कश्मीर के चेरी किसानों के लिए अच्छा नहीं है यह साल

इस बार भारत के सबसे बड़े चेरी उत्पादक राज्य जम्मू और कश्मीर के चेरी किसानों के लिए ये साल अच्छा नहीं रहा है। अप्रैल और मई में सामान्य से अधिक बारिश और ओलावृष्टि से उन्हें भारी नुकसान हुआ है। बागवानों के मुताबिक उनकी आधी से ज्यादा फ़सल बर्बाद हो चुकी है। श्रीनगर के पास एक 'चेरी गाँव' से ग्राउंड रिपोर्ट।

Sadaf ShabirSadaf Shabir   15 Jun 2023 7:24 AM GMT

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दारा गाँव (श्रीनगर), जम्मू और कश्मीर। एक विशाल पहाड़ के पास बसा दारा गाँव श्रीनगर से दिखायी देता है। कश्मीर का यह छोटा सा गाँव खूबसूरत नज़ारों के साथ ही चेरी उत्पादन के लिए भी मशहूर है।

हालांकि, इस साल भारत के बड़े चेरी उत्पादक राज्य जम्मू और कश्मीर में चेरी किसानों को पिछले दो महीनों में सामान्य से अधिक बारिश और ओलावृष्टि के कारण भारी नुकसान हुआ है। दारा गाँव में कुछ चेरी के बाग मालिकों का दावा है कि उनकी फलों की फ़सल का 50 प्रतिशत से 85 प्रतिशत के बीच नुकसान हुआ है।

"इस साल सब कुछ बेकार चला गया। मुझे अपने कुल चेरी उत्पादन का केवल दस प्रतिशत मिला है। ” मोहम्मद मकबूल ने कहा, जो पिछले दो दशकों से चेरी की खेती कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "मैंने वसंत और गर्मी के महीनों में ऐसा मौसम कभी नहीं देखा।"


“मुझे साल में चेरी के लगभग 200 बक्से मिल जाते हैं। लेकिन इस साल यह गिनती महज 25 बक्सों की है। पिछले दो महीनों में बेमौसम भारी बारिश ने काफी नुकसान पहुँचाया, जिससे मेरी फ़सल बर्बाद हो गई। मैं अपने बगीचे में लगाए चारों मजदूरों को कैसे पैसे दूँगा।” किसान ने शिकायत की। उनके अनुसार, सरकारी अधिकारी इसे 'बम्पर चेरी सीजन' कह सकते हैं, जबकि उनके जैसे किसानों का लगभग पूरा उत्पादन चौपट हो गया है।

बागवानी क्षेत्र सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े 7 लाख परिवारों के साथ कश्मीर की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। यह जम्मू-कश्मीर के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में आठ प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, घाटी में लगभग 33 लाख लोग सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से बागवानी क्षेत्र से जुड़े हुए हैं।

घाटी में 338,000 हेक्टेयर से अधिक जमीन पर फलों की खेती होती है। इसमें से लगभग 1,149 हेक्टेयर जमीन पर चेरी है और 2021-2022 के दौरान 8,133 मीट्रिक टन फलों का उत्पादन किया गया था। जम्मू-कश्मीर के अलावा, चेरी का उत्पादन पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में होता है।

दारा गाँव में चेरी की खेती

मध्यम तापमान के कारण चेरी कश्मीर क्षेत्र में फलती-फूलती है और दारा गाँव फलों की खेती के लिए एकदम सही इलाका है। हालांकि, इस साल के अनियमित मौसम ने चेरी की खेती करने वालों के लिए तबाही मचाई है।

“चेरी उत्पादन के साथ चार दशक लंबे जुड़ाव के साथ, मैंने कई मौसमों को आते-जाते देखा है, लेकिन इस साल की बारिश एक विनाशकारी झटका साबित हुई। बंपर सीजन के शुरुआती वादे के बावजूद, बारिश ने मिनटों में तबाही मचा दी, जिससे हमारी ऑस्ट्रेलियाई चेरी किस्म बर्बाद हो गई। " दारा गाँव के हाजी मोहम्मद अकरम भट ने गाँव कनेक्शन को बताया।


किसान के अनुसार, चेरी चरम मौसम की स्थिति के प्रति संवेदनशील हैं, विकास के लिए मध्यम तापमान की ज़रूरत होती है। वे भारी बारिश या उच्च तापमान का सामना नहीं कर सकते हैं, और उनका मौसम 15 मई से शुरू होता है और 25 जून तक रहता है, जिससे फलों को सड़ने से बचाने के लिए इससे पहले फलों को इकट्ठा करना जरूरी हो जाता है।

“एक सामान्य वर्ष में मेरे बागों में लगभग 3,000 चेरी के बक्से पैदा होते हैं, लेकिन इस सीजन में मुझे मुश्किल से आधा उत्पादन ही मिल पाएगा। अब, मेरे सामने पेड़ों से फलों को तोड़ने और बचाए जा सकने वाले फलों को बड़ी मेहनत से छाँटने का चुनौतीपूर्ण काम है। इससे हमारा काम और ज्यादा बढ़ गया है। ”अकरम भट ने कहा।

उन्होंने बताया कि बागवानी विभाग की मदद से हमें उत्तम ऑस्ट्रेलियाई चेरी के पौधे मिले।“ मैं इस किस्म के लगभग 15 पेड़ों को रखने वाले कश्मीर के कुछ चुनिंदा लोगों में से एक होने पर गर्व महसूस करता हूँ । हालांकि, यह निराशाजनक है कि बाजार की बढ़ती दरों के बावजूद, हमारे पास पेश करने के लिए कोई उत्पाद नहीं है।" अकरम ने शिकायत की।


मकबूल की भी ऐसी ही चिंता थी। यहाँ उगाई जाने वाली चेरी की विभिन्न किस्मों में, डबल और इटैलियन चेरी का उत्पादन हमेशा बहुतायत में किया जाता रहा है। आज ये चेरी उच्च बाजार कीमतों की कमान सँभालती है, जिसका एक डिब्बा 200 रुपये में बिकता है। हालांकि, बढ़ती मांग और आकर्षक दरों के बावजूद, हमारे पास बेचने के लिए कोई उत्पादन नहीं बचा है।"

मौसम की मार

गाँव कनेक्शन से बात करते हुए जम्मू-कश्मीर के मौसम विभाग के निदेशक सोनम लोटस ने कहा, "अप्रैल और मई के महीनों के दौरान कश्मीर क्षेत्र में असामान्य मौसम बारिश हुई। कम वर्षा के साथ वसंत के मौसम के सामान्य परिवर्तन के विपरीत, इस वर्ष लगातार पश्चिमी विक्षोभ देखा गया, जिससे सामान्य से अधिक वर्षा हुई।

मौसम अधिकारी ने बताया कि जम्मू-कश्मीर में सामूहिक रूप से अप्रैल में 99.5 मिमी के सामान्य के मुकाबले 113 मिलीमीटर (मिमी) औसत वर्षा बारिश हुई, जिसमें 13 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई । 28 अप्रैल से 4 मई तक, जम्मू-कश्मीर में 59 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो सामान्य से लगभग 70 प्रतिशत अधिक है। 8 मई को जम्मू-कश्मीर के काजीगुंड (50 मिमी), कोकेरनाग (62 मिमी) और बनिहाल (40 मिमी) में एक दशक में सबसे अधिक 24 घंटे की बारिश हुई।


इसके साथ ही सर्दियों से वसंत तक के मौसम के दौरान तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि हुई, आँधी और ओलावृष्टि बढ़ गई, जिससे चेरी उत्पादन सहित कृषि और बागवानी के लिए ख़तरा पैदा हो गया, लोटस ने कहा।

बागवानी कश्मीर के निदेशक मोहम्मद अमीन भट के अनुसार, "चेरी की खेती कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में व्यापक रूप से होती है, मुख्य रूप से श्रीनगर, गांदरबल, शोपियां और बारामूला में। चेरी का अधिकांश उत्पादन गांदरबल जिले से आता है, जोकि ओलावृष्टि से प्रभावित नहीं हुआ।"

हालांकि, श्रीनगर और बारामूला के कुछ क्षेत्रों में चेरी की कुछ किस्में पक चुकी थीं, जब पिछले महीने ओलावृष्टि से फसलें प्रभावित हुई थीं। बागवानी अधिकारी ने बताय। उन्होंने कहा, "मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों के बावज़ूद, हम इस साल 3,000 हेक्टेयर भूमि पर 22,000 मीट्रिक टन चेरी की वार्षिक उपज के साथ बंपर फसल उत्पादन की उम्मीद करते हैं।"

ओलावृष्टि और फलों पर उनके प्रभाव के बारे में बात करते हुए, भट ने समझाया, "ओलावृष्टि के कारण, किसान चेरी पर कवकनाशी का उपयोग नहीं कर सकते हैं जो पकने की अवस्था में हैं। हालांकि, जिन क्षेत्रों में फल अभी तक पके नहीं हैं, किसान कैल्शियम क्लोराइड स्प्रे का उपयोग कर सकते हैं।"


अधिकारी ने बताया कि बागवानी विभाग ने संशोधित उच्च घनत्व वृक्षारोपण योजना के तहत चेरी की फसल को शामिल किया है और नई किस्मों के साथ चेरी की खेती के क्षेत्र का विस्तार करना है। यह योजना चेरी के व्यापक प्रचार की सुविधा प्रदान करेगी।

भट ने यह भी बताया कि सरकार किसानों को परिवहन और विपणन सहायता प्रदान कर रही है। उन्होंने कहा, 'फिलहाल हम शुरुआती सीजन के फलों की मार्केटिंग कर रहे हैं और हवाई मार्ग से ले जाने पर किसानों को 25 फीसदी सब्सिडी की पेशकश कर रहे हैं। हम मार्केटिंग पहल के लिए उद्यमियों के साथ सहयोग करने की भी योजना बना रहे हैं।'

बागवानी कश्मीर के निदेशक ने यह भी बताया कि विभाग ने मंडियों में फलों की समय पर ढुलाई सुनिश्चित करने के लिए वातानुकूलित रेफ्रिजरेटेड वैन की शुरुआत की है, और इस उद्देश्य के लिए इस साल के बजट में प्रावधान किए गए हैं।

फलों की बर्बादी को कम करने के प्रयास में, बागवानी विभाग सी-ग्रेड चेरी के विपणन के संबंध में उत्पादकों के साथ विचार-विमर्श कर रहा है, जिसका उपयोग जूस उत्पादन के लिए किया जा सकता है। भट ने आश्वासन दिया, "हम यह सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी सामान देंगे जिससे चेरी उत्पादन प्रभावी ढंग से हो सके और बर्बाद न हो।"

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