जानिए सर्दी में कैसे रोग व कीटों से बचाएं अपनी फसल
vineet bajpai 28 Dec 2015 5:30 AM GMT

लखनऊ। सर्दी का प्रकोप जैसे-जैसे बढ़ने लगा है वैसे-वैसे ही रबी की कुछ फसलों में कीट व रोग लगने की संभावनाएं अधिक होने लगती हैं। अगर समय पर कीट व रोग को पहचान कर उपचार किया जाए तो नुकसान से बचा जा सकता है।
कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया, सीतापुर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. डीएस श्रीवास्तव बताते हैं, ''बदलते मौसम का असर सब्जी वाली फसलों पर अधिक पड़ता है। इस समय में आलू, मटर, टमाटर व सरसों जैसी फसलों में चूसक कीड़े लग जाते हैं और झुलसा, पत्ती धब्बा व बुकनी रोग लगने की संभावना अधिक रहती है। जैसे-जैसे तापमान गिरने लगता है, इनका प्रकोप बढ़ने लगता है।" वो आगे बताते हैं, "अगर दिन का तापमान 22 डिग्री से कम रहा तो फसल में झुलसा रोग लग जाता है। झुलसा दो प्रकार का होता है। पहला होता है अगेती झुलसा, इसमें पौधों की पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं और दूसरा होता है पछेती झुलसा, जिसका प्रकोप एक महीने बाद शुरू होगा, ये पत्तियों सहित पूरे पेड़ को सड़ा देता है।"
डॉ. श्रीवास्तव कहते हैं कि इस समय गेहूं की फसल में रतुआ रोग लगने की संभावना रहती है, जिसकी वजह से पौधे पर पीले-काले धब्बे पड़ जाते हैं। वो बताते हैं, ''चना, अरहर और टमाटर की फसल में इस समय उकठा रोग लगने का भय रहता है। इस समय टमाटर में उकठा रोग चल रहा है।"
सुझाव
- गेहूं में लगने वाले रतुआ रोग के बचाव के लिए ट्रोपीकोना जोल का छिड़काव बदली के समय करना चाहिए, रात में खेत में धुआं करना चाहिए और हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
- उकठा रोग से बचाव के लिए गोबर की खाद में ट्राईकोडर्मा मिलाकर छिड़काव करना चाहिए व सिंचाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि ये रोग पानी के साथ एक पौधे से दूसरे पौधे पर फैल जाता है।
- झुलसा रोग से बचाव के लिए मेटालैग्जि़ल और मेंकोजेल को मिलाकर दो ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए।
- बुकनी रोग लौकी, मटर व टमाटर में लगता है, इसके बचाव के लिए 80 प्रतिशत डब्लूडीजी सल्फर दो ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से छिड़काव करें।
- सूंड़ी, टमाटर, चना और बरहर की फलियों को खा जाती है। इनसे निज़ात पाने के लिए एचएएनपीबी का छिड़काव 100-150 एमएल प्रति एकड़ के हिसाब से करें।
- चूसक कीड़ों को समाप्त करने के लिए पीली स्टिकी ट्रैप खेत में लगाएं।
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