लीची का बढ़िया उत्पादन चाहते हैं तो अभी से ये तैयारी शुरु कर दें किसान

फरवरी महीने का तीसरा हफ्ता चल रहा है। इस समय लीची उत्पादक किसान यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि उन्हें फरवरी माह में क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए।

Dr SK SinghDr SK Singh   15 Feb 2024 12:15 PM GMT

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लीची का बढ़िया उत्पादन चाहते हैं तो अभी से ये तैयारी शुरु कर दें किसान

फरवरी-मार्च महीने में लीची में फूल आने लगते हैं। अगर बढ़िया उत्पादन पाना है तो इस समय लीची के बाग में ख़ास ध्यान देना चाहिए।

लीची के पेड़ फूल आने की अवधि के दौरान 20-30°C के बीच गर्म तापमान पसंद करते हैं। उन्हें उच्च आर्द्रता स्तर 70-90% की ज़रूरत होती है।

पर्याप्त धूप, अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और न्यूनतम हवा भी सफल फूल आने के लिए ज़रूरी होते हैं। इसके साथ ही लीची के पेड़ों को फूल आने के लिए उनके सुप्त चरण के दौरान ठंडे तापमान (68°F या 20°C से नीचे) की अवधि से लाभ होता है। बढ़िया फल उत्पादन पाने के लिए लीची की खेती में फूलों का प्रबंधन महत्वपूर्ण है।

लीची को फलों की रानी कहते है। इसे प्राइड ऑफ बिहार भी कहते हैं। कुल लीची उत्पादन में लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा बिहार का है।

भारत में 92 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती हो रही है, जिससे कुल 686 हज़ार मीट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है। जबकि बिहार में लीची की खेती 32 हज़ार हेक्टेयर में होती है, जिससे 300 मीट्रिक टन लीची का फल प्राप्त होता है। बिहार में लीची की उत्पादकता आठ टन/हेक्टेयर है जबकि राष्ट्रीय उत्पादकता 7.4टन/हेक्टेयर है।


सबसे पहले लीची के फूलों को समझते हैं

जलवायु और विविधता के आधार पर, लीची के पेड़ में आमतौर पर देर से सर्दियों या शुरुआती वसंत के दौरान फूल आते हैं। पुष्पन तापमान, वर्षा, आर्द्रता और पोषण सहित विभिन्न कारकों से प्रभावित होता है।

कटाई-छंटाई भी है ज़रूरी

कटाई छंटाई पेड़ के आकार को बनाए रखने, सूखी लकड़ी को हटाने और वायु प्रवाह को बढ़ावा देने में मदद करती है। इससे रोग और कीट का आक्रमण कम होता है। युवा पेड़ों की ट्रिमिंग और प्रूनिंग करने से मजबूत मचान विकास को बढ़ावा मिलता है, जो परिपक्व पेड़ों में फूल और फल उत्पादन को प्रोत्साहित करता है। फूलों वाली टहनियों को अत्यधिक हटाने से बचने के लिए छंटाई ध्यान से की जानी चाहिए।

पोषक तत्व प्रबंधन

फूलों की शुरुआत और विकास के लिए उचित पोषण ज़रूरी है। मृदा परीक्षण पोषक तत्वों की कमी को समझने और उचित उर्वरक रणनीति तैयार करने में मदद करता है। नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ संतुलित उर्वरक स्वस्थ फूलों के विकास में मदद करता है। लीची में (प्रजाति के अनुसार) मंजर आने के 30 दिन पहले पेड़ पर जिंक सल्फेट की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से घोल बना कर पहला छिड़काव करना चाहिए।


इसके 15-20 दिन के बाद दूसरा छिड़काव करने से मंजर और फूल अच्छे आते हैं। फल लगने के 15 दिन बाद बोरेक्स की 4 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर 15 दिनों के अंतराल पर दो या तीन छिड़काव करने से फलों का झड़ना कम हो जाता है; मिठास में वृद्धि होती है और फल के आकार व रंग में सुधार होने के साथ-साथ फल के फटने की समस्या में भी कमी आती है।

समय पर करें सिंचाई

लीची के बगीचे में अच्छी फलन और उत्तम गुणवत्ता के लिये मंजर आने के सम्भावित समय से तीन माह पहले से लेकर फूल में पूरी तरह से फल लगने से ठीक पहले तक लीची के बाग में सिंचाई न करें। 10 वर्ष से अधिक पुराने बाग में कोई भी दूसरी फसल को नही लेना चाहिए। बाग़ की बहुत हल्की गुड़ाई साफ सफाई कर सकते हैं, लेकिन फूल आने के पहले से लेकर पूरी तरह से फल लग जाने से पहले तक सिंचाई बिल्कुल न करें। नहीं तो नुकसान हो सकता है।

फूल बनने और फल लगने के लिए मिट्टी की पर्याप्त नमी बरकरार रखना चाहिए। मौसम की स्थिति, मिट्टी की नमी के स्तर और पेड़ों की वृद्धि अवस्था के आधार पर सिंचाई करनी चाहिए।

कीट और रोग प्रबंधन को न करें नज़र अंदाज

अगर बाग में मंजर अभी तक नहीं आए हैं या 2 प्रतिशत से कम फूल आए हैं; तो उस बाग में इमिडाक्लोप्रिड एक मिली लीटर प्रति लीटर और घुलनशील गंधक की दो ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।


एफिड्स, माइट्स और फल छेदक जैसे कीट फूलों को नुकसान पहुँचाते हैं और फलों का बनना कम करते हैं। नियमित निगरानी से कीटों का शीघ्र पता लगाने और कल्चर, जैविक या रासायनिक नियंत्रण उपायों का उपयोग करके समय पर हस्तक्षेप करने में मदद मिलती है। एन्थ्रेक्नोज और पाउडरी फफूंदी जैसे रोग फूलों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं और फलों की उपज को कम करते हैं। लीची के बाग में माइट से ग्रसित शाखाओं को काट कर एक जगह एकत्र करके जला देना चाहिए।

लीची की खेती में मधुमक्खियों का अहम योगदान

लीची के फूल मुख्यतः मधुमक्खियों द्वारा कीट-परागित होते हैं। फूल आते समय पेड़ पर किसी प्रकार के किसी भी कीटनाशी दवा का छिड़काव नहीं करना चाहिए। फूल आते समय लीची के बगीचे में 15 से 20 मधुमक्खी के बक्से प्रति हेक्टेयर की दर से रखना चाहिए। इससे परागण बहुत अच्छा होता है और फल कम झड़ते है साथ ही फल की गुणवत्ता भी अच्छी होती है। आवास संरक्षण और मधुमक्खी पालन प्रबंधन के माध्यम से मधुमक्खियों की आबादी को बनाए रखने से परागण क्षमता में वृद्धि होती है। सीमित मधुमक्खी गतिविधि वाले बगीचों में, पर्याप्त फल सेट सुनिश्चित करने के लिए मैन्युअल परागण की ज़रूरत हो सकती है।

पर्यावरण प्रबंधन

फूल आने के दौरान पाले से सुरक्षा महत्वपूर्ण है, क्योंकि लीची के फूलों को पाले से क्षति होने की आशंका रहती है। ओवरहेड स्प्रिंकलर से सिंचाई करने से बाग के तापक्रम को 5 डिग्री सेल्सियस कम करने में सहायक होता है। विंड ब्रेक प्रदान करने से फूलों और युवा फलों के गुच्छों को हवा से होने वाली क्षति को कम किया जा सकता है।

हार्मोनल विनियमन भी है ज़रूरी

जिबरेलिन और साइटोकिनिन जैसे विकास नियामकों का अनुप्रयोग फूल आने और फल लगने को प्रभावित कर सकता है। पेड़ों के स्वास्थ्य और फलों की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव से बचने के लिए हार्मोनल उपचार के समय और एकाग्रता को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करने की आवश्यकता है। फल लगने के एक सप्ताह बाद प्लैनोफिक्स की एक मिली. दवा को प्रति 3 लीटर की दर से पानी में घोलकर एक छिड़काव करके फलों को झड़ने से बचाया जा सकता है।

समय-समय करते रहें निगरानी

फूलों की प्रगति, फल लगने और पेड़ के स्वास्थ्य की नियमित निगरानी से प्रबंधन प्रथाओं में समय पर समायोजन संभव हो पाता है। विस्तृत रिकॉर्ड रखने से विभिन्न हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने और समय के साथ प्रबंधन रणनीतियों को परिष्कृत करने में मदद मिलती है।

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