बासमती से कम नहीं है धान की ये नई किस्म, सिर्फ 115 दिनों में हो जाती है तैयार

रबी की फसलों की कटाई के साथ ही किसान धान की खेती तैयारी शुरु कर देते हैं, ऐसे में अगर आप भी किसी नई किस्म की खेती करना चाहते हैं तो 'मालवीय मनीला सिंचित धान-1' लगा सकते हैं।

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धान जैसी फसलों की खेती करने वाले किसान चाहते हैं कि जल्दी से फसल तैयार हो जाए और बढ़िया उत्पादन भी मिले; लेकिन ज़्यादातर किस्मों के तैयार होने में 130-140 दिन लग जाते हैं, जिससे आगे की किस्मों में देरी हो जाती है। इसलिए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने धान की नई किस्म विकसित की है।

क्या ख़ास है नई किस्म में?

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन के हेड डॉ श्रवण कुमार सिंह धान की इस नई किस्म के बारे में गाँव कनेक्शन को बताते हैं, "बीएचयू और आईआरआरआई फिलीपींस के वैज्ञानिकों ने मिलकर इस किस्म को विकसित किया है; इस किस्म की खास बात यह कि यह 115-118 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, यही नहीं इतने कम दिनों में इसका औसत उत्पादन 55 से 64 कुंतल प्रति हेक्टेयर मिलता है और इतने कम दिनों में इतना उत्पादन देने वाली कोई दूसरी किस्म नहीं है।"

अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (ईरी) फिलीपींस और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के सँयुक्त प्रयासों से नई किस्म 'मालवीय मनीला सिंचित धान-1' को विकसित किया गया है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिक प्रो श्रवण कुमार सिंह और उनकी टीम ने 15 सालों की मेहनत से इस किस्म को विकसित किया है।


अभी तक जो भी कम दिनों की किस्में हैं, उनके दाने बहुत मोटे हैं, लेकिन इसके चावल की लंबाई 7.0 मिलीमीटर और मोटाई 2.1 मिमी है। यह एक लंबा और पतले दाने वाला चावल है। ये किस्म बासमती किस्म की नहीं है, फिर भी इसके चावल के दाने बिल्कुल बासमती की तरह लगते हैं।

डॉ श्रवण कुमार सिंह आगे बताते हैं, "औसतन जब बासमती जैसी किस्मों की मिलिंग होती है तो उसमें 40, 45, 50% खड़ा दाना भी नहीं मिलता है, लेकिन इस किस्म की जो ऑल इंडिया टेस्टिंग है, उसमें आईसीएआर की एनुअल रिपोर्ट में 63.5% खड़ा दाना मिलता है; लेकिन किसानों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि 115-118 दिनों में अगर ये फसल तैयार हो गई है तो इसकी समय रहते हार्वेस्टिंग कर लें।"

अगर दूसरी किस्मों से इस किस्म की तुलना करें तो किसान सांभा मंसूरी धान लगा रहे हैं, जिसकी औसत उपज 60-65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। लेकिन यह किस्म 155 दिनों में तैयार होती है, ऐसे में किसानों का खेत 35 दिन पहले खाली हो जाता है, तब किसान दूसरी उपज आसानी से ले सकता है। जैसे किसान ने इस किस्म की कटाई के बाद मटर लगा दी और मटर के बाद जब खेत खाली हुआ तो गेहूँ लगा दिया, ऐसे में किसान कई फसलें ले सकते हैं।


"किसी भी किस्म को बनाने के बाद दो सालों तक उसका ट्रायल हम अपने स्टेशन पर करते हैं, उसके बाद उसका ट्रायल पूरे देश के केंद्रों पर किया जाता है, अगर ट्रायल सही नहीं होता तो कई किस्में रिजेक्ट भी हो जाती हैं; उत्तर प्रदेश के 11 केंद्रों पर इसका ट्रायल किया गया, यहाँ पर भी अच्छा रिजल्ट मिला है," प्रो श्रवण ने आगे कहा।

कैसे रखते हैं नई किस्म का नाम

डॉ श्रवण इस किस्म के नाम के बारे में बताते हैं, "आईआरआरआई फिलीपींस में है और इसकी राजधानी मनीला है और हम बीएचयू में जो भी किस्में विकसित करते हैँ, उनके नाम मालवीय से ही रखते हैं तो हमने सोचा क्यों न इसका नाम 'मालवीय मनीला सिंचित धान-1' रखा जाए।"

वैज्ञानिक इस किस्म के बीज उत्पादन की तैयारी कर रहे हैं, खरीफ सीजन में उत्तर प्रदेश, बिहार और उड़ीसा के किसानों के लिए 'मालवीय मनीला सिंचित धान-1 के बीज उपलब्ध होंगे।

देश में मुख्य तौर पर तीन राज्यों में चावल का उत्पादन होता है, जिसमें पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब है। पश्चिम बंगाल सबसे अधिक चावल का उत्पादन करता है, जिसका कुल योगदान 13.62 फीसदी है। ये तीन राज्य भारत में 36 फीसदी चावल उत्पादन के लिए जाने जाते हैं। इनके अलावा तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ में चावल की खेती होती है।

चावल एक रोपाई वाली फसल है, जिसकी खेती के लिए 100 मिलीमीटर से अधिक वर्षा और 25 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान चाहिए होता है।

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