जानिए कल्पवृक्ष नारियल का इस्तेमाल पालेकर खाद्य जंगल पंच स्तरीय मॉडल में क्यों और कैसे करना है ज़रूरी?

प्राकृतिक ख़ेती से दुनिया का परिचय कराने वाले देश के सबसे बड़े कृषि वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ सुभाष पालेकर की प्रेरणा ने लाखों किसानों की दुनिया बदल दी है। गाँव कनेक्शन की इस ख़ास सीरीज में डॉ पालेकर आप सभी को ख़ेती-किसानी से जुड़ी अनोखी यात्रा पर ले जाएँगे। आज वो बता रहे हैं नारियल की ख़ूबी और उसकी उपयोगिता के बारे में।

Dr Subhash PalekarDr Subhash Palekar   31 July 2023 4:16 AM GMT

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जानिए कल्पवृक्ष नारियल का इस्तेमाल पालेकर खाद्य जंगल पंच स्तरीय मॉडल में क्यों और कैसे करना है ज़रूरी?

पालेकर खाद्य जंगल पंच स्तरीय मॉडल खड़ा करने के लिए जिन फल पेड़ों को हमें लगाना है, उनमें नारियल सबसे महत्वपूर्ण बागवानी फ़सल है, जिसे कल्पवृक्ष कहा जाता है, जो वास्तव में कल्पवृक्ष है। नारियल विश्व की 2700 पाम जातियों में सबसे अधिक उपयोगी है। दुनिया में कुल नारियल उत्पादन का 50 फीसदी खोपड़ा में बदला जाता है। फ़िलीपीन्स में लगभग 93 फ़ीसदी नारियल खोपड़ा के रूप में इस्तेमाल होता है। इंडोनेशिया में यह 50 प्रतिशत और भारत में सिर्फ 30 प्रतिशत खोपड़ा में बदला जाता है।

भारतीय संस्कृति में भारतीयों के हर सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्सवों में, त्योंहारों में नारियल का इस्तेमाल होता ही है। इसका सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य से और आर्थिक आत्मनिर्भरता के साथ जुड़ा है। मेरा नारियल प्रधान दक्षिणी भारत के हर राज्य में हर साल शिविरों के लिए या संगोष्ठियों के लिए आना जाना होता रहता है। तब मुझे यह देखकर बड़ा आश्चर्य लगता है कि नारियल प्रधान दक्षिणी भारत की हर उम्र की महिला के माथे के बाल घने काले हैं, और शरीर सुगठित है। इसके विपरित मध्य भारत, पश्चिमी भारत या समूचे उतरीं भारत के अधिकांश महिलाओं के युवावस्था से लेकर बुढ़ी अवस्था तक बाल सफेद होते हैं और शरीर बेडौल होते हैं। इस मुद्दे पर मैंने बहुत गहराई से विचार किया, खोजबीन की तब मैं इस निष्कर्ष पर पहुँच गया की इस काले बालों के और सुगठित शरीर के पीछे तीन राज छुपे है।


पहला - उनके दैनिक भोजन में अच्छी मात्रा में रोज़ाना कच्ची घानी से सीधे निकाला हुआ नारियल का शुद्ध खाद्य तेल का इस्तेमाल है। इसे बालों में भी लगाते हैं। (बाज़ार से खरीदा नहीं, लकड़ी के कच्ची घानी से निकाला)

दूसरा - उनके दैनिक भोजन में मंडुआ यानि रागी (फिंगर मिलेट), झंगोरा यानि बारटी वरई (बार्नयार्ड मिलेट) , कुटकी यानि वरी भगर ( लिटिल मिलेट), कांगनी माने राळा भादली (फॉक्स टेल मिलेट), बाजरा (पर्ल मिलेट) और जवार (करसे मिलेट) का उपयोग होना है।

तीसरा - उच्च स्तर पर आध्यात्मिक प्रवृत्ति का होना है।

नारियल एक ऐसा वृक्ष है जो हमें सौ दो सौ साल तक हर साल नारियल के फल, नारियल का पोषक औषधि पानी, मंदिर में भगवान से अपनी मनोकामना पूरी करने की अपेक्षा करते हुए भगवान के चरणों में घूस के रूप में चढ़ाने के लिए आवश्यक नारियल का श्रीफल उपलब्ध करता है।

डोसा, इडली के साथ आवश्यक चटनी के लिए ताज़े नारियल की गरी ( जिसमें प्रथिन माने प्रोटीन 4.5 फ़ीसदी, वसा माने स्निग्धांश फैट 41.5 फ़ीसदी , कार्बोहाइड्रेट माने कच्ची शर्करा 13.0 फ़ीसदी रेशा 3.5 प्रतिशत और खनिज 1.0 प्रतिशत पोषण मूल्य होते हैं) हमें उपलब्ध करता है।


नारियल के अंदर की सफेद गरी से हमें सबसे अधिक पोषण वाला दूध मिलता है। जिसका उपयोग वनस्पति जन्य शाकाहारी अल्क धर्मी स्वास्थ्य कारक दूध के रूप में होता है। ( गाय भैंस का दूध, दही, घी, पनीर अम्ल धर्मी है, जो हमारे अल्क धर्मी खून को अम्ल धर्मी बनाकर दूषित बनाता है)।

नारियल के दूध से हम वनस्पति जन्य दही, घी, पनीर बना सकते हैं। यह नारियल का मक्खन, दूध, विलेय प्रोटीन पूरक का एक अच्छा स्रोत है। नारियल के इस दूध में एसपीके पद्धति से उगायें गन्ना से बने रसायन मुक्त भूरी शर्करा और ग्लुकोज़ मिलाकर हम वनस्पति जन्य नारियल मधु तैयार कर सकते हैं। नारियल के सफेद गरी से दूध निकालने के बाद बचे रेशेदार अवशेष को सुखाने के बाद उसे पीसकर नारियल आटा बनाते हैं। उस आटे को मिलेट्स के आटे में मिलाकर रोटी के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। उस आटे का उपयोग बेकरी और मीठे खाद्य पदार्थों में हम कर सकते हैं।

सूखे नारियल के गोले से भोजन पकाने और बालों में लगाने के लिए आवश्यक शुद्ध औषधि पोषण मूल्यों से समृद्ध वनस्पति जन्य तेल उपलब्ध होता है। इस सूखे खोपड़ा का उपयोग बड़ी मात्रा में मसाला उद्योग में होता है।

पाँच से छह महीने के कोमल नारियल के अँदर होने वाला पानी द्रव भ्रूणपोष ग्रीष्मकाल के दौरान एक ताज़गी देने वाला पेय हमें उपलब्ध होता है। जिसे जठरांत्र शोथ, दस्त और वमन में पीने के लिए किया जाता है। उसमें विटामिन सी, बी और खनिज ( मिनरल्स), विशेष रूप में पोटैशियम अच्छी मात्रा में होता है। इसी नारियल पानी से नट-वी कोको नाम का उत्पाद शर्करा, एसिटिक अम्ल और ऐसिटोबैकटर के जीवाणु समूह लिकर को मिलाकर तैयार किया जाता है। नारियल पानी से सिरका तैयार किया जाता है जिसे समान मात्रा में प्राकृतिक भूरी शर्करा और थोड़ा सा यीस्ट मिलाकर बनाया जाता है।

पोषणयुक्त औषधि नारियल तेल

तेल के उत्पादन के लिए इस्तेमाल में लाए जाने वाले पूरी तरह से परिपक्व नारियल फलों से प्राप्त 6 प्रतिशत से कम आर्द्रता अंश युक्त खोपड़ा को खोपड़ा गिरी कहते हैं। अप्रत्याशित मौसम परिवर्तन की दशा में इस खोपड़ा को बोरियों में सुरक्षित रखा जाता है।

लकड़ी के कच्ची घानी में खोपड़ा को पीस कर नारियल का पोषण मूल्यों से समृद्ध 65 से 75 प्रतिशत तेल निकलता है। उसमें उच्च संतृप्त वसा अम्ल ( हाइली सैचुरेटेड फैटी एसिड्स ), विशेष रूप में लौरिक अम्ल और मिरिस्टिक अम्ल होते हैं।

इस तेल में मानवीय स्वास्थ्य को नुक्सान करने‌ वाले बहु असंतृप्त अम्ल (पॉलीअनसेचुरेटेड एसिड्स ) और विशेष रूप में लिनोलिक अम्ल कम मात्रा में नहीं के बराबर होते हैं। इसमें अधिकतम पचनीयता गुणांक होता है और यह अन्य वसाओं की अपेक्षा अधिक आसानी से पच जाता है। नारियल तेल की सुगंध लिए पाइराजिन और इसके व्युत्पन्न उत्तरदाई होते हैं।


बड़े तेल उद्योग में अलग अलग रसायन मिलाकर उच्च तापमान में जो बाज़ारी खोपड़ा तेल‌ निर्माण होता है और बाज़ार में हानिकारक प्लास्टिक थैलियों में या कैन में मिलता है, वह परिष्कृत तेल स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं होता इस सत्य को अब हर कोई समझ रहा है।

लेकिन बैल से चलने वाली देशी कच्ची घानी में ताप उपचार के बिना निकाले ताजे नारियल तेल को विशुद्ध प्राकृतिक तेल कहा जाता है जो‌ हमारे स्वास्थ्य के‌ लिए अमृत समान होता है। उच्च तापमान में बड़े तेल उद्योग में से निकाले‌ रसायन युक्त तेल‌ की तुलना में लकड़ी के बैल चलित कच्ची घानी से निकाला नारियल तेल गुणवत्ता में सबसे बेहतर होता है।

तेल‌ निकालने के बाद बची खली जो कूल खोपड़ा का 32 से 40 प्रतिशत होता है, उसका पशुधन आहार के रूप में उपयोग किया जाता है। नारियल फल को बाहर से घेरकर अंदर के खोपड़ा की बाह्य शत्रु से सूरक्षा करने वाली नारियल की जटा और रेशा, नारियल के कठोर छिलके से हासिल महत्वपूर्ण औद्योगिक उत्पादन है, जिसका उपयोग रस्सियों को बनाने और चटाई तैयार करने में होता है।

पकी अवस्था में पूरा नारियल फल का 35 से 45 प्रतिशत हिस्सा कठोर छिलके का होता है, जिसका 30 प्रतिशत हिस्सा नारियल जटा रेशा और 70 प्रतिशत हिस्सा पिथ और बाहरी त्वचा का होता है। इस जटा से प्राप्त शुद्ध रेशे के प्रमुख घटक है, लिग्निन ( काष्ट जन्य पदार्थ) और सेल्युलोज (काष्ठांग जन्य पदार्थ) होते हैं।


ये रेशे सफेद रंग के और भूरे रंग के होते हैं। भूरे रेशे का पहला प्रकार लंबा होता है। भंगुर रेशा का उपयोग ब्रश बनाने के लिए और दूसरे छल्लेदार रेशे का उपयोग कमरे का साज़ सामान और गद्दों में भरने के लिए होता है। नारियल जटा का अन्य उपयोग उच्च कैलोरी मान रखने वाली इष्टिकाएं बनाने के लिए पलवार के रूप में और पौधशाला में पौधे तैयार करने के लिए पिथ के रूप में होता है।

नारियल के खोपड़ा को सुरक्षा प्रदान करने वाली‌ बाहरी कठोर खोपड़ी कवच को जलाकर कोयले को संष्लिष्ट रेजीनो, मच्छरों को भगाने वाले क्वायलो और अगरबत्ती उद्योग में फिल्टर के रुप में और प्लाइवुड और लैमिनेटेड बोर्डों में फिनालिक उत्सारित्र के रूप में इस्तेमाल होने लगी है। खोपड़ा के छिलके के कोयले के छोटे छिद्र आकार और उच्च कणिक सक्रियता के कारण गैस अवशोषण के लिए उत्कृष्ट समझें जाने वाले सक्रियित चारकोल के निर्माण में इसकी बड़ी माँग है।

नारियल के पेड़ के शिखर में पत्तियों की निर्मिती होती है, जिसमें विकास की विभिन्न अवस्थाओं में 25 से 35 खुली हुई पत्तियाँ और पत्तियों से युक्त केंद्रीय कलिका होती है। युवा पत्तियाँ परिपक्व होने तक रेशेदार पर्णचछद द्वारा संरक्षित होती है। पत्ती की जीवन अवधि ढाई साल से लेकर 3 साल तक होती है।

वाष्पोत्सर्जन की सीमा बनाएँ रखने के लिए पूर्ण विकसित नारियल वृक्ष के शिखर में पत्तियों की सँख्या स्थिर बनी रहती है। जैसे ही नई पत्ती विकसित होकर खुलती हैं, पुरानी पत्ती झड़ जाती है, जिससे हमें बहुमूल्य काष्ठ आच्छादन उपलब्ध होता है, जो सुभाष पालेकर कृषि में हयुमस निर्माण का मूलाधार है। नारियल के कटे तने से हमें लट्ठ के रुप में खंबे मिलते हैं ,जिनका उपयोग पालेकर खाद्य जंगल पंचस्तरीय मॉडल में वाय स्ट्रक्चर के लिए आवश्यक खंबे के रूप में होता है। लट्ठों का उपयोग बिजली और टेलीफोन के खंभों के रुप में, फर्नीचर के निर्माण में, हस्तशिल्प उत्पादों के निर्माण में होता है।

कुल मिलाकर नारियल का पेड़ सचमुच ईश्वर का भेजा साक्षात कल्पवृक्ष है, जिसका उपयोग हम आत्मनिर्भर गाँव के साथ- साथ आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में हम करने वाले हैं। नारियल भारत के हिमालयीन सदा हिमाच्छादित क्षेत्रों को छोड़कर शेष भारत में हमें लगाना ही है। कैसे लगाना है, बीज कैसे लगाना है, सर्वोत्तम बीजों का चुनाव कैसे करना है, नारियल की सर्वोत्कृष्ट किस्में कौन सी है, नारियल पेड़ों का संवर्धन कैसे करना है? इन सभी प्रश्नों का ज़वाब हम अगले लेख में देंगे।

#Natural farming Dr Palekar Ki Pathshala 

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