हैरान कर देगी करेला बोने की ये तकनीक, ना उत्पादन की होगी चिंता ना आवारा जानवरों की

ज़ायद के मौसम में किसानों के लिए करेला की खेती, इस तकनीक से मुनाफे का सौदा साबित होती है। कई राज्यों में जहाँ किसान छुट्टा जानवरों से परेशान रहते थे, वो अब इस सब्जी से मालामाल हो रहे हैं।

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हैरान कर देगी करेला बोने की ये तकनीक, ना उत्पादन की होगी चिंता ना आवारा जानवरों की

करेला की खेती ज़ायद और खरीफ दोनों मौसम में की जाती है। ज़ायद के सीजन में लागत तो ज़्यादा बढ़ जाती है, लेकिन मुनाफा भी ज़्यादा होता है।

कानपुर देहात के जितेंद्र सिंह कुछ सुकून में है, उन्हें अब इस बात की फ़िक्र नहीं है कि फसल ख़राब तो नहीं होगी? या आवारा जानवर उसे चट तो नहीं कर जाएँगे ?

ऐसा मुमकिन हुआ है करेला की खेती करने से; जिसे उन्होंने कृषि जानकारों की सलाह से सही तकनीक से किया है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 90 किलोमीटर दूर कानपुर देहात जिले के महुआ गाँव में जितेंद्र का खेत है।

जितेन्द्र सिंह बताते हैं, "पिछले सात साल से हम करेला की खेती कर रहे हैं, इससे पहले लौकी-कद्दू जैसी सब्जियों की खेती करते थे, लेकिन हमारे तरफ जानवरों का बहुत आतंक है; उससे हम बहुत परेशान हुए, समझ नहीं आया कौन सी फसल की खेती करें जिसे जानवर नुकसान न पहुँचाए।"

वो आगे कहते हैं, "कुछ लोगों ने बताया करेले की खेती करो, जब हमने मचान पर करेले की खेती देखी तो लगा कि इसकी खेती तो बहुत कठिन प्रक्रिया है, लेकिन हमने शुरू किया तो अच्छा मुनाफा हुआ; एक बीघा में 50 कुंतल के करीब फसल निकलती है और रेट अच्छा रहा तो 20 से 25 और कभी-कभी 30 रुपए प्रति किलो बिक जाता है।"

करेला की खेती ज़ायद और खरीफ दोनों मौसम में की जाती है। ज़ायद के सीजन में लागत तो ज़्यादा बढ़ जाती है, लेकिन मुनाफा भी ज़्यादा होता है।

अगेती खीरा बुवाई का सही समय फरवरी से मार्च तक चलता है, जिससे मई-जून में उपज मिलती है। वहीं खरीफ में जून-जुलाई में बुवाई की जाती है और उपज अगस्त-सितंबर तक मिलती है।

बलुई दोमट या दोमट मिट्टी करेले की खेती के लिए बढ़िया मानी जाती है। करेले की बुवाई दो तरीके से की जाती है; एक सीधे बीज से और दूसरा नर्सरी विधि से। नदियों के किनारे की ज़मीन करेले की खेती के लिए अच्छी होती है।


फसल में अच्छी वृद्धि, फूल और फलन के लिए 25 से 35 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान सही माना जाता है। बीजों के अंकुरण के लिए 22 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड का ताप अच्छा होता है।

करेले की खेती के लिए 2 से 3 बीज 2.5 से 5 मीटर की दूरी पर बोना चाहिए। बीज को बोने से पहले 24 घंटे तक पानी में भिगो लेना चाहिए इससे अंकुरण जल्दी और अच्छा होता है।

करेले की उन्नत किस्में

कल्याणपुर बारहमासी, काशी सुफल, काशी उर्वशी पूसा विशेष, हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हरा और सोलन सफ़ेद, प्रिया को-1, एस डी यू- 1, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर-1 जैसी किस्मों की खेती कर सकते हैं।

ऐसे करें तैयारी

पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें इसके बाद दो - तीन बार हैरो या कल्टीवेटर चलाएँ। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना लें। ऐसे खेत चुनना चाहिए जहाँ पानी निकलने की सही व्यवस्था हो; जलभराव वाली ज़मीन में इसकी खेती नहीं की जा सकती है।

इसके बाद बुवाई से पहले खेत में नालियाँ बना लें जिससे पानी का जमाव खेत में न हो पाए। नालियाँ समतल खेत में दोनों तरफ मिट्टी चढ़ाकर बनानी चाहिए।

बीज उपचार होता है ज़रूरी

एक एकड़ में बुवाई के लिए करेले के 500 ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। बुवाई से पहले बीजों को बाविस्टीन (2 ग्रमा प्रति किलो बीज दर से) के घोल में 18-24 घंटे तक भिंगोना चाहिए। बुवाई के पहले बीजों को निकालकर छाया में सुखा लेना चाहिए।

बुवाई का सही तरीका

किसान दो तरीकों से इसकी बुवाई कर सकते हैं। एक तो सीधे बीज से बुवाई और दूसरी पहले नर्सरी तैयार करके पौधे तैयार कर सकते हैं।

नर्सरी विधि से खेती करने के लिए सबसे पहले नर्सरी ट‍्रे में कोकोपीट, वर्मीकुलाइट और पर्लाइट का 2:1:1 का मिश्रण डालना चाहिए। अब नर्सरी ट्रे के हर एक खाने में एक-एक बीज बोना चाहिए। इन्हें किसी छायादार जगह पर रखना होता है, जहाँ पर सीधी धूप न आती हो। 15-20 दिनों में जब पौधे तैयार हो जाते हैं, तब इनकी रोपाई कर सकते हैं।

रोपाई के लिए पहले खेत को तैयार करके 1.5-2 मीटर की दूरी पर लगभग 60-75 सेमी चौड़ी नाली बना लें। इसके बाद नाली के दोनों ओर मेड़ के पास 1-1 मीटर के अंतर पर 3-4 पौधों की रोपाई करते हैं।

करेले के बीजों को दो से तीन इंच की गहराई पर बोना चाहिए। वहीं नाली से नाली की दूरी 2 मीटर, पौधे से पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर और नाली की मेड़ की ऊँचाई 50 सेंटीमीटर रखनी चाहिए।

इसी तरह बीजों की सीधी बुवाई भी कर सकते हैं, रोपाई और सीधी बुवाई प्रक्रिया एक ही तरह होती है।


मचान विधि से करें खेती

अगर किसान मचान विधि से करेला की खेती करते हैं तो इसके कई फायदे होते हैं। मचान पर लौकी, खीरा, करेला जैसी बेल वाली सब्जियों की खेती की जाती है।

मचान पर बाँस या तार का जाल बनाकर बेल को ज़मीन से मचान तक पहुँचाया जाता है। मचान का प्रयोग करने से किसान 90 प्रतिशत तक फसल को खराब होने से बचा सकते हैं।

सेहत के लिए भी काम का है करेला

मोटे अनाज की तरह करेला भी गुणकारी होता है। ब्लड शुगर कंट्रोल करना हो या डाइजेशन की समस्या है, डॉक्टर भी करेला खाने की सलाह देते हैं। ऐसे में इस सब्जी की माँग बाजार में हमेशा रहती है।

करेला में फाइबर अच्छी खासी मात्रा में पाया जाता है, यही वजह है कि इसे खाने से डाइजेशन को हेल्दी बनाए रखने में मदद मिलती है।

लिवर को ठीक रखने और डिटॉक्सिफिकेशन प्रोसेस को सपोर्ट करने में भी करेला कारगर माना जाता है। वजन को कंट्रोल करने के साथ इम्यून सिस्टम को भी ये हरी सब्जी ठीक रखती है।

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