कई महीनों की मेहनत और रूपरानी की 2.5 बीघा गेहूं की फसल कुछ मिनट में ही जल कर राख हो गई

पूरे देश में हीट वेव के कारण खड़ी फसलों में आग लगने की समस्याएं सामने आ रही हैं। उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के माझरा गाँव में 18 अप्रैल को भीषण आग लगने के कारण 40 हेक्टेयर गेहूं जलकर खाक हो गया। किसानों ने फायर ब्रिगेड विभाग पर देरी करने का आरोप लगाया है, जिसके नतीजे में फायर ब्रिगेड की पुरानी गाड़ियां, लोगों की कमी और खराब सड़कों पर सवालिया निशान उठाते हैं।

Sumit YadavSumit Yadav   29 April 2022 1:17 PM GMT

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माझरा (उन्नाव), उत्तर प्रदेश। 48 वर्षीय रूपरानी और उनके परिवार के सदस्यों को गेहूं की फसल उगाने में महीनों का समय और मेहनत लगी। उनकी फसल अभी कटाई के लिए तैयार ही हुई थी। लेकिन 18 अप्रैल को उनकी 2.5 बीघा की फसल चंद मिंटों में जल कर राख हो गई। रूपरानी उस राख को देखती रह गईं, जहां कभी 2.5 बीघा गेहूं की फसल लहलहा रही थी।

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के माझरा गाँव के रूपरानी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमने फसल उगाने में लगभग बीस हजार रुपये खर्च किए और मेरे घर के लोगों ने अच्छी फसल की उम्मीद में काफी मेहनत की थी। अब सब खत्म हो गया ।" उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा, "अच्छी फसल की हमारी उम्मीदें राख में बदल गई हैं, मेरे गेहूं का एक भी दाना नहीं बचा है, सब कुछ जल गया है।"

सिर्फ गेहूं की फसल ही जल कर राख नहीं हुई, बल्कि इसके साथ ही रूपरानी के हार्वेस्टर का इंजन, धूप में सुखाने के लिए डाले गए सर्दियों के बिस्तर, अनाज को स्टोर करने के लिए कृषि क्षेत्रों में बनाए गए खलिहान को भी नुकसान हुआ। इनकी कमाई का एकमात्र जरिया खेती ही है।

रूपरानी की 2.5 बीघा गेहूं की फसल आग में तबाह हो गई।

खेतों में खड़ी फसलों में आग लगने की खबरें उत्तर प्रदेश के चंदौली और पंजाब के फरीदकोट से भी आ रही हैं।

देश भर में भीषण लू चल रही है, कई स्थानों पर तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर है। कहीं-कहीं तो पारा 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया है। ऐसे भीषण गर्म मौसम में फसलों में आग लगने की संभावना भी बढ़ जाती है और हर साल, रबी फसल के मौसम के दौरान, कई किसानों को भारी नुकसान होता है।

उत्तर प्रदेश में मार्च और जून के बीच के महीनों में आग की घटनाएं बड़े पैमाने पर होती हैं। लखनऊ में राज्य के अग्निशमन सेवा नियंत्रण कक्ष के अनुसार, राज्य भर में प्रतिदिन औसतन 1,500 आग से संबंधित घटनाएं होती हैं और अधिकांश मामलों में फसल में आग लगना शामिल है, जैसा कि रूपरानी की जमीन के खेत के साथ हुआ था।

फसल में आग लगने के सबसे आम कारण टूटे हुए बिजली के तार, नग्न बिजली की आपूर्ति के तार, ट्रैक्टरों से चिंगारी, चूल्हे से आग, लापरवाह धूम्रपान और आतिशबाजी हैं और जिन किसानों की आजीविका इन्हीं फसलों पर निर्भर करती है, उन्हें इसका हर्जाना भुगतना पड़ता है।

रूपरानी के 23 वर्षीय बेटे पवन ने उदासी के साथ गाँव कनेक्शन को बताया, "हम लोग भी अब दूसरे किसानों के खेतों में मजदूरी करेंगे, क्योंकि इसके अलावा अब हमारे पास कोई विकल्प नहीं है।

पवन ने बताया कि हमारे परिवार को इस बार गेहूं की फसल का काफी इंतजार था क्योंकि रूस यूक्रेन युद्ध की वजह से गेहूं की बढ़ गई है और गेहूं एमएसपी से ऊपर बिक रहा है। पवन ने कहा, हमारे जैसे बदकिस्मत किसानों को नुकसान की भरपाई अब अगली फसल में खेतों में मजदूरी करनी पड़ेगी।

इसी बीच, पिछले महीने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आकस्मिक आग से गेहूं की फसल को नुकसान से बचाने के लिए व्यवस्था की और उन किसानों को भी राहत देने का आदेश दिया जो फसल बीमा योजना के तहत कवर नहीं किए गए हैं।


'फायर ब्रिगेड के देरी करने की वजह से हमारी फसल बर्बाद हुई'

उन्नाव के माझरा में 18 अप्रैल को गांव की सीमा से दूर एक जंगल में एक छोटी सी आग लगी थी। लेकिन कुछ ही समय में यह आग शोले में बदल गयी और लगभग 40 हेक्टेयर खेत को अपनी चपेट में ले लिया - जिनमें से अधिकांश फसल कटने के लिए तैयार थी। ये खेत गांव के 20 किसान परिवारों के थे, जिनमें से सभी की रबी की पूरी फसल बर्बाद हो गई है।

माझरा गाँव के 32 वर्षीय किसान अनिरुद्ध कुमार आकस्मिक आग पर सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वालों में से थे, जिसके कारण का अभी पता नहीं चल पाया है।

कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "जैसे ही हमने अपने गाँव के पास के जंगलों में एक छोटी सी आग के बारे में सुना, हम हरकत में आ गए। पास की पुलिस चौकी के कुछ पुलिसकर्मी भी हमारे खेतों में पहुंचे, लेकिन हम दमकल के बिना आग पर काबू नहीं पा सके।"

32 वर्षीय किसान ने कहा, "मेरे पास पांच बीघा खेती की जमीन है। मैंने इस पर गेहूं की बुवाई की थी। अपनी जमीन पर खेती करने के लिए मुझे 35,000 रुपये खर्च करने पड़े। मेरा सब बर्बाद हो गया है।"

कुमार की आवाज़ में गुस्सा था क्योंकि उन्होंने उत्तर प्रदेश अग्निशमन सेवा की मदद मांगी थी। फायर ब्रिगेड विभाग की तरफ से तुरंत जवाब मिलने में विफलता को अपने नुकसान का जिम्मेदार ठहराया।


"हमने आग बुझाने के लिए अग्निशमन विभाग को कॉल किया था क्योंकि यह बाल्टी और पानी के पाइप के जरिए इसे बुझाया नहीं जा सकता था। दमकल की गाड़ी लगभग आ गई।

कुमार के 40 वर्षीय पड़ोसी राम किशोर ने कहा कि अगर दमकल की गाड़ी समय पर पहुंच जाती तो हमें इतना नुकसान नहीं होता। किशोर ने अफसोस करते हुए कहा, "पिछले साल, मुझे बाढ़ की वजह से नुकसान हुआ था और इस साल मेरे गेहूं की अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद थी। लेकिन खेत में आग की लगने की वजह से परिवार के जीवन यापन के लिए अब मजदूरी करनी पड़ेगी।

अपने बचाव में, स्थानीय पुलिस कर्मियों ने कहा कि उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। कोल्हुहगड़ा पुलिस चौकी के प्रभारी अरविंद सिंह रघुवंशी ने गांव कनेक्शन को बताया, "हम तुरंत माझरा के लिए निकल गए। हमने आग पर काबू पाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उस दिन हवा चल रही थी और आग इतनी तेजी से फैली कि हम इसे काबू नहीं कर पाए।"

रघुवंशी ने कहा, "जब तक दमकल पहुंची, तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था। कुछ भी मदद नहीं मिली और आग ने एक बड़े क्षेत्र को अपनी चपेट में ले लिया।"

'पुरानी गाड़ियां, खराब सड़कें, खाली पद, समय पर कार्रवाई में बाधक हैं'

जब गाँव कनेक्शन ने अधिकारियों से पूछा कि दमकल विभाग को उन्नाव के माझरा पहुंचने में इतना समय क्यों लगा, तो अधिकारियों ने कई चुनौतियों का हवाला दिया।

18 अप्रैल को माझरा (फायर स्टेशन से 35 किलोमीटर) भेजे गए दमकल के चालक मनोज तिवारी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि जैसे ही हमें आग लगने की घटना के बारे में फोन आता है, हम कार्रवाई में कूद जाते हैं। हमने इस तरह के संकट के समय में जवाब देने में देरी नहीं की है। लेकिन आपको यह समझने की जरूरत है कि यातायात और सड़कें ऐसी हैं कि दूरी तय करने में लगभग पैंतालीस से पचास मिनट लगते हैं।"

उन्होंने कहा, "गाँव पक्की सड़क से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दमकल एक भारी मशीन है और कच्ची सड़क पर चलने में समय लेती है। "उन्होंने एक दूसरी वजह बताई कि दमकल की गाड़ी 30 साल पुरानी है। उन्होंने बताया, "हम जिस दमकल गाड़ी को माझरा गांव ले गए थे, उसे 1992 में सेवा में लायी गई थी। आप ऐसी पुरानी मशीनरी को चलाने की चुनौतियों का अंदाजा लगा सकते हैं।"

दमकल विभाग के अधिकारियों ने कहा कि फसल में आग लगना एक अनोखी चुनौती है। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर गाँव कनेक्शन को बताया। "एक आवासीय भवन या एक कारखाने में एक शहरी सेटिंग में आग पर काबू पाना फसल की आग की तुलना में काफी आसान है। एक फसल की आग ज़ोर से जलती है और सीमित नहीं होती है। साथ ही ऐसी भीषण गर्मी में एक पकी हुई फसल ईंधन के समान होती है।"

अधिकारी ने कहा, "फसल में लगी आग को बुझाने के दौरान अक्सर दमकल की गाड़ियों को चलना पड़ता है, क्योंकि आग तेजी से फैलती है। यह एक समस्या है क्योंकि हमारा इंजन गति में होने पर पानी के जेट को शूट करने के लिए मुनासिब नहीं है।" उन्होंने कहा, "हमें पानी के आपूर्ति की बहुत ज्यादा जरूरत है और गर्मी के महीनों में, गाँवों में तालाब और कुएं अक्सर सूख जाते हैं।"


इस बीच, उन्नाव में जिला अग्निशमन अधिकारी ने गांव कनेक्शन को सूचित किया कि जिले में केवल पांच दमकल केंद्र हैं, जिनकी आबादी 3,108,367 है।

शिवदरश प्रसाद, जिला दमकल अधिकारी ने गाँव कनेक्शन को बताया, "ये दमकल केंद्र सदर, बीघापुर, पूर्वी हसनगंज, बांगरमऊ में स्थित हैं और सफीपुर में एक अस्थायी फायर स्टेशन है। जिले के पूरे दमकल विभाग में कुल दस दमकल गाड़ियां और एक अग्निशमन मोटरसाइकिल है।"

अधिकारी ने कहा कि कम जनशक्ति का भी सवाल है।

उन्नाव जिले में अग्निशमन विभाग के एक शीर्ष अधिकारी ने गांव कनेक्शन को बताया, "कागजों पर जिले में दमकल अधिकारी के पांच पद हैं, लेकिन केवल एक ही अधिकारी पद पर है। दूसरे दर्जे के अधिकारी के पदों के लिए छह अधिकारी होने चाहिए, लेकिन केवल दो नियुक्त हैं।" उन्होंने कहा, "अग्रणी फायरमैन के पद के लिए, 15 पद हैं, लेकिन केवल सात पद भरे हुए हैं। ड्राइवरों के लिए चौदह पद हैं लेकिन वास्तव में केवल नौ ड्राइवर नियुक्त हैं।"

जिला अग्निशमन अधिकारी, प्रसाद ने कहा, "अग्नि संचालन के लिए पर्याप्त कर्मियों की कमी हमारी दक्षता में बाधा डालती है। हम केवल सीमित जनशक्ति के साथ काम करने की कोशिश करते हैं।"

उन्होंने यह भी कहा कि ग्रामीणों की लापरवाही के कारण भी आग लगती है।

उन्होंने कहा, "लोग अक्सर बीड़ी को बुझाए बिना ही खेत में फेंक देते हैं। फसल के सीज़न में थोड़ी सी सावधानी बरतकर इन घटनाओं से बचा जा सकता है।"

आग से बर्बाद हुई फ‍सल के लिए मुआवजा

अनिरुद्ध कुमार जिनकी 5 बीघा आग में जल कर बर्बाद हो गई है। उन्होंने बताया कि दुर्घटना के बाद राजस्व अधिकारियों ने उनके खेत का दौरा किया और किसानों से मुआवजे के लिए ऑनलाइन आवेदन करने के लिए कहा गया है।

कुमार के बगल में खड़े एक अन्य किसान रामकिशोर ने कहा, "हम ऑनलाइन आवेदन करने के लिए पर्याप्त जानकारी नहीं है। ये प्रक्रियाएं हमारे लिए बहुत थकाऊ हैं। काश हमारे जैसे किसानों के लिए मुआवजे की व्यवस्था को समझना थोड़ा आसान होता।"

50 वर्षीय किसान गंगा सागर, जो कुछ वर्षों में एक आग दुर्घटना में अपनी फसल खो चुके थे, ने शिकायत की कि वह अभी भी अपने मुआवजे का इंतजार कर रहे थे।

सागर ने बताया, "अधिकारी आते हैं, वे कुछ लिख देते हैं लेकिन मुझे अभी तक कोई मुआवजा नहीं मिला है। इस साल फिर से मेरी एक बीघा फसल जल गई और वे आए और चले गए। मुझे नहीं लगता कि मुझे इस बार कोई मुआवजा मिलेगा।"

उत्तर प्रदेश बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के आंकड़ों से पता चलता है कि, 2019-20 में, उन्नाव में कुल 202 किसानों ने अपनी जली हुई फसलों के मुआवजे का दावा किया, जिसमें से 180 किसानों को 3,014,674 रुपये का भुगतान किया गया।

2020-21 में, कुल 16 किसानों ने इस तरह के मुआवजे का दावा किया और उन सभी को 201,800 रुपये की राशि प्रदान की गई। पिछले वित्तीय वर्ष में 2021-22 में 76 किसानों ने मुआवजे के लिए आवेदन किया जबकि 53 किसानों को कुल 717,700 रुपये मिले।

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