गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार मामले में 11 लोगों को उम्रकैद

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गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार मामले में 11 लोगों को उम्रकैदgaonconnection

अहमदाबाद (भाषा)। गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार मामले को सभ्य समाज के इतिहास का सबसे काला दिन करार देते हुए एक विशेष एसआईटी अदालत ने, वर्ष 2002 में गोधरा कांड के बाद हुई हिंसा के दौरान कांग्रेस के पूर्व सांसद अहसन जाफरी सहित 69 लोगों को जिंदा जलाने के मामले में आज 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई।

सभी दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग को ठुकराते हुए अदालत ने कहा कि अगर राज्य 14 साल कैद के बाद सजा में छूट देने के अपने अधिकार का उपयोग नहीं करता है तो 11 दोषियों की उम्रकैद की सजा उनकी मौत तक रहेगी। अदालत ने कम गंभीर अपराधों के लिए 13 दोषियों में से एक को दस साल कैद की सजा और 12 अन्य में से प्रत्येक को सात साल कैद की सजा सुनाई है। अभियोजन पक्ष ने मांग की थी कि सभी 24 दोषियों को मौत की सजा दी जानी चाहिए।

नरसंहार को सभ्य समाज के इतिहास में सबसे काला दिन बताते हुए विशेष अदालत के न्यायाधीश पीबी देसाई ने दोषियों को मौत की सजा सुनाने से इंकार कर दिया और कहा, ‘‘अगर आप सभी पहलुओं को देखें तो, रिकॉर्ड में पहले का कोई उदाहरण नहीं है।''

न्यायाधीश ने आगे कहा कि घटना के बाद आरोपियों में से 90 फीसदी को जमानत पर रिहा कर दिया गया और उनके खिलाफ किसी ने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई, यहां तक कि पीड़ितों ने भी नहीं और ऐसा कोई रिकॉर्ड भी नहीं है जिससे पता चले कि जमानत पर रहते हुए उन्होंने कोई अपराध किया। उन्होंने कहा कि इसलिए उन्हें लगता है कि इस मामले में दोषियों को मृत्युदंड की सजा देना उचित नहीं है।

अदालत ने कहा कि उसने बिना तय समयसीमा के, 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा देने का फैसला किया है जो हत्या के दोषी ठहराए गए हैं। साथ ही उसने राज्य से अनुरोध किया कि वह 14 साल कैद के बाद उनकी सजा में छूट के लिए अपने अधिकार का उपयोग न करे।

फैसला सुनाते हुए अदालत ने कहा, ‘‘सीआरपीसी के प्रावधान राज्य को 14 साल की कैद के बाद सजा में छूट का अधिकार देते हैं, धारा 433-ए इस अधिकार पर कुछ अंकुश लगाती है। अगर राज्य सजा में छूट के अपने अधिकार का उपयोग नहीं करता है तो उम्रकैद का मतलब है कि मृत्यु होने तक जेल में रहना।'' न्यायाधीश ने कहा, ‘‘धारा 302 के तहत जो कहा गया है, उसके आगे मैं कुछ नहीं कह सकता, राज्य के लिए सजा में छूट देने के अधिकार का उपयोग करना जरुरी नहीं है, राज्य चाहे तो छूट के अधिकार का उपयोग न करे।'' उन्होंने कहा कि अदालत का आदेश बाध्यकारी नहीं है क्योंकि वह राज्य की कार्यकारी शक्तियों को अलग नहीं कर सकते।

इस मामले के 13 अन्य आरोपी कम गंभीर अपराध के लिए दोषी ठहराये गए थे जिनमें हत्या (धारा 302) शामिल नहीं है। इन दोषियों में से एक मांगीलाल जैन को अदालत ने 10 साल कैद की सजा और अन्य 12 में से प्रत्येक को सात-सात साल कैद की सजा सुनाई है।

गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार 28 फरवरी 2002 को हुआ था। उन दिनों नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। इस मामले में करीब 400 लोगों की भीड़ ने अहमदाबाद के मध्य में स्थित गुलबर्ग सोसाइटी पर हमला कर जाफरी सहित वहां के 69 लोगों को मार डाला था।

यह मामला वर्ष 2002 में हुए गुजरात दंगों के उन नौ मामलों में से एक था जिसकी जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच टीम ने की। अदालत ने कहा, ‘‘सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि अगर अपराध का उद्देश्य एक है तो भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दी गई सजाएं साथ-साथ चलनी चाहिए।'' अभियोजन पक्ष ने और पीड़ितों ने मांग की थी कि सभी आरोपियों को दी गई सजाएं साथ-साथ नहीं चलनी चाहिए और सभी 24 आरोपी अपना पूरा जीवन जेल में बिताएं।

इससे पहले, दो जून को अदालत ने हत्या और अन्य अपराधों के लिए 11 व्यक्तियों को दोषी ठहराया था और विहिप नेता अतुल वैद्य सहित 13 अन्य पर कम गंभीर अपराध के आरोप लगाए। अदालत ने मामले के 36 अन्य आरोपियों को बरी भी कर दिया था।

जिन दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है, उनमें कैलाश धोबी, योगेन्द्र शेखावत, जयेश जिंगार, कृष्णा कलाल, जयेश परमार, राजू तिवारी, भरत राजपूत, दिनेश शर्मा, नारायण टांक, लखन सिंह चूडासमा और भरत ताइली शामिल हैं।

 

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