केला की खेती से पहले उस खेत में लगाइए ये फसल, घट जाएगी रासायनिक उर्वरकों की लागत

जिस खेत में केला की खेती करना हो उसमें हरी खाद वाली फसलें लगाएँ, इस से रासायनिक उर्वरकों के ऊपर निर्भरता में भारी कमी आएगी।

Dr SK SinghDr SK Singh   6 April 2024 1:01 PM GMT

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केला की खेती से पहले उस खेत में लगाइए ये फसल, घट जाएगी रासायनिक उर्वरकों की लागत

क्या आपको मालूम है कि लगातार रासायनिक खाद को खेत में डालने से क्या हो रहा है? नहीं पता है ना? हम बता देते हैं, इसके इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता घटती जा रही है। ऐसे में आप इसकी जगह हरी खाद डाल करके न केवल अच्छा उत्पादन पा सकते हैं, साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाई जा सकती है।

हरी खाद का अर्थ उन पत्तेदार फसलों से है, जिनकी बढ़वार जल्दी होती है।

ऐसी फसलों को फल आने से पहले जोत कर मिट्टी में दबा दिया जाता है। इन फसलों का इस्तेमाल में आना ही हरी खाद देना कहलाता है।

आजकल कहीं कहीं पर गेहूँ की फसल कट चुकी है या कटने ही वाली होगी। केला लगाने से पहले किसान हरी खाद को तैयार कर सकते हैं। जो किसान केला की खेती करने के इच्छुक हैं, उन्हें तैयारी अभी से शुरू कर देना चाहिए।

रबी फसलों की कटाई के बाद और केला लगाने के बीच में हमें कुल 90 से 100 दिन का समय मिल जाता है। इस समय का उपयोग मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिये किया जाना चाहिए, क्योंकि हमें पता है की केला की खेती में बहुत ज्यादा पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है।

मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका है, खेत में हरी खाद का प्रयोग। हरी खाद उस सहायक फसल को कहते हैं, जिसकी खेती मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने और उसमें जैविक पदाथों की पूर्ति करने के लिए की जाती है।

इससे उत्पादकता तो बढ़ती ही है, साथ ही यह ज़मीन के नुकसान को भी रोकती है। यह खेत को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, जस्ता, तांबा, मैंगनीज, लोहा और मोलिब्डेनम वगैरह तत्त्व भी मुहैया कराती है। यह खेत में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ा कर उस की भौतिक दशा में सुधार करती है।

हरी खाद को अच्छी उत्पादक फसलों की तरह हर प्रकार की भूमि में जीवांश की मात्रा बढ़ाने में इस्तेमाल कर सकते हैं, जिस से भूमि की सेहत ठीक बनी रह सकेगी।

इस क्रम में ज़रूरी है मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए अप्रैल मई माह मे सनई, ढैंचा, मूंग , लोबिया में से किसी की बुवाई करें , बेहतर होगा कि ढैंचा लगाएँ, क्योंकि इसकी बढ़वार इस समय बहुत अच्छी होती है।

जिस मिट्टी का पी.एच. मान 8.0 के ऊपर जा रहा हो, उस मिट्टी के लिए ढैंचा एक उपयुक्त हरी खाद का विकल्प है। यह मिट्टी की क्षारीयता को भी कम करता है। जिन खेतों में मृदा सुधारक रसायन यथा जिप्सम या पाइराइट का प्रयोग हो चुका है और लवण निच्छालन की क्रिया सम्पन्न हो चुकी हो वहाँ ढैंचा को हरी खाद के लिए लगाना चाहिये।

हरी खाद के अन्दर वायुमंडलीय नत्रजन को मृदा में स्थिर करने की छमता होती है और मिट्टी में रासायनिक, भौतिक, एवं जैविक क्रियाशीलता में वृद्धि के साथ-साथ केला की उत्पादकता फलों की गुणवत्ता और अधिक उपज प्राप्त करने में भी सहायक होता है।

अप्रैल- मई माह में खाली खेत मे पर्याप्त नमी के लिए हल्की सिंचाई करके 45-50 किलोग्राम ढैंचा के बीज की बुवाई करते है एवं फसल जब लगभग 45-60 दिन (फूल आने से पूर्व) की हो जाती है तब ढैंचा को मिट्टी पलटने वाले हल से मिट्टी में दबा देते हैं। इससे केला की रोपाई से पूर्व एक अच्छी हरी खाद तैयार हो जाती है।

इसे मिट्टी मे दबाने के बाद 1 किग्रा यूरिया प्रति बिस्वा (1360 वर्ग फीट)की दर से छिडकाव करने से एक सप्ताह के अन्दर ढैचॉ खूब अच्छी तरह से सड़ कर मिट्टी में मिल जाता है । इस प्रकार से खेत केला की रोपाई के लिए तैयार हो जाता है । ढैंचा के अन्दर कम उपजाऊ भूमि में भी खूब अच्छी तरह से उगने की शक्ति होती।

ढैंचा के पौधे भूमि को पत्तियों एवं तनों से ढक लेते है, जिससे मिट्टी का क्षरण कम होता है। इस तरह से मिट्टी में कार्बनिक एवं जैविक पदार्थों की अच्छी मात्रा खेत में एकत्र हो जाती है। राइजोबियम जीवाणु की मौजूदगी में ढैंचा की फसल से लगभग 80-150 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर स्थिर होती है।

हरी खाद से मिट्टी के भौतिक एवं रासायनिक गुणों में प्रभावी परिवर्तन होता है जिससे सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता एवं आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता में वृद्धि होती है। हरी खाद मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए उम्दा और सस्ती जीवांश खाद है।

KisaanConnection #banana farming 

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