प्राकृतिक संकट से बचने के लिए देवी को चढ़ाते हैं जवार

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
प्राकृतिक संकट से बचने के लिए देवी को चढ़ाते हैं जवारगेहूं के जवारों को श्रद्धाभाव के साथ निकाले जाने की परंपरा है।

अरविंद सिंह परमार, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

ललितपुर। बुंदेलखंड के कुछ क्षेत्रों में धार्मिक स्थान पर गेहूं के जवारों को श्रद्धाभाव के साथ निकाले जाने की परंपरा है। इन जवारों को देवी-मंदिरों में श्रद्धाभाव से चढ़ाया जाता है। गाँव में किसी भी प्राकृतिक आपदा, संकट और परेशानी से बचने के लिए जवारों को निकाला जाता है। ऐसी मान्यता है, जवार निकालने से गाँव में सुख-समृद्धि आती है।

हनुमान जयंती के बाद ललितपुर जनपद से 50 किमी पूर्व दिशा में कुम्हैढी में अंजनी माता मंदिर पर मेला प्रारम्भ होता है। इस मेले में भाग लेने दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मिट्टी के खप्पर में बोए गए जवारों को श्रद्धाभाव के साथ सिर पर रखकर निकाला जाता है और मंदिर पर चढ़ाया जाता है। बुंदेलखंड में जवारे निकालते समय ढाल छेड़ने की अनोखी परंपरा है, क्योंकि ढाल को देवी के रूप मे माना जाता है, जिसे रोकने के लिए ओझाओं के द्वारा मंत्र पाठ किया जाता है।

खेती किसानी से जुड़ी सभी बड़ी खबरों के लिए यहां क्लिक करके इंस्टॉल करें गाँव कनेक्शन एप

कुम्हैढी गाँव के इमरत लाल (50 वर्ष) ने बताया, ‘गेहूं को मिटटी के खप्पर में गोबर की खाद डालकर बोया जाता है। नौ से दस दिन तक इसकी पूजा की जाती है। धीरे-धीरे गेहूं से जवार निकलने लगता है। रोजाना सुबह-शाम जवार की पूजा की जाती है। प्रसाद चढ़ाया जाता है। कीर्तन-भजन भी रोज होते हैं। इसके बाद जवारे को धूमधाम से माता के स्थानों पर चढ़ाया जाता है। यह परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है।’

जवारे ले जाते समय एक व्यक्ति द्वारा बांस के करीब 10-15 फीट लंबे एवं मोटे डंडे को कमर में बांधा जाता है। बांस का एक सिरा कमर में रहता है तथा दूसरा ऊपर होता है। ऊपर वाले सिरे के शिखर पर एक रस्सी होती है, जो ढाल बांधने वाले व्यक्ति के हाथ में होती है, बांस के डंडे के ऊपरी शिखर पर व्यवस्था से जवारे रखे जाते हैं। नीचे नारियल बांधे जाते हैं।

चारोदा गाँव के ढोलक मास्टर अनूपे अहिरवार (48 वर्ष) बताते हैं,’ ढाल बांधने वाला व्यक्ति आगे चलता है, पीछे महिलाएं जवारे लेकर चलती हैं। बीच में साज-बाज बजाने वाले चलते हैं।’ वो आगे बताते हैं, ‘जब ढाल बांधने वाला व्यक्ति ढाल को लेकर रास्ते से देवी मंदिर के लिए जाता है तब मंत्रों से भभूत (राख) को अभिमंत्रित कर ढाल में मारा जाता है। मंत्रों के द्वारा ढाल बांधने वाले व्यक्ति को देवी मंदिर से जाने से रोका जाता है, जिसके मंत्र में जितनी शक्ति होती है उतना ढाल बांधने वाला व्यक्ति पीछे हटता जाता है’। इस परंपरा के पीछे मान्यता है, मंदिरों में जवार चढ़ाने से गाँव में कोई आपदा नहीं आती है।

ताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें।

      

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.