सूखे क्षेत्रों में कारगर है सतावर की खेती

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सूखे क्षेत्रों में कारगर है सतावर की खेतीयूपी के कई जिलों में होने लगी है सतावर की खेती।

रायबरेली। वीरेंद्र चौधरी (52 वर्ष) डेढ़ एकड़ के खेत में सतावर की खेती कर रहे हैं। गेहूं, धान जैसी पारंपरिक फसलों की खेती छोड़ कर वीरेंद्र सतावर, तुलसी, एलोवेरा व अर्टिमीशिया जैसे औषधीय पौधे उगाकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

रायबरेली जिला मुख्यालय से 13 किमी पश्चिम दिशा में अहमदपुर गाँव में वीरेंद्र चौधरी रहते हैं। सतावर की खेती को लाभकारी बताते हुए वीरेंद्र बताते हैं, ‘किसान बड़ी मेहनत से धान-गेहूं बोता है पर सही समय पर बरसात ना होने पर उसे नुकसान झेलना पड़ता है। सतावर बड़े आराम से असिंचित क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। इसकी खेती अगस्त से शुरू की जाती है और फरवरी तक इसकी फसल मिल जाती है।’

सतावर का प्रयोग मुख्य रूप से औषधि के रूप में किया जाता है। इसका इस्तेमाल बलवर्धक, स्तनपान करने वाली महिलाओं के लिए लाभकारी दवाइयों व शारीरिक स्फूर्ति बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके साथ-साथ सतावर के नियमित सेवन से ल्युकोरिया व एनीमिया जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है।

सतावर की खेती के लिए महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना बेहद ज़रूरी होता है। रायबरेली के उन्नत किसान वीरेंद्र चौधरी यह बता रहे हैं।

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सतावर का पौधा

काफ़ी गुणकारी है सतावर

सतावर का प्रयोग भूख न लगने और पाचन सुधारने, मानसिक तनाव में राहत और दुग्ध बढ़ाने के लिए औषधि के रूप में होता है। सतावर की जड़ों के ऊपर पतली छिलके को हटाने पर सफेद दुधिया गद्देदार जड़ प्राप्त होता है जिसको सुखाने के बाद पीसकर सतावर का चूर्ण बनाया जाता है। इसका चूर्ण (2-3 ग्राम) प्रति दिन गर्म दूध के साथ सेवन करने से गैस की परेशानी नहीं होती। यह माता या पशु के स्तन में दूध बढ़ाने में कारगर होता है। इसका सेवन शहद के साथ करने से गर्भाशय का दर्द कम हो जाता है।

कैसे करें खेती की शुरुआत

सतावर की खेती के लिए मध्यम तापमान अच्छा माना जाता है। खेती के लिए उचित तापमान 10 से 50 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। इसकी खेती के लिए जुलाई-अगस्त में दो-तीन बार खेत की पहली जुताई कर लेनी चाहिए। इसमें प्रति एकड़ के दर से 10 टन गोबर की खाद मिला देनी चाहिए। दूसरी जुताई नवंबर के शुरुआती दिनों में होती है।

पर्याप्त है हल्की सिंचाई

सतावर की खेती में ज़्यादा पानी की ज़रूरत नहीं होती है। पौधे लगाने के एक सप्ताह के भीतर हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। यह सिंचाई पौधों के लिए पर्याप्त होती है। दूसरी हल्की सिंचाई पौधों के बड़े होने के बाद करनी चाहिए।

सतावर की खेती में सही समय पर खुदाई बेहद जरूरी होती है इस पर वीरेंद्र बताते हैं, ‘दूसरी सिंचाई के बाद जब पौध पीली पड़ने लगें तब इसकी रसदार जड़ों की खुदाई कर लेनी चाहिए। इसी समय किसान दूसरी फसल के लिए खेत तैयार कर सकता है।’

खोदी जड़ों को सुखाना है जरूरी

खोदकर निकाली गई रसदार जड़ों को साफकर अलग-अलग करके हल्की धूप में सूखने के लिए छोड़ देना चाहिए।

सतावर का बाज़ार

प्रति एकड़ के खेत में 300 से 350 क्विंटल गीली जड़ मिलती है जो सूखने के बाद 40 से 50 क्विंटल प्राप्त होती है। वीरेंद्र बताते हैं, ‘वर्तमान समय में सतावर की जड़ 250 से 300 रुपए प्रति किलो के रेट पर बिकती है। इसकी खरीद लखनऊ की शहादतगंज मंडी में बड़े पैमाने पर होती है। लखनऊ के अलावा इसकी बिक्री कानपुर मसाला मंडी, दिल्ली की खारी बावली मंडी और बनारस मंडी में होती है।’

रोपने लायक सतावर की पौध।

कैसे करें पौध की तैयारी

जोते गए खेत में 10 मीटर की क्यारियां बनाकर इसमें 4 और 2 के अनुपात में मिट्टी व गोबर की खाद मिलाकर डालनी चाहिए। प्रति एकड़ पांच किलोग्राम बीज की ज़रूरत होती है। अगस्त में ही क्यारियों में बीजों की बुआई कर देनी चाहिए सतावर के बीजों की खरीद के बारे वीरेंद्र बताते हैं, ‘यूं तो सतावर की कई प्रजातियां पाई जाती हैं पर मुख्य रूप से दो प्रजातियों (पिली या नैपाली सतावर, बेल या देसी सतावर) को बोया जाता है। इसके बीच निजी दुकानों व सीमैप से आसानी से मिल जाते हैं।’ एक हेक्टेयर के खेत में तीन से चार किलो सतावर के बीज डाले जाते हैं। बाज़ार में इसका मूल्य 1000 रुपए प्रति किलो के हिसाब से है।

    

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