शहर में रहते हैं? बिना मिट्टी के छत या बालकनी में उगाइए सब्ज़ियाँ

श्रीनगर में अपने आंगन में आशिक हुसैन पालक, धनिया, पुदीना और दूसरी सब्जियाँ उगाते हैं, जिनमें से अधिकांश 45 दिनों में तैयार हो जाती हैं। कश्मीर घाटी में हाइड्रोपोनिक्स या मिट्टी रहित खेती की तरफ लोगों का रुझान बढ़ रहा है।

Mudassir KulooMudassir Kuloo   27 Oct 2023 12:29 PM GMT

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शहर में रहते हैं? बिना मिट्टी के छत या बालकनी में उगाइए सब्ज़ियाँ

श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर। आशिक हुसैन पेशे से इलेक्ट्रीशियन हैं, लेकिन उन्हें बागवानी पसंद है। श्रीनगर के हजरतबल में कांदर मोहल्ला सईदाकदल के रहने वाले 27 साल के आशिक को हमेशा इस बात की निराशा रही है कि वह अपने जुनून को पूरा नहीं कर सके, सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके पास सब्जियाँ उगाने के लिए पर्याप्त ज़मीन नहीं थी।

लेकिन तीन महीने पहले उन्होंने अपने एक दोस्त से सीखा कि सब्जियाँ बिना मिट्टी के और पोषक तत्वों से भरपूर पानी में कैसे उगाई जा सकती हैं। खेती की यह नई तकनीक, जो घाटी में तेजी से लोकप्रिय हो रही है, हाइड्रोपोनिक्स या मिट्टी रहित खेती के रूप में जानी जाती है।

आशिक अब पालक, धनिया, पुदीना और अन्य सब्जियाँ उगा रहे हैं, जिनमें से अधिकांश 45 दिनों में तैयार हो जाती हैं। वो अब घर पर पीवीसी प्लास्टिक पाइप में अपने परिवार के खाने भर की सब्जियाँ उगा लेते हैं।


आशिक ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मुझे पता चला कि हाइड्रोपोनिक्स में मुझे बहुत अधिक जगह की ज़रूरत नहीं होती है और पोषक तत्वों से भरपूर पानी के लिए मुझे केवल दस पीवीसी पाइप, एक स्टैंड और एक मोटर की ज़रूरत होती है।"

उन्होंने तुरंत अपने आंगन के एक हिस्से को हाइड्रोपोनिक फार्म में बदल दिया और सब्जियाँ उगा रहे हैं। उन्होंने कहा, "खेत, जिसका क्षेत्रफल 3x6 फीट से अधिक नहीं है, उसमें पालक, साग खन्यारी (कोलार्ड ग्रीन्स) धनिया, पुदीना, सब 45 दिनों में पैदा करता हूँ ।"

हाइड्रोपोनिक फार्म स्थापित करने के लिए हुसैन को केवल 25,000 रुपये खर्च करने पड़े। “मैंने पहले ही चार बार साग खन्यारी की कटाई की है और हमारे परिवार के लिए पर्याप्त है। हम कई हफ्तों तक उनकी पत्तियाँ तोड़ सकते हैं। '' हुसैन ने कहा, जिनके परिवार में पिता, भाई और एक बहन हैं। उन्होंने कहा, "आने वाले दिनों में, हम पालक और फिर पुदीना और धनिया की कटाई करेंगे।"

हुसैन ने कहा कि उन्हें जम्मू-कश्मीर सरकार के कृषि विभाग से काफी सहयोग मिला।

कृषि विभाग, कश्मीर के निदेशक इकबाल चौधरी, हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के पक्ष में थे। “पौधों को पानी आधारित घोल से आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त होते हैं; इसमें नाइट्रोजन, पोटेशियम, कैल्शियम होता है और पानी के साथ मिलकर पौधों को जरूरी पोषक तत्व प्रदान करता है। एक मोटर-चालित प्रणाली पोषक तत्वों के घोल को पाइपों के माध्यम से प्रसारित करती है, जिससे पारंपरिक खेती के लिए भूमि की कमी वाले लोगों के लिए यह सुलभ हो जाता है। ” उन्होंने समझाया।


हालाँकि उनके पास सटीक आंकड़े नहीं हैं, लेकिन उन्होंने दावा किया कि कई लोग जिनके पास ज़मीन नहीं है, वे मिट्टी रहित खेती के बारे में जानने और इसे अपनाने के लिए विभाग से संपर्क कर रहे हैं।

हाइड्रोपोनिक्स के फायदों के बारे में विस्तार से बताते हुए आशिक हुसैन ने कहा कि इसमें ज़्यादा मेहनत नहीं लगती। “इसमें कम मेहनत लगती है, निराई भी नहीं करनी पड़ती, और इसे कहीं भी लगाया जा सकता है; यहाँ तक कि मेरे जैसे खेती के बारे में सीमित जानकारी रखने वाले लोग भी आसानी से चीजें उगा सकते हैं। '' उन्होंने कहा कि यह कश्मीर की सर्दियों के लिए एक आदर्श तकनीक है, क्योंकि फसलों को बर्फबारी से सुरक्षित रखा जा सकता है और आसानी से हटाया जा सकता है।

मिट्टी रहित खेती में, उगाए जाने वाले पौधों के बीजों को एक सप्ताह से अधिक समय तक अंकुरित किया जाता है और फिर पीवीसी पाइपों में लगाया जाता है, जहाँ पोषक तत्वों से भरपूर पानी का संचलन उन्हें स्वस्थ रखता है।

“हमें केवल पानी, उसके लिए विशिष्ट पोषक तत्वों और समय-समय पर पानी को प्रसारित करने वाली बिजली के प्रति सचेत रहना है। जल परिसंचरण पौधों को पोषक तत्व और ऑक्सीजन प्रदान करता है। एक दिन में कुछ घंटे की बिजली काम करने के लिए पर्याप्त है। ” हुसैन ने समझाया।

हुसैन के दोस्तों और पड़ोसियों ने उनकी मेहनत को सोशल मीडिया पर साझा किया और यह घाटी में अन्य लोगों को मिट्टी रहित खेती करने के लिए प्रेरित कर रहा है।


मध्य कश्मीर के गांदरबल जिले के मेहराज उद दीन उनमें से एक हैं। उन्होंने पीवीसी पाइपों में उगने वाली सब्जियों की तस्वीरें देखीं और आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने ऑनलाइन और अधिक सीखने का फैसला किया और अपनी हाइड्रोपोनिक खेती की यात्रा शुरू करने के लिए पीवीसी पाइप, लोहे के स्टैंड और एक मोटर भी खरीद लिया है।

मेहराज, जो एक सरकारी कर्मचारी हैं ने गाँव कनेक्शन को बताया, "यह विधि मुझे पसँद आई क्योंकि पारंपरिक खेती के विपरीत जिसमें बहुत ज़्यादा मेहनत की ज़रूरत होती है, यह तकनीक विशेष रूप से उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो आजीविका के लिए अन्य काम करते हैं।"

उन्होंने आगे कहा, "सब्जियों की देखभाल के लिए दिन में सिर्फ 20-30 मिनट ही काफी हैं और इस तरह से उगाए गए उत्पाद बीमारी के प्रति कम संवेदनशील होते हैं।"

शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी कश्मीर के रिसर्च स्कॉलर बिलाल अहमद ने कहा कि हाइड्रोपोनिक्स में पारंपरिक मिट्टी आधारित खेती की तुलना में काफी कम पानी का उपयोग होता है।

“हाइड्रोपोनिक खेती में उसी पानी का इस्तेमाल करते रहते हैं, इससे कम पानी लगता है। इसके अलावा, पोषक तत्व पानी में घुल जाते हैं और सीधे पौधों की जड़ों तक पहुँचाए जाते हैं। पौधों को वह मिलता है जिसकी उन्हें ज़रूरत होती है, जिससे पानी का अत्यधिक उपयोग कम हो जाता है। " उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया।

उन्होंने आगे कहा, "यह एक स्थायी विकल्प है, खासकर पानी की कमी वाले क्षेत्रों में; हाइड्रोपोनिक तरीके से पौधे उगाने से मिट्टी से पैदा होने वाले कीटों और बीमारियों का ख़तरा कम हो सकता है।"

“हाइड्रोपोनिक्स मौसमी बदलावों से स्वतंत्र होकर साल भर खेती करने में सक्षम बनाता है, हाइड्रोपोनिक सिस्टम शहरी क्षेत्रों में भी एक विकल्प है और इसे घर के अंदर या वर्टिकल फार्मिंग के रूप में किया जा सकता है। ” अहमद ने कहा।

#hydroponics #JammuKashmir 

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