वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध में संत समाज ने उतारा प्रत्याशी

गाँव कनेक्शनगाँव कनेक्शन   25 April 2019 10:45 AM GMT

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अमल श्रीवास्तव

कम्युनिटी जर्नलिस्ट

वाराणसी। आखिरकार तमाम जद्दोजहद के बाद अखिल भारतीय राम राज्य परिषद ने सनातम धर्म की रक्षा, गो ह्त्या रोकने और गंगा निर्मलीकरण के सवाल पर Loksabha Election 2019 के इस चुनावी मैदान में ताल ठोंक ही दिया। 21 अप्रैल को हुए संत सम्मलेन की मैराथन बैठक के बाद काशी सहित आसपास के जुटे तमाम विद्वानों ने अखिल भारतीय रामराज्य परिषद ने प्रत्याशी श्री भगवान वेदान्ताचार्य को नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से मैदान में उतारा है। श्री भगवान वेदान्ताचार्य अखिल भारतीय सन्त परिषद के राष्ट्रीय संयोजक होने के साथ-साथ साकेत धाम पीठ के महंत भी हैं जो मध्यप्रदेश में है।

वाराणसी संसदीय सीट पर मुकाबला दिलचस्प होता जा रहा है। पहले ही इस सीट पर पूर्व जज, पूर्व सैनिक सहित आधे दर्जन प्रत्याशियों ने दावा ठोंक रखा है, तो वही अब संत समाज ने पीएम मोदी के खिलाफ अपने प्रत्याशी को उतारकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। संतों ने श्री भगवान वेदान्ताचार्य को अपना उम्मीदवार घोषित किया है।

इनके चुनाव कार्यक्रम के संयोजक व श्रीकाशी विद्या मठ के संचालक व जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद मोदी सरकार के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहते हैं "संतों के सामने बहुत बड़ी मजबूरी आ गयी। संतों को राष्ट्रीय दलों से अपेक्षा थी कि यह हमारी समस्याओं का निराकरण करेंगे। कांग्रेस पार्टी लम्बे समय से देश में राज कर रही थी लेकिन हिंदुओं की उपेक्षा कर एक समूह विशेष को उन्होंने श्रय देना शुरू कर दिया जिसके बाद लोगों के मन मे यह पीड़ा हो गयी कि ये हमारी बात नहीं सुनते और दूसरे लोगों की बात मानते हैं। उसके बाद सनातनधर्मियों ने उनका बहिष्कार करने का काम शुरू कर दिया।"

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वे आगे कहते हैं "इसके बाद बीजेपी आयी और उसने हिंदुओं की बात की और हिन्दू राष्ट्र बनाने पर बल दिया तो लोगों ने उनको समर्थन देना शुरू किया। पांच साल स्व. अटल बिहारी के नेतृत्व में सरकार बनाया इन्होंने और कहा कि हम बहुमत में नहीं हैं इसलिए आपकी मांग पूरी नहीं कर सकते। फिर नरेंद्र मोदी आये और लोगों ने बहुमत की सरकार बनवा दी, लेकिन इस सरकार में भी कुछ नहीं हुआ। हमारी गाय कट रही है, राम लला आज भी कैद हैं और इन लोगों ने इन पर अंकुश लगाने की बजाय इसे और बढ़ावा दिया। तब संतों को लगा कि अब हमारी बात सुनने वाला कोई नहीं। इस सरकार को हमने विद्वत सम्मेलन के बाद अल्टीमेटम दिया है कि काशी में जो मंदिर टूटे हैं इसको लेकर नरेंद्र मोदी क्षमा मांगें और कहें कि जो मंदिर टूट गए हैं इसको हम फिर से बनाएंगे तो हम लोग चुनाव से पीछे हठ जाएंगे।"


वहीं संतों की ओर से उम्मीदवार बनाये गये भगवान वेदान्ताचार्य कहते हैं "मैं साकेत धाम पीठ से महंत हूं जो मध्यप्रदेश में पड़ता है। मुझे बड़ा गौरव हो रहा कि पहले व्यक्ति का केवल इलेक्शन होता था लेकिन मेरा पहले सेलेक्शन हुआ है। विद्वत सम्मेलन में संत समाज ने जो हम पर विश्वास जताया है सबसे पहले हमारी जीत तो यही है कि हमारे सौ करोड़ जो हिन्दू भाई हैं उनकी जो भावना है उस पर चलकर सनातन धर्म का विस्तार करने का अवसर मिला है। कारण स्पष्ट है कि जो वर्तमान सरकार है उसने गंगा की स्थिति है जिसके बारे में सबको पता है। साथ ही हमारे मंदिरों पर छेनी और हथौड़ी चलाने का काम हुआ जो दर्दनाक है। इससे संत समाज आहत है। इसलिए अखिल भारतीय संत परिषद का यह निर्णय है कि हमें जो विकल्प चाहिए वह संत समाज ही दे सकता है। हम 29 अप्रैल को संत समाज के साथ नामांकन करेंगे।"

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वे आगे कहते हैं कि सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार है जिसे लेकर हम लोगों के बीच जाएंगे क्योंकि यह होगा तो सब होगा। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हर साल ढाई लाख विद्यार्थी निकलते हैं लेकिन ये सरकार उन्हें रोजगार नहीं दे पा रही है। रही बात जीत कर किसी दल को समर्थन देने की तो हम किसी को समर्थन नहीं देंगे। सभी पार्टियों का इसमें विलय हो सकता है। इस पार्टी का विलय किसी पार्टी में नही होगा।

बताते चले कि वर्षों पूर्व स्वर्गीय इंदिरा गांधी के खिलाफ प्रख्यात विद्वान करपात्रीजी महाराज ने इस दल की स्थापना सन 1948 में की थी। इस दल ने सन 1952 के प्रथम लोकसभा चुनाव में 3 सीटें प्राप्त की थी। सन 1952, 1957 एवं 1962 के विधान सभा चुनावों में हिन्दी क्षेत्रों (मुख्यत: राजस्थान) में इस दल ने दर्जनों सीटें हासिल की थीं।

  

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