हज़ारों साल पुराने 'आम' की दिल्ली दरबार में ख़ास प्रदर्शनी

दिल्ली मैंगो फेस्टिवल का हर किसी को इंतज़ार रहता है। आम के इस दरबार में जहाँ किसानों को बाज़ार मिलता है, वहीं पारंपरिक किस्मों की पैदावार से जुड़ीं जानकारी भी मिलती है। इस साल भी इसमें आम से जुड़े तमाम संस्थानों और किसानों ने हिस्सा लिया।

Dr Shailendra RajanDr Shailendra Rajan   10 July 2023 1:13 PM GMT

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हज़ारों साल पुराने आम की दिल्ली दरबार में ख़ास प्रदर्शनी

32वें दिल्ली मैंगो फेस्टिवल के दौरान महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और उत्तराखंड राज्यों के आमों की प्रदर्शनी देखी जा सकता थी। लेकिन लखनऊ और पास के क्षेत्रों के आमों ने इस शो को सफल बनाने में सबसे अधिक मदद की।

आईसीएआर-सीआईएसएच, लखनऊ ने 300 से अधिक किस्मों की प्रदर्शनी की, जबकि मलिहाबाद, मुजफ्फरनगर, सीतापुर और सहारनपुर के आमों की प्रदर्शनी में उत्तर प्रदेश का प्रभाव साफ़ दिखा।

इस ख़ास आम उत्सव में क़रीब 90 प्रतिशत आम उत्तर प्रदेश से थे। जुलाई में हर साल आयोजित होने वाला यह कार्यक्रम न केवल आम प्रेमियों को आकर्षित करता है, बल्कि बागवानी करने वालों को भी आम से जुड़ी बारीकियों को समझने का मौका देता है।


दिल्ली मैंगो फेस्टिवल का आयोजन आम प्रेमियों को खुदरा मार्केट में उपलब्ध आमों के अलावा निर्मित उत्पादों और विविधता की एक शानदार प्रदर्शनी देखने का मौका देता है। बागवान न केवल अपनी अनोखी किस्मों की प्रदर्शनी करते हैं, बल्कि वे आमों की बिक्री के भी उत्साहित होते हैं। सीआईएसएच द्वारा विकसित किए गए मैंगो विविधता संरक्षण सोसायटी के सदस्य राम किशोर ने बताया कि इससे उन्हें अपनी गैर-वाणिज्यिक किस्मों के लिए बेहतर बिक्री मूल्य प्राप्त करने का रास्ता खुलता है।

ये महोत्सव उन आम किस्मों की बिक्री में मदद कर रहे हैं जो अपने ख़ास गुणों के कारण प्रसिद्ध हैं और ख़ासकर खरीदारों को आकर्षित करते हैं। इस महोत्सव में न केवल आम बल्कि अनेक अचार, चटनी, आम मिक्स पाउडर, आम का पापड़ और उससे बने दूसरे उत्पाद भी उपलब्ध होते हैं। युवाओं और बच्चों ने दिल्ली में प्रदर्शित आमों की विविधता के अनोखे दृश्य का आनंद लिया, जहाँ आमतौर पर दशहरी, लंगड़ा, चौसा, बंगनापल्ली, अल्फांसो, केसर के अलावा अन्य किस्मों को देखना मुश्किल होता है।

आम महोत्सवों के कारण कई किसानों को न सिर्फ प्रसिद्धि मिली है उनकी आजीविका में भी सहायता मिल रही है। कई लोगों को आमों की किस्मों को संरक्षित रखने में इससे मदद मिल रही है ।

क्यों आम हैं ख़ास?

दो दशकों से भी अधिक समय से आम की इस नुमाइश में देश ही नहीं दूसरे मुल्कों से भी लोग इसके दीदार और स्वाद के लिए जुटते रहे हैं।

एक आँकड़े के मुताबिक दुनिया में कुल आम के उत्पादन की 54 प्रतिशत किस्में भारत से जुड़ी हैं। यही नहीं पूरी दुनिया का 46 फीसदी आम हिंदुस्तान में पैदा होता है। भारत में सिर्फ रेगिस्तान और समुद्रतल से 1000 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों को छोड़कर पूरे देश में आम की ख़ेती होती है। दुनिया के हर देश में इसके दीवाने हैं। वजह भी है ,विश्व में आम की 1365 से भी ज़्यादा किस्में पाई जाती हैं , जिसमें से लगभग 1000 किस्में भारत में ही होती हैं। हिंदुस्तान में 1.23 मिलियन हेक्टेयर ज़मीन पर आम की ख़ेती होती है, जिसमें 11 मिलियन टन की पैदावार होती है।


दिल्ली मैंगो फेस्टिवल के दौरान पूसा इंस्टीट्यूट, आईसीएआर-सीआईएसएच और आईआईएचआर बेंगलुरू द्वारा प्रदर्शित हाइब्रिड आम की किस्मों को काफी प्रशंसा मिली। इसका मुख्य कारण इन आमों के अत्यंत आकर्षक रंग के कारण देखने वालों ने उन्हें सबसे अधिक पसंद किया। अम्बिका और अरुणिका और अन्य रंगीन आमों को देखने के बाद लोग इन्हें खरीदने में उत्सुक हो गए और इन्हें अपने किचन गार्डन में पौधे के रूप में रखने के इच्छुक हो गए। कुछ लोगों ने चिल्टा खास किस्म को देखने में रुचि रखी, जिसमें हरे रंग की धारियाँ होती हैं और इसका आकर्षक रंग लोगों को आकर्षित करता है। सामान्य आँखों से हटकर छोटे आकार के हेलो ने भी सबको आकर्षित किया।

दिलचस्प बात ये है कि कई लोग भारत में इतनी प्रजातियाँ मौज़ूद होने पर हैरान होते हैं और कुछ लोग इसे कृत्रिम आम समझते हैं। अंगूर दाना, रसगुल्ला, बेनजीर संडीला, लेमन, हुस्न-ए-आरा, करेला, हाथी झूल और नाज़ुक बदन जैसे अद्वितीय नामों के कारण कई लोग इन आमों के नामों को आकर्षित करते हैं। बहुत सारे लोगों को नाज़ुक बदन आम की किस्म के बारे में जानने में रुचि होती है।


आम की इस प्रदर्शनी को दिलचस्प बनाने के लिए तरह तरह की प्रतियोगिताएं भी होती है। इनमें आम खाने के अलावा आम के किसानों के बीच इसकी पैदावार को लेकर चर्चा होती है। आम खाने की प्रतियोगिता देखने लायक एक रोमांचक घटना है। कई लोग तो आम खाने की प्रतियोगिता में ही भाग लेने के लिए इस मेले में आते हैं।

इस रोचक आम महोत्सव ने आम प्रेमियों के साथ-साथ देशभर के किसानों को भी समृद्धि प्रदान की है। यह एक संघर्षशील व्यापार मॉडल का उदाहरण है जहाँ संगठित प्रयासों के जरिये किसानों को आपसी सहयोग और मार्गदर्शन मिलता है। आम महोत्सव ने देशभर में आम के संरक्षण, प्रदर्शन और विपणन को बढ़ावा देने के साथ आम संबंधी उद्यमों के विकास को समर्थन किया है।

(डॉ शैलेंद्र राजन, केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ के पूर्व निदेशक हैं)

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