शौक को बनाया कमाई का ज़रिया आज नर्सरी में दे रहे हैं 25 लोगों को रोज़गार

सौरभ त्रिपाठी ने इंजीनियर की नौकरी छोड़कर अपने पुराने शौक नर्सरी को ही व्यवसाय बना लिया है; आज वो नर्सरी चलाने के साथ लोगों को टैरेस गार्डन, लैंड स्केपिंग भी सिखाते हैं।

Manvendra SinghManvendra Singh   7 Dec 2023 8:56 AM GMT

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लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

लखनऊ के सौरभ त्रिपाठी ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद जब नर्सरी की शुरुआत की तो लोगों ने कहा बीटेक करने के बाद माली बनोगे, किसानी करोगे? लेकिन सौरभ अपने बचपन के शौक को व्यवसाय में बदलना चाहते थे, और वही किया; आज वो खुश हैं न सिर्फ अपने काम से बल्कि टीम से भी जो उनके साथ है।

सौरभ की नर्सरी में 25 लोगों को रोज़गार मिला है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इंदिरा नगर में है ग्रीन प्लैनेट सौरभ नर्सरी, जहाँ पर आपको हज़ारों किस्मों के पौधे मिल जाएँगे। इस नर्सरी की शुरुआत की है 38 साल के सौरभ त्रिपाठी ने।

सौरभ गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "मैंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक किया है, 2008 में मेरा बीटेक पूरा हुआ और मैं नौकरी करने के लिए बाहर भी गया, उसी समय देश में मंदी आ गई थी, बहुत कंप्रोमाइज करके मुझे नौकरी करनी पड़ रही थी।"


वो आगे कहते हैं, "तब मुझे लगा कि कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे ठीक-ठाक कमाई भी हो जाए, क्योंकि मुझे बचपन से ही बागवानी का शौक था, तो लगा कि क्यों न गार्डनिंग में ही कुछ किया जाए; 2008 में ही मैंने ये व्यवसाय शुरू किया था, आज हम पौधे तैयार करने के साथ ही, लैंड स्केपिंग जैसे बहुत से प्रोजेक्ट पर काम करते हैं।"

लेकिन सब इतनी आसानी से हो जाए तो फिर क्या ही कहना, यही हाल सौरभ के साथ भी हुआ। "अपनी लाइन से हटकर जब भी आप कुछ नया शुरू करना चाहेंगे तो अपने आस पास, घर-परिवार सभी से आपको निगेटिव बातें ही सुनने को मिलेंगी; मेरे लिए कुछ ज़्यादा था क्योंकि एक इंजीनियर होने के बाद, मैंने किसान और माली का काम शुरू किया।" सौरभ ने कहा।


वो आगे बताते हैं, "एक समय ऐसा आया कि कोशिश करता था कि रिश्तेदारों से मिलूँ ही नहीं, जब भी आते कुछ टाँगे खींचते, निगेटिव बातें करते, उनकी बातें सुन सुनकर मेरे घर वाले भी कहीं न कहीं मेरे प्रति निगेटिव हो चुके थे; लेकिन वो मुझसे कह नहीं पाते थे, लेकिन मेरे मन में था कि इस काम में भी सफलता हासिल की जा सकती है। आज जब मैं इतने आगे बढ़ गया हूँ और इतने लोगों को रोज़गार दे रहा हूँ तो वही लोग अब आकर तारीफ़ करते हैं।"

आज सौरभ की नर्सरी में हज़ार से अधिक किस्म के पौधे हैं और इन सभी के बारे में सौरभ को सब कुछ पता है। अभी भी सौरभ सीखते ही रहते हैं। वो कहते हैं, "एक चाहत थी सीखने की; अगर आपको सीखने में इंटरेस्ट है तो माध्यम अपने आप आ ही जाते हैं, यही मेरे साथ भी हुआ; इंटरनेट, एनबीआरआई, सीमैप और किताबों से मैं सीखता गया। मुझे प्लांट्स के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी तो थी ही लेकिन इन सबसे मुझे जानकारी मिलती गई।"


"आज मेरी नर्सरी में एक हज़ार से ज़्यादा किस्मों के पौधे हैं और मैं ये गर्व से कह सकता हूँ कि इनमें ज़्यादातर पौधों के बॉटनेकिल नेम मैं जानता हूँ; क्योंकि शुरु से ही मुझे पेड़-पौधों का शौक था इसलिए मैं और सीखता गया।" सौरभ ने आगे कहा।

सौरभ की नर्सरी में 25 से ज़्यादा लोग काम करते हैं। इनमें से मोहित और गीता भी हैं, इन्हें भी हर पौधे का नाम रट गया है, कौन सा पौधा कितने दिनों में तैयार होगा, बल्ब से लगेगा या फिर बीज से इन्हें सब पता है। लखीमपुर के रहने वाले मोहित गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "मुझे यहाँ काम करते हुए आठ साल हो गए, मुझसे किसी भी पौधे का नाम पूछ लीजिए मुझे सब पता है। यहाँ इतना कमा लेता हूँ कि मेरा घर अच्छे से चल जाता है।"

कमाई के बारे में सौरभ बताते हैं, "आज इतना कमा लेता हूँ कि जितनी मैं अपनी इंजीनियरिंग नौकरी में सैलरी पाता था, उसका तीन-चार गुना अपने माली को दे पाता हूँ।"

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