दाल के बाद अब देश में बड़े खाद्य तेल संकट की आशंका

अमित सिंहअमित सिंह   12 July 2016 5:30 AM GMT

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दाल के बाद अब देश में बड़े खाद्य तेल संकट की आशंकातेल संकट, खाद्य तेल संकट, देश में बड़े खाद्य तेल संकट

लखनऊ। सरसों के घटते उत्पादन और सरपट भागती खाद्य तेल की कीमतों ने आम आदमी की रसोईं का बजट बिगाड़ दिया है। बीते साल जुलाई महीने में आगरा मंडी में सरसों जहां 3,900 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही थी, वहीं अब इसकी कीमत बढ़कर 4,100 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। खुदरा बाज़ार में सरसों तेल की कीमतों के बारे में तो पूछिए ही मत। खुदरा बाज़ार में सरसों का तेल 110 से 115 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है।

आगरा मंडी के एग्रीकल्चरल मार्केटिंग ऑफिसर संजय कुमार बताते हैं, ''बाज़ार में सरसों का न्यूनतम समर्थन मुल्य 3,350 रुपये प्रति क्विंटल है और बाज़ार में सरसों इससे ऊंची कीमत पर बिक रही है। बावजूद इसके किसान सरसों की खेती से दूर भाग रहे हैं। बीते दो सालों से सरसों की फसल कुछ खास अच्छी नहीं हुई है। इसकी बड़ी वजह बारिश है। मांग ज्यादा है और सप्लाई नहीं के बराबर ऐसे में कीमतें तो बढ़ेंगी ही।''

74 फीसदी आयात पर निर्भर

प्रख्यात खाद्य विश्लेषक देवेंद्र शर्मा के मुताबिक़, ''इस वक्त देश अपनी खाद्य ज़रूरत का 74 फीसदी खाद्य तेल आयात कर रहा है। जिसकी लागत है 70,000 हज़ार करोड़ रुपये। जबकि हमारे पास देश में ही इसके इत्पादन की क्षमता है। यही नहीं 2015 में खत्म हुए दशक में खाद्य तेल की खपत दोगुनी हो गई थी। 1993-94 में भारत खाद्य तेल के मामले में लगभग आत्म निर्भर था। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा 1985-86 में शुरु किए गए ऑयल सीड्स टेक्नोलॉजी मिशन की बदौलत भारत अगले 10 वर्षों में ज़रूरत का 97 फीसदी खाद्य तेल पैदा कर रहा था।''

                                                  

उत्पादन कम होने से किसान निराश

खाद्य तेल की कीमतों में इज़ाफ़े की सबसे बड़ी वजह सरसों के उत्पादन में आई गिरावट और किसानों का सरसों की खेती से मुंह मोड़ना है। देश की वनस्पति तेल की कुल मांग 235 लाख टन है। जिसका सिर्फ़ 40 फ़ीसदी ही देश में पैदा होता है।

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के सीनियर प्रोफ़ेसर और एग्री इकोनॉमिस्ट डॉ. साकेत कुश्वाहा बताते हैं, ''मौसम में लगातार होने वाली तब्दीलियों और बारिश में कमी के चलते किसान तिलहन की खेती से दूर होने लगे हैं। अगर बारिश ज्यादा हो जाए तो भी दिक्कत है और अगर कम हो तो भी किसानों के लिए परेशानी। यूपी और बिहार में किसान जिन सरसों के बीजों का इस्तेमाल बुआई के लिए कर रहे हैं उनके अंदर मौसम में होने वाले बदलावों को बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं है। किसानों को खेती के पुराने तरीके से आजाद होना होगा नहीं तो दलहन और तिलहन की तरह ही बाक़ी फसलों की खेती में भी दिक्कत पेश आएगी। सरकार इंपोर्ट करके ही खुश है उसे चाहिए कि किसानों को तिलहन की खेती के लिए जागरुक करे। फार्मिंग प्रैक्टिस को और बेहतर बनाए।''

                                                 

सरसों के उत्पादन में गिरावट की वजह

सरकार के मुताबिक अनियमित बारिश की वजह से सरसों के उत्पादन में तेज़ी से कमी आई है। उत्पादन घटने की वजह से किसान सरसों की खेती नहीं कर रहे हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के मुताबिक़ किसानों का रुख़ सरसों के हटकर अब चावल और गेहूं की तरफ हो गया है।

फैज़ाबाद ज़िले के रामनगर धोरारा गाँव के रहने वाले किसान विवेक सिंह (32 साल) बताते हैं, ''देश में इस वक्त किसानों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। 1 बीघे खेत में करीब 1 क्विंटल सरसों पैदा होती है। जिसे किसान जब बेचने जाते हैं तो उन्हें अच्छी कीमत नहीं मिलती। कभी-कभार ही फसल अच्छी होती है ज्यादातर मौक़ों पर मौसम की मार सब बर्बाद कर देती है। तेल की कीमतें आसमान पर हैं लेकिन किसानों को इसका कोई फायदा नहीं मिल रहा है। किसानों का फायदा तभी होगा जब उन्हें प्रोसेसिंग करने की छूट दी जाए। सरसों सस्ती है लेकिन किसान तेल कीमतों से अच्छा मुनाफ़ा कमा सकता है। लेकिन उसकी राह भी आसान नहीं है। सरसों की प्रोसेसिंग से पहले लैब सर्टिफिकेट की ज़रूरत होती है जिसका खर्चा लाखों में है गरीब किसान कहां से इतने पैसे कहां से लेकर आएगा।''

                                                     

समूह विशेष की वजह से बढ़ती हैं कीमतें

आगरा मंडी के एग्रीकल्चरल मार्केटिंग ऑफिसर संजय कुमार बताते हैं, ''सरसों का काम अब आम नहीं बड़े कारोबारी कर रहे हैं जो एक साथ अकेले ही बाज़ार से सारा माल खरीदने की क्षमता रखते हैं। 70 फीसदी तेल आयात किया जाता है। कीमतें बड़े कारोबारियों का कार्टल तय करता है। देसी बाज़ारों की इसमें कोई ख़ास भूमिका नहीं होती है। खाद्य तेल के कारोबार से जुड़ा कारोबारियों का एक बड़ा समूह है जो आपस में कीमतें तय करके तेल बेचता है और मजबूरी में उपभोक्ता को महंगी कीमत पर तेल खरीदना पड़ता है। सप्लाई पहले से ही कम है कीमतें तो बढ़नी तय हैं।''

इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने से भी महंगा हुआ खाद्य तेल

खाद्य तेल की कीमतों में बढ़ोतरी की एक बड़ी वजह इसपर लगाए जाने वाला आयात शुल्क भी है। सरकार ने घरेलू तेल कारोबारियों को सुरक्षा देने के लिए साल 2014-15 में रिफाइन तेल पर 15-20 फीसदी का आयात शुल्क लगाया था। जब आयात शुल्क ज्यादा होगा तो खाद्य तेल की कीमतें भी ज्यादा होंगी और ग्राहकों को महंगा तेल खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।

 

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