चार प्रशिक्षण केंद्रों के जरिये यूपी बनेगा हनी हब

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चार प्रशिक्षण केंद्रों के जरिये यूपी बनेगा हनी हबप्रतीकात्मक फोटो

सुधा पाल

लखनऊ। यूपी अब हनी हब बनेगा। मधुमक्खी पालन को राज्य में सबसे अधिक बढ़ावा दिये जाने की तैयारी चल रही है। उप्र बागवानी विभाग विभिन्न जिलों में चार प्रशिक्षण केंद्र और लखनऊ पराग संरक्षण का प्रशिक्षण दे रहा है। 70 फीसदी खाद्य पदार्थों में शहद का इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में बढ़ते उपयोग को देखते हुए सरकार इसको और बढ़ावा दे रही है।

चार जिलों में खोला गया मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण केंद्र

शहद उत्पादन के लिए मधुमक्खी पालन भी राज्य सहित पूरे देश में प्रचलित हो गया है। यह एक अच्छे व्यवसाय के रूप में शहरी इलाकों में भी अपनी जगह बनाता जा रहा है। मामूली लागत के बावजूद अच्छी आय की वजह से लोगों ने इसे अपना व्यवसाय बना लिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने भी प्रोत्साहन स्वरूप इसे बढ़ावा देते हुए राज्य के चार जिलों में मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण केन्द्र खोला गया है। इन केंद्रों कुल 15 अलग अलग प्रशिक्षण प्रकोष्ठ हैं। इसके साथ ही राजधानी के गोसाईंगंज में बागवानी विभाग मधुमक्खी पालकों को मधुमक्खी पालन के साथ ही पराग के संरक्षण का भी प्रशिक्षण दे रहा है।

तो इसलिए बढ़ गई है शहद की मांग

बाज़ारों में लगभग 70 फीसदी खाद्यपदार्थों में शहद का इस्तेमाल किया जाता है। शहद में प्रोटीन, वसा, एन्जाइम, विटामिन भी पाया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें लोहा, फास्फोरस, कैल्शियम और आयोडीन भी पाए जाते हैं। शहद से रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। यही कारण है कि शहद की मांग भी बढ़ गई है।

शहद उत्पादन में लागत भी मामूली

शहद उत्पादन के लिए लगने वाली लागत भी मामूली है। कच्चा माल प्रकृति से मिलता है, जिसके लिए मधुमक्खी पालक मामूली लागत में अच्छी आमदनी कर सकते हैं। परम्परागत खेती करने वाने किसान भी मधुमक्खी पालन को अतिरिक्त आय का स्रोत बना सकते हैं। इसके लिए ना किसी खेत की आवश्यकता होती है और ना ही किसी संसाधन की। इसमें पालक को केवल कॉलोनी की कुछ घंटे देखभाल करनी होती है। इसके साथ ही मधुमक्खियों को फ्लोरा की कमी होने पर पराग उपलब्ध कराना होता है। मधुमक्खी पालन से ज्यादात्तर मुनाफा शहद उत्पादन के ज़रिए किया जाता है। इसके अलावा अन्य उत्पाद जैसे मोम, पराग, मधुमक्खी विष बेचकर भी मधुमक्खी पालक मुनाफा कमा सकता है।

इन जिलों में खोले गये केंद्र

बागवानी विभाग (उप्र) के वरिष्ठ स्रोत सहायक अमृत कुमार का कहना है कि आधुनिक मधुमक्खी पालन के तरीके से मधुमक्खी पालक अधिक और अच्छी गुणवत्ता का शहद उत्पादन कर सकते हैं। साथ ही मौनवंश का अच्छा इंतजाम भी कर सकते हैं। अमृत कुमार बताते हैं कि इस व्यवसाय को बढ़ावा देते हुए राज्य सरकार ने प्रदेश के 4 जिलों में मधुमक्खी पालन प्रशिक्षण केन्द्र खोले हैं। जहां लोगों को कोर्स के रूप में लोगों को प्रशिक्षित किया जाता है। इस प्रशिक्षण में युवा भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि जिलों में कुल 15 विभाग हैं जहां प्रशिक्षण दिया जाता है। इलाहाबाद, मुरादाबाद, बस्ती और सहारनपुर में केंद्र खोले गए हैं।

अच्छी गुणवत्ता का पराग किया जाता है संरक्षित

कहा जाता है कि मकरंद और पराग मधुमक्खियों के लिए सब्जी और रोटी होते हैं। मधुमक्खियां कई प्रकार की वनस्पतियों से शहद के लिए मकरंद और पराग इकट्ठा करती हैं। लेकिन बदलते मौसम की वजह से कई बार फ्लोरा की कमा पड़ जाती है। जिससे मधुमक्खियां शहद उत्पादन के लिए पर्याप्त मात्रा में लगने वाले मकरंद और पराग इकट्ठा नहीं कर पाती हैं। इसके लिए विशेषज्ञ मधुमक्खी पालकों को पराग संरक्षित करने का विशेष प्रशिक्षण देते हैं। इस प्रशिक्षण में बताया जाता है कि किस तरह पराग की कमी को दूर कर पालक अच्छी गुणवत्ता का शहद प्राप्त कर सकता है। मधुमक्खियों को पराग खिलाया जाता है जिसे पहले से ही फूलों से निकालकर सुखा लिया जाता है। इसके अतिरिक्त मोनीरोटी को चीनी और पानी के घोल के साथ मधुमक्खियों को दिया जाता है। मोनीरोटी मकरंद और पराग का मिश्रण होता है। इससे मधुमक्खियों की प्रजनन क्षमता बढ़ती है।

रॉयल जैली से बढ़ती है मक्खियों की प्रजनन क्षमता

रॉयल जैली मधुमक्खियों द्वारा ही तैयार किए जाले वाला एक तरह का पदार्थ है। यह पदार्थ रानी मक्खी बनाती है। शहद के छत्ते के निचले सेल में रानी मक्खी पहले जैली की परत बनाती है, बाद में बच्चे को रखती है। प्रजनन के दौरान रानी मक्खी लगभग 1600 से 1800 अंडे देती है। इस रॉयल जैली से मक्खियों की प्रजनन क्षमता बढ़ती है। रॉयल जैली में औषधीय गुण होने के कारण यह बाज़ार में कैप्सूल के रूप में भी उपलब्ध है। इसकी कीमत लगभग 200-250 रुपये प्रति कैप्सूल है।

मोमीगोंद के औषधीय गुण

मोमीगोंद मक्खियों द्वारा पौधों के कल्लों से इकट्ठा किया जाता है। इसका इस्तेमाल मधुमक्खियां चींटी-चीटों से अपने छत्ते को बचाने के लिए करती हैं। वे मोमीगोंद से छत्ते के छेद को ढक देती हैं। इसमें औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। मोमीगोंद की गोलियां सिर के ऊपरी हिस्से में होने वाले हर तरह के दर्द को दूर करती हैं।

गोसाईंगंज में मैंने एक प्रोसेसिंग प्लांट खोला है। जहां लोगों को प्रशिक्षित करता हूं। लगभग 25 से 60 किलोग्राम शहद उत्पादन होता है। उत्पादन इस बात पर भी निर्भर करता है कि मौसम फ्लोरा के हिसाब से उचित है या नहीं।
अमृत कुमार, वरिष्ठ स्रोत सहायक (बागवानी विभाग, उप्र)

     

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