खेती के लिए बढ़ रही मुर्गी खाद की मांग, लगाई जाती है बोली
गाँव कनेक्शन 31 Jan 2017 4:59 PM GMT
सुधा पाल
लखनऊ। प्रदेश में खेती के क्षेत्र में अधिक मुनाफा और बेहतर उत्पादन के लिए किसान हर तरह से प्रयास करता है। इसमें कम समय में अधिक उत्पादन के लालच में ज्यादातर किसान रासायनिक खाद व उर्वरक में पैसा खर्च करते हैं।
हालांकि इन दिनों अच्छी पैदावार के लिए इन हानिकारक माध्यमों की जगह किसान प्राकृतिक तौर पर मुर्गी की बीट (मल) से तैयार की गई खाद को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। फॉस्फोरस से भरपूर यह खाद मिट्टी की सेहत के लिए भी अच्छी है।
राज्य के पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डॉ. वीके सिंह इस बारे में बताते हैं, ‘एक मुर्गी से एक दिन में 32 से 36 ग्राम बीट मिलता है। इसमें 40 फीसदी नमी होती है। यह खाद हॉर्टीकल्चर फसलों के लिए बेहतर है। इस खाद में फॉस्फोरस की मात्रा अन्य खादों के मुकाबले अधिक होती है और यही फॉस्फोरस फलों और सब्जियों के आकार को बढ़ाने का काम करता है।’
सरकार की तरफ से 12 मुर्गी फॉर्म हैं। वहीं कुक्कुट योजना के तहत इस समय 145 मुर्गीपालन की इकाइयां प्रदेश में एक्टिवली काम कर रहीं हैं।डॉ. वीके सिंह (उपनिदेशक) पशुपालन विभाग, उ.प्र.
खाद के लिए किसान लगाते हैं ‘बोली’
डॉ. वीके सिंह ने बताया कि किसानों में मुर्गी खाद की काफी मांग है। खेती में इस खाद के उपयोग के बाद किसी अन्य खाद या उर्वरक की जरूरत नहीं पड़ती है। सरकार की तरफ से चलने वाले 12 मुर्गी फार्म में साल में एक बार खाद की बढ़ती मांग को देखते हुए बोली (नीलामी) लगवाई जाती है।
बड़े जानवर में ज्यादा खर्च है। देखभाल न हो सही से और चारा पानी भी बढ़िया न मिले तो दिक्कत है, जानवर बीमार हो तो इलाज में खर्च लेकिन इसमें दाना पानी की कोई दिक्कत नहीं है।किसुन, मुर्गीपालक (सकतपुर, बरेली)
इसका आयोजन फरवरी महीने में किया जाता है। इस बोली के लिए विभिन्न क्षेत्रों से किसान आते हैं और मुर्गी खाद खरीदने के लिए बोली लगाते हैं। इस बोली में किसान स्वयं ही इस खाद की कीमत रखते हैं जो कि मांग के अनुसार बढ़ती रहती है। बाद में जिस किसान की बोली सबसे ज्यादा होती है, उसे खाद दे दी जाती है। इस तरह की बोली अन्य फार्म (निजी) पर भी लगाई जाती है जो एक ही साल में कई बार लगती है। कुछ निजी फार्म एक महीने के अंतराल पर और कुछ तीन महीने के अंतराल पर नीलामी का आयोजन रखते हैं।
मुर्गी बीट में यूरिक एसिड ज्यादा होता है जिससे मिट्टी की उर्वरकता बेहतर होती है और यह फसलों के लिए अच्छा है।डॉ. टीएस यादव, मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी (पशुपालन विभाग, लखनऊ)
खाद के संरक्षण की समस्या न हो इसलिए ये निजी फार्म महीने भर के अंतर पर नीलामी रखते हैं जिससे खाद सुरक्षित बनी रहती है। इस तरह किसान अपने पास के किसी भी फार्म से इस मौके का लाभ उठा सकते हैं और इस उपयोगी खाद को खरीद सकते हैं।
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