैंकों की संख्या दर्ज की गई। लेकिन इस गणना में उन तालाबों को छोड़ दिया गया जो गांवों के भीतर बड़ी संख्या में मौजूद हैं और सिंचाई के लिए उपयोग किए भी जा सकते हैं या नहीं भी।

7 फरवरी, 2022 को प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा जारी एक बयान में उल्लेख किया गया था "लघु ​​सिंचाई गणना देश में जल निकायों की संख्या की सीधे गणना नहीं करती है। हालांकि जल निकायों पर डेटा अप्रत्यक्ष रूप से गणना से संकलित किया जाता है, लेकिन यह जानकारी लघु सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने वाले गांवों में जल निकायों की संख्या तक सीमित है।"

दिलचस्प बात यह है कि जहां स्थानीय ग्रामीणों की शिकायत है कि तालाब तेजी से गायब हो रहे हैं, वहीं सरकारी आंकड़े कुछ और ही दिखाते हैं। 2013-14 में आयोजित पांचवीं लघु सिंचाई जनगणना के निष्कर्षों और 2017 में प्रकाशित इसकी रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल 241,715 तालाबों का उपयोग लघु सिंचाई गतिविधियों के लिए किया जाता है।

एक दशक पहले, 2006 में प्रकाशित चौथी जनगणना रिपोर्ट ने देश में कुल 103,878 तालाबों की सूचना दी थी।

राज्यवार आंकड़ों से पता चलता है कि गुजरात ने इन तालाबों की संख्या में सबसे तेज गिरावट दर्ज की है - 2006-07 में 326 से 2013-14 में 13 तक। इसके बाद पश्चिम बंगाल है - 2006 में 30,152 से 2014 में 13,856।


इस बीच, इस साल 7 फरवरी को केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस बयान के अनुसार, भारत में कुल 7,090 जल निकाय अतिक्रमण के कारण अस्तित्व के खतरे का सामना कर रहे हैं। लेकिन, ग्रामीण भारत में तालाबों की कुल संख्या पर कोई व्यापक डेटा नहीं है।

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के छेदा गांव के 70 साल के निवासी कंधई गौतम ने शिकायत की कि अवैध अतिक्रमणों ने जलाशयों को नष्ट कर दिया है। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "जो जगह कभी तालाब की हुआ करती थी, वहां अब लोगों ने अपना घर बना लिया है। 60 साल पहले हमारे गांव में लगभग 27 छोटे और बड़े तालाब हुआ करते थे, लेकिन अब केवल एक ही बचा है। उसमें भी पानी न क बराबर है।"

मेरठ के पर्यावरणविद् त्यागी ने बताया कि तालाबों के अतिक्रमण को कानून प्रवर्तन के तहत लाना मुश्किल है क्योंकि सरकार द्वारा बनाए गए आधिकारिक आंकड़ों में कम रिपोर्टिंग और जमीनी स्थिति आधिकारिक रूप से पंजीकृत की तुलना में कहीं अधिक खराब है।

"हम केवल मनरेगा कार्यों के तहत खोदे गए तालाबों का रिकॉर्ड रखते हैं। ग्राम स्तर पर, पंचायत सचिवों या प्रधानों (ग्राम प्रधानों) को गाँव के तालाबों की सही संख्या और स्थिति को बनाए रखने का काम नहीं दिया जाता है, "उन्नाव के बिछिया ब्लॉक के प्रखंड विकास अधिकारी अमित शुक्ला ने गाँव कनेक्शन को बताया।

लेकिन क्यों गायब हो रहे हैं तालाब?

जो तालाब ग्रामीण जीवन का हिस्सा हुआ करते थे, जो पूजनीय और संरक्षित थे, कैसे और क्यों कम होते चले गए? यह समझने के लिए गाँव कनेक्शन ने मेघ पाइन अभियान के संस्थापक एकलव्य प्रसाद से संपर्क किया। मेघ पाइन एक चैरिटेबल ट्रस्ट है जो जल सुरक्षा और पारंपरिक जल स्रोतों के पुनरुद्धार के मुद्दे पर काम करता है।

प्रसाद ने गाँव कनेक्शन को बताया, "सालों से नीति निर्माताओं का दृष्टिकोण ग्रामीण क्षेत्रों में पीने योग्य पानी के पारंपरिक स्रोतों- कुओं और तालाबों से दूर जाने का रहा है। उनके संदेशों में कहीं न कहीं ये बात छिपी होती है कि तालाब जैसे सदियों पुराने पारंपरिक जल स्रोत अस्वच्छ हैं।"

उन्होंने कहा कि ग्रामीण लोगों तक ये संदेश पहुंचा और उन्होंने इसे सही मान लिया। वे तालाब के पानी को गंदा मानने लगे और सतही जल स्रोतों का उपयोग करने के बजाय भूजल निकालने के लिए हैंडपंप और अन्य तकनीकों की तरफ जाना उन्हें सही लगा।

प्रसाद ने बताया, "धीरे-धीरे ये तालाब बेमानी हो गए और गाँव के लोंगों के मन में इन जल निकायों के लिए जो सम्मान था वो दूर चला गया। इनका अतिक्रमण शुरू हो गया। लोगों ने इन तालाबों में कचरा डालना शुरू कर दिया। इन तालाबों की स्वच्छता और अस्तित्व की गारंटी देने वाली संस्कृति गायब हो गई।"

लखीमपुर खीरी जिले के करुआ गाँव की रहने वाली 40 साल की गरिमा तिवारी ने बताया कि कोई समय था जब गाँव में तालाब के किनारे कितने त्यौहार मनाए जाते थे। तेजी से गायब होते तालाब ग्रामीण संस्कृति के लिए खतरा हैं।


उन्होंने कहा, "हम तिजिया नामक एक त्योहार मनाते हैं जिसमें हम तालाब पर जाकर अपने भाइयों के लिए प्रार्थना करते हैं। पहले हम तालाब के पानी का इस्तेमाल पूजा-पाठ में किया करते थे। लेकिन अब तो इनमें पानी ही काफी कम है और जो है वो इतना गंदा कि उसे पूजा में इस्तेमाल ही नहीं किया जा सकता।"

वह आगे कहती हैं, "हम तालाब पर अनुष्ठान करने के लिए अपने घरों से पानी ले जाते हैं। लेकिन क्या तालाब हमारी अगली पीढ़ी के लिए तिजिया उत्सव मनाने के लिए बचे रह पाएंगे।"

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में तालाबों के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं पर शोध कर रहे एक शोधकर्ता रामबाबू तिवारी ने गाँव कनेक्शन को बताया कि मौजूदा ग्रामीण ढांचे में तालाबों के लिए बहुत कम जगह बची है।

तिवारी ने कहा, "पुराने समय में यह कहा जाता था कि खेत तालाब से पानी पीता है और इंसान कुएं से।"

उन्होंने कहा, "लेकिन अब लगभग हर गांव में सिंचाई और पीने के पानी के लिए नल और बोरवेल लग गए हैं। ऐसे में सिर्फ प्रशासनिक निर्णय लेना और तालाबों के पुनर्जीवित होने की उम्मीद करना बेमानी है। हमें यह महसूस करने की जरूरत है कि ग्रामीण जीवन शैली में अब तालाबों को बनाए रखना संभव नहीं है।"

त्यागी ने तिवारी की चिंताओं को जायज माना और कहा कि तालाबों की संख्या और स्थिति में गिरावट मानव सभ्यता में गिरावट के साथ ही जुड़ी हुई है।

मेरठ स्थित नीर फाउंडेशन के संस्थापक त्यागी ने कहा, "दूर-दराज के इलाकों में बोरवेल और पाइप से पानी की आपूर्ति हमेशा के लिए बनी नहीं रह सकती है। हमें यह समझने की जरूरत है कि भूमिगत भंडार कभी भी खत्म हो सकते हैं। खासकर उन परिस्थितियों में जब इसे प्राकृतिक स्रोतों जैसे तालाबों और अन्य जल निकायों के जरिए रिचार्ज नहीं किया जा रहा है। वह आगे कहते हैं, "हमें एक आमूल-चूल बदलाव की जरूरत है।"


गांव कनेक्शन ने गाँव में तालाबों की वास्तविक स्थिति का आकलन करने के लिए उत्तर प्रदेश के बाराबंकी, सीतापुर, उन्नाव, लखनऊ और मध्य प्रदेश के सतना जिले के कई गांवों का दौरा किया।

सीतापुर के ब्रह्मावली गाँव निवासी चंद्र मोहन त्रिवेदी ने गाँव कनेक्शन को बताया कि अतिक्रमण ही सबसे बड़ा कारण है, जिसने तालाबों में जल स्तर को बनाए रखने वाले पारिस्थितिकी तंत्र को नष्ट कर दिया है।

ग्रेटर नोएडा के 'से अर्थ' नामक गैर-सरकारी संगठन के संस्थापक रामवीर तंवर ने गांव कनेक्शन को बताया, "अवैध अतिक्रमण गांवों में तालाबों के लिए दोहरा खतरा है। तालाब के चारों ओर की जमीन काटने से न सिर्फ तालाब का आकार कम हो रहा है बल्कि यह तालाब के जलग्रहण क्षेत्र को भी बर्बाद कर रहा है। तालाब के अस्तित्व के लिए उसके चारों ओर ढलान प्रकृति की देन है। अतिक्रमण उसे भी नष्ट कर रहा है।" उन्होंने आगे कहा, "खेतों और अन्य कई जगहों से छोटे- छोटे नाले तालाब में आ के मिलते है। बारिश न होने पर भी ये तालाब में पानी की कमी नहीं होने देते हैं।"

तंवर एक तालाब संरक्षणवादी हैं। इनके प्रयासों की सराहना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 24 अक्टूबर को राष्ट्र को संबोधित करते हुए अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात मन में की थी।

तंवर ने बातचीत में यह भी कहा, "शहरों में कचरे को फेंकने और उसके प्रबंधन के काफी तरीके हैं लेकिन हमारे देश के गांवों में कचरा प्रबंधन जैसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में स्थानीय तालाब जिसका पानी वैसे ही कई कारणों से प्रदूषित हो चुका है, ग्रामीणों के लिए आदर्श डंपिंग ग्राउंड बन जाता है।"

पर्यावरण संरक्षणवादी ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि सालों पहले गांव से जो कचरा निकलता था उसकी तुलना में आज पैदा होने वाला कचरा बिल्कुल अलग है।


तालाब संरक्षणविद् इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहते हैं," गांव के घरों से अब पहले की तरह जैविक कचरा नहीं निकलता है। शहरों की तरह अब प्लास्टिक और पॉलिथीन रूपी कचरे ने ग्रामीण परिदृश्य को पूरी तरह प्रदूषित कर दिया है। यह सारा कचरा तालाबों में डाला जा रहा है। यह सब तालाबों में या जो कुछ बचा है उसमें डाल दिया जाता है। आप समझ सकते हैं कि ग्रामीण इलाकों में तालाबों के फलने फूलने के की कोई वजह ही नहीं बची है।"

तिवारी इस बारे में बताते हुए कहते हैं,"अवैध अतिक्रमण और बेलगाम निर्माण कार्य की वजह से अब बरसात के मौसम में भयानक बाढ़ भी आ जाती है। जब तक गांव में तालाब थे तब तक ऐसा नहीं होता था। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि निर्माण कार्य के कारण पानी की निकासी के सभी रास्ते बाधित हो गए और बारिश का पानी तालाब तक जा ही नहीं पाता।"

तालाबों का कायाकल्प

पर्यावरण के लिए काम करने वाले एक मुंबई के एक गैर सरकारी संगठन ग्रीन यात्रा के संस्थापक प्रदीप त्रिपाठी ने कहा कि भारत के जल संकट को हल करने के प्रयासों में तालाबों का कायाकल्प किया जाना जरूरी है।

ग्रामीण जल निकायों को पुनर्जीवित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार की कई योजनाएं शुरू की गई हैं। हाल ही में 5 अप्रैल को उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने एक आधिकारिक प्रेस बयान में यह उल्लेख किया गया था कि सरकार ने 'गायब हो चुके कुओं को पुनर्जीवित करने और उन्हें रिचार्जिंग कुओं में बदलने की योजना बनाई है। इसके साथ ही उन्होंने तालाबों को नया जीवन देने और उनके किनारों पर ग्राम वन लगाए जाने की भी बात कही

दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सामाजिक कार्यकर्ताओं और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) अप्रैल महीने को 'जल उत्सव' के तौर पर मनाने का फैसला किया है। महीने भर चलने वाले इस उत्सव के दौरान लगभग 2000 तालाबों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाएगा. इसका मकसद गोमती नदी के लगातार गिरते जलस्तर को रोकना है।

उधर गाजियाबाद नगर निगम भी मानसून के मौसम की शुरुआत से 28 तालाबों को पुनर्जीवित करने की कवायदों में जुटा है। अधिकारियों ने प्रेस को बताया कि जिन 41 जलाशयों की पहचान की गई है, उनमें से 38 का कायाकल्प किया जा सकता है। बाकी तालाबों का पिछले कई दशकों से अतिक्रमण के चलते अस्तित्व ही नहीं बचा है।


गाज़ियाबाद के नगर आयुक्त एमएस तंवर ने कहा था, " जल निकायों का कायाकल्प हमें सीधे तौर पर पेयजल स्रोत प्राप्त करने में मदद नहीं कर सकता है, लेकिन यह निश्चित रूप से भूजल संसाधनों के पुनर्भरण में हमारी मदद करेगा। 10 जल निकायों के कायाकल्प का काम पूरा हो गया है। हमने आठ को मत्स्य विभाग को सौंप दिया है ताकि उन्हें स्वच्छ बनाया रखा जा सके।"

इसके अलावा, 2020 में उत्तर प्रदेश के झांसी में महात्मा गांधी ग्रामीण गारंटी योजना (MGNREGS) के तहत कुल 406 जल निकायों को पुनर्जीवित करने की सूचना मिली थी।

इसके अलावा डाउन साउथ में भी ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जा रहा है ताकि केरल के जिलों में भूमिगत जल के गिरते स्तर को ऊपर उठाया जा सके।

इन तालाबों को पुनर्जीवित करने और नए तालाबों की खुदाई के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों के बारे में पूछे जाने पर, मेघ पायने अभियान के संस्थापक ने बताया कि यहां पुनरुद्धार के काम को सामाजिक ताने-बाने से दूर रखा गया है, जो ग्रामीण लोगों को तालाबों के संरक्षण से जोड़ता है।

प्रसाद ने कहा, "सरकार के प्रयास से तालाब बन सकता है, लेकिन इसके रखरखाव की गारंटी समुदाय के समर्थन के बिना नहीं दी जा सकती है।" वह आगे कहते हैं, "पुरानी पीढ़ी का जुड़ाव उन मूल्यों के साथ था जो तालाब के साथ-साथ उसके जलग्रहण क्षेत्र को भी पवित्र बनाए रखते थे। धीरे-धीरे ये सब कम होता चला गया। वर्तमान पीढ़ियों में तो इसका अभाव है। जबिक ये तालाबों के अस्तित्व के लिए बेहद जरूरी है।"

जिस तरह से तालाबों को पुनर्जीवित किया जा रहा है, उससे ब्रह्मावली गांव के चंद्र मोहन त्रिवेदी खुश नहीं हैं। वह कहते हैं, "जब भी कोई तालाब बनाने या पुनर्जीवित करने का सरकारी प्रयास होता है, तो वे केवल तालाब के चारों सजावटी पौधे ओर फूल लगा देते हैं। बोरिंग के पानी से तलाबों को भर दिया जाता है। यह सब एक गुलाबी तस्वीर पेश करता है। ऐसे तालाब लंबे समय तक नहीं बने रह पाते"

वह बताते है, "ऐसा इसलिए है क्योंकि तालाब को बनाए रखने के लिए व्यावहारिक तौर पर कोई प्रयास नहीं किए जाते हैं। जो कि तालाब के जल स्तर को फिर से भरने के लिए महत्वपूर्ण है। यह पूरा सौंदर्यीकरण सर्कस कुछ दिन चलता है और कुछ महीनों के बाद तालाब फिर से सूख जाता है, " उन्होंने कहा, "तालाबों के आसपास अवैध अतिक्रमणों की जांच करने की आवश्यकता है, जिन्होंने इन ग्रामीण जल निकायों की रिचार्जिंग क्षमता को बाधित किया है।"

प्रत्यक्ष श्रीवास्तव ने यह खबर बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) में वीरेंद्र सिंह, सतना (मध्य प्रदेश) में सचिन तुलसा त्रिपाठी, उन्नाव (उत्तर प्रदेश) में सुमित यादव और सीतापुर (उत्तर प्रदेश) में रामजी मिश्रा के इनपुट के साथ लिखी।

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