उत्तराखंड का त्रियुगीनारायण मंदिर: जहां पर लगता है हरियाली मेला

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रोबिन सिंह चौहान, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

रुद्रप्रयाग(उत्तराखंड)। कई दिन पहले से यहां पर हरियाली की तैयारी शुरू हो जाती है, प्रकृति, पर्यावरण से जुड़े इस त्योहार में लोग दूर-दूर से इकट्ठा होते हैं।

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहीं पर शिव-पार्वती का विवाह हुआ था। इसी विष्णु के मंदिर के इस परिसर में ही हरियाली मेले का आयोजन होता है। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा व पौराणिक रीति-रिवाजों के साथ भगवान विष्णु को पूजा-अर्चना के बाद जौ की हरियाली अर्पित करती हैं। बाद में यह हरियाली गांव के साथ ही वामन द्वादशी मेले में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है।


तीर्थ पुरोहित समिति के अध्यक्ष भक्तदर्शन सेमवाल बताते हैं, "भगवान नारायण का ये मंदिर है, पूरे देश में ऐसा मेले का आयोजन नहीं होता है। महिलाएं हरियाली को भगवान को चढ़ाती हैं और फिर उसे एक-दूसरे के घरों में बांटती हैं।"

त्रियुगनारायण मंदिर में प्रत्येक वर्ष क्षेत्र की खुशहाली व विश्व कल्याण के लिए हरियाली मेले का आयोजन किया जाता है। ये पौराणिक परंपरा अपने पर्यावरण को बचाने का भी संदेश देती है।एक सपताह पूर्व से ग्रामीण अपने-अपने घरों में जौ की हरियाली उगाने का कार्यक्रम शुरू करते हैं। सभी ग्रामीण अपने घरों से हरियाली लाकर त्रियुगीनारायण मंदिर परिसर में एकत्रित होते हैं। वैदिक मंत्रोच्चारण और पूजा अर्चना के साथ महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा व पौराणिक रीति-रिवाजों अनुसार पहले भगवान विष्णु को हरियाली को अर्पित करती हैं। गांव में प्रत्येक घर में बांटने के साथ ही बावन द्ववादशी मेले के समापन अवसर पर भक्तों को प्रसाद के रुप में वितरित करने की परम्परा है। वामन द्वादशी मेले से पहले हरियाली मेला मनाने की परंपरा भी लंबे समय से चली आ रही है। यह मेला क्षेत्र की खुशहाली के लिए मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी मंदिर में शिव और पार्वती का विवाह हुआ था।


यहां के स्थानीय निवासी कहते हैं, "देखिए ये पौराणिक हरियाली मेला है जो पूरे भारतवर्ष में और कहीं नहीं होता है, पूरे गाँव की महिलाएं एक हफ्ते पहले से जौ की हरियाली लगाती हैं और उसे अर्पित करती हैं। इस मेले से लोगों को बेहतरीन संदेश मिलता है। इसमें भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा होती हैं।

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