इस्लाम के जानकारों ने तीन तलाक की व्यवस्था में बदलाव की पैरवी की
गाँव कनेक्शन 12 Jun 2016 5:30 AM GMT

नई दिल्ली (भाषा)। एकसाथ तीन तलाक के मुद्दे पर संशोधन की मांग को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भले ही खारिज कर दिया हो, लेकिन इस्लामी जानकारों का कहना है कि तलाक की मौजूदा व्यवस्था में बदलाव की जरुरत है क्योंकि यह कुरान और इस्लाम के मुताबिक नहीं है।
जामिया मिलिया इस्लामिया में इस्लामी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर जुनैद हारिस के अनुसार तलाक की जो व्यवस्था मौजूदा समय में पर्सनल लॉ बोर्ड ने स्वीकारी है वो कुरान और इस्लाम के नजरिये से पूरी तरह मेल नहीं खाती है।
प्रोफेसर हारिस ने कहा, ‘‘हमारे देश में एक साथ तीन तलाक की जो व्यवस्था है और पर्सनल लॉ बोर्ड ने जिसे मान्यता दी है वो पूरी तरह कुरान और इस्लाम के मुताबिक नहीं है। तलाक की पूरी व्यवस्था को लोगों ने अपनी सहूलियत के मुताबिक बना दिया है। इसमें कुरान के मुताबिक संशोधन की सख्त जरुरत है।'' हाल ही में उत्तराखंड की महिला सायरा बानो के उच्चतम न्यायालय जाने और कुछ महिलाओं के तलाक के मामले सामने आने के बाद से तीन तलाक के मुद्दे को लेकर बहस तेज हो गई।
कुछ महीने पहले उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर सरकार का रुख जानने के लिए नोटिस जारी किया था। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सरकार पर धार्मिक मामले में दखल देने का आरोप लगाते हुए कहा कि तलाक के मुद्दे पर कोई बदलाव नहीं होगा क्योंकि वह शरीयत के दायरे से बाहर नहीं जा सकता।
हारिस कहते हैं, ‘‘कुरान में स्पष्ट किया गया है कि एकसाथ तीन तलाक नहीं कहा जा सकता। एक तलाक के बाद दूसरा तलाक बोलने के बीच करीब एक महीने का अंतर होना चाहिए। इसी तरह का अंतर दूसरे और तीसरे तलाक के बीच होना चाहिए। ये व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि आखिरी समय तक सुलह की गुंजाइश बनी रहे। ऐसे में एकसाथ तीन तलाक मान्य नहीं हो सकता।''
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