अठारहवीं सदी की लाइब्रेरी को सुरक्षित और डिजिटल बनाएगी सरकार

इस लाइब्रेरी में आज भी मौजूद है चार सौ साल से अधिक पुरानी पुस्तकें,

Ashwani Kumar DwivediAshwani Kumar Dwivedi   24 Dec 2019 7:03 AM GMT

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लखनऊ। जब लखनऊ का नाम ज़ेहन में आता है तो रूमी गेट, बड़ा इमामबाड़ा का चित्र सबसे पहले दिमाग में आता है। आज आप को रूबरू कराने जा रहे हैं, लखनऊ की ऐसी विरासत से जो सदियों से लखनऊ के इतिहास का एक अहम हिस्सा है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ हमेशा से अपने नवाबी अंदाज के लिए जानी जाती रही है। कभी तहजीब और अदब के लिए मशहूर लखनऊ में अब पहले वाली बात भले न रह गयी हो लेकिन लखनऊ की विरासते आज भी अदब, गंगा-जमुनी तहजीब और "पहले आप" के एहसास को जिन्दा बनाये हुए है।

लखनऊ के इसी समृद्ध इतिहास का एक हिस्सा है, लखनऊ की ऐतिहासिक अमीरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी, लाइब्रेरी से सम्बंधित अभिलेखों के अनुसार इसकी की स्थापना ब्रिटिश सरकार में 18वीं सदी में प्रोविंशियल म्यूजियम के एक हिस्से के रूप में हुई थी। और इस पब्लिक लाइब्रेरी को इंडियन-ब्रिटिश छात्रों और पुस्तक प्रेमियों खोल दिया गया। 19वी सदी के आरम्भ में इस पब्लिक लाइब्रेरी को अपनी जगह से हटना पड़ा और इसका नया पड़ाव बना लखनऊ का मशहूर लाल बारादरी भवन जिसकी ऊपरी मंजिल पर इसकी स्थापना की गयी। प्रोविंशियल म्यूजियम से अलग होने के बाद इसे पब्लिक लाइब्रेरी का नाम दे दिया गया और उस समय के छात्रों और पुस्तक प्रेमियों के लिए ये पब्लिक लाइब्रेरी बैठक का एक नया अड्डा बन गयी। कलम-किताब से प्रेम करने वाले लोगों का जमावाड़ा यहा शुरू हो गया।



कैसे प्रोविंशियल म्यूजियम का हिस्सा बनी, आमिर-उद-दौला पब्लिक लाइब्रेरी

लाल बारादरी से इस पब्लिक लाइब्रेरी को तीन साल बाद ही हटना पड़ा और लखनऊ की छतर मंजिल भवन इसका नया ठिकाना बनी। लेकिन इस लाइब्रेरी का सफ़र अभी खत्म नहीं हुआ था। साल 1925 में ब्रिटिश सरकार और उस समय की संस्था ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन मध्य हुए समझौते के बाद इस लाइब्रेरी को कैसरबाग चौराहे के पास बने भवन में स्थापित किया गया। तत्कालीन अवध के यूनाइटेड प्रोविंशियल आफ आगरा एंड अवध के गवर्नर सर विलियम मैरिस ने इस लाइब्रेरी का उद्घाटन किया। और इसका नाम ब्रिटिश इंडिया एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन और महमूदाबाद के राजा के नाम पर " आमिर-उद-दौला पब्लिक लाइब्रेरी रखा गया और इसे तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार के सुपुर्द कर दिया गया। आजादी के साल 1947 "अवध तालुकेदार्स एसोसिएशन ने इस लाइब्रेरी के सामने पड़ी खाली जमींन को लाइब्रेरी के पार्क के लिए दान कर दिया। आजादी के बाद साल 1977 इस लाइब्रेरी को सोसाइटी एक्ट 1860 के तहत पंजीकृत करा दिया गया और इसका अध्यक्ष मंडलायुक्त लखनऊ हैं।


लाइब्रेरी की धरोहर ...

आमिर-उद-दौला लाइब्रेरी के इंचार्ज हरीश चन्द्र बताते हैं, "वर्तमान समय में लाइब्रेरी में एक लाख साठ हजार से ज्यादा पुस्तकों का विशाल संग्रह है, जिनमें संस्कृत, उर्दू, फ़ारसी बांग्ला भाषा में दुर्लभ व् ऐतिहासिक महत्व की उत्कृष्ट पुस्तकें मौजूद हैं। इनमें से बहुत सी पुस्तकें हस्तलिखित, भोजपत्र, ताड़पत्र पर लिखी हुई है और चार सौ साल से अधिक पुरानी हैं।"

वो आगे बताते है," तीन मंजिला इमारत में बसी इस लाइब्रेरी में पहली मंजिल पर मुंशी नवल किशोर कक्ष, बालकक्ष, हिंदी कक्ष, अंग्रेजी कक्ष, उर्दू कक्ष, कम्टीशन कक्ष, रीडिंग हाल, पांडुलिपि कक्ष बना है। दूसरे और तीसरी मंजिल पर संदर्भ कक्ष है, जिसमें संदर्भ संबंधी पुस्तकें मौजूद है। जैसे- डिक्शनरी, इनसाक्लोपीडिया , ईयर बुक, गजट, गजेटियर, तथा पुरानी पत्र-पत्रिकाओं के संग्रह मौजूद हैं।"

कम्पीटीशन छात्रों के लिए उपयोगी है लाइब्रेरी

लाइब्रेरी के इंचार्ज हरीश चन्द्र ने बताया कि लाइब्रेरी में आने वाले लोगों में ज्यादा संख्या प्रतियोगी परीक्षाओं के छात्रो की है जिनके लिए यहाँ पर अलग से कक्ष बनाया गया है और साथ में इंटर नेट की भी सुविधा उपलब्ध है । वो आगे बताते है कि वर्तमान समय में यहाँ सिविल सर्विसेज, बैंकिंग ,न्यायायिक सेवा आदि से जुड़े विद्यार्थी ज्यादा आते है और साथ में साहित्य और पुस्तक प्रेमीयों की आमद भी अच्छी हैं।

वो आगे बताते है कि लाइब्रेरी में आने के लिए को भी व्यक्ति केवल तीन सौ रूपये जमा करके आजीवन सदस्यता ले सकता है और लाइब्रेरी आकर पुस्तकों को पढ़ सकता है। अगर कोई पाठक पुस्तकों को घर ले जाकर पढना चाहता है तो उसे पांच सौ रूपये सिक्योरिटी राशि और ढाई सौ रूपये वार्षिक शुल्क जमा कराकर ये सुविधा दे दी जाती है।

नारी शिक्षा निकेतन पीजी कालेज की पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और वर्तमान में पुलिस सेवा में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही प्राची बताती हैं, "कुछ समय तक मै अमीरुद्दौला पब्लिक लाइब्रेरी की सदस्य रही हूं, सही मायनों में ये लाइब्रेरी उन छात्र -छात्राओं के लिए वरदान जैसी है जो आर्थिक रूप से कमजोर है। चाहे वो शहरी हो या लखनऊ के ग्रामीण क्षेत्र के छात्र हो। लेकिन अधिकांश छात्रों को इसके बारे में पता नही होता अगर सिर्फ सरकारी और सरकार के द्वारा ग्रांट प्राप्त लखनऊ के स्कूल, कालेज अपने छात्रों को मौखिक या परिसर में कोई बोर्ड लगाकर लाइब्रेरी के बारे में सूचित करते रहें तो लखनऊ के विद्यार्थियों को इसका लाभ जरुर मिल सकता है और ये लाइब्रेरी बड़े बदलाव ला सकती है। क्योकि लाइब्रेरी के संग्रह में वह सब मौजूद है जिसकी जरुरत छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान पड़ती है।"

लाइब्रेरी में बड़े बदलाव की तैयारी में सरकार ...


लखनऊ के मंडलायुक्त मुकेश मेश्राम ने बताया, "लाइब्रेरी में पुस्तकों का दुर्लभ भंडार मौजूद है, जिसका उपयोग सही से नही हो पा रहा है। जैसे-जैसे डिजिटल युग आया है युवाओं ने अपना समय व्हाट्सएप, और फेसबुक पर लगाना शुरू कर दिया है। पुस्तकों से नई पीढ़ी का लगाव समाप्त होता जा रहा हैं। इसके लिए ये जरुरी है कि नये सिरे से लाइब्रेरी को सुसज्जित किया जाए, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत लाइब्रेर्री का रिनोवेशन, लाइटिंग आदि बदलाव किये जायेंगे साथ ही लाइब्रेरी के संग्रह में मौजूद दुर्लभ ग्रंथों, पुस्तकों को सुरक्षित रखने के लिए तकनीक का इस्तेमाल किया जायेगा। इसके लिए इंटेक जैसी संस्थाओं को सलग्न किया जा रहा हैं। प्रतियोगी छात्रों के लिए अलग से वातानुकिलित स्पेस स्थापित किया जायेगा ताकि छात्र वहां शकून से पढाई कर सके। शोध करने वाले छात्र -छात्राओं को भी सुविधाए प्रदान की जाएँगी साथ ही ऐसे प्रयास किये जायेंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों की आमद लाइब्रेरी में बढ़े और और नई पीढ़ी को इस विरासत का लाभ मिल सकें।"

     

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