कंदील बलोच की मौत के मायने

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कंदील बलोच की मौत के मायनेकंदील बलोच की मौत,

अस्सी के दशक की हिंदी फिल्मों का, वो कंधे पर शाल डाले हुए पिता तो आपको याद ही होगा जो ‘घर की इज़्ज़त’ पर आंच आने पर, अपने सीने पर हाथ रखकर पीछे रखी कुर्सी पर लुढ़कने लगता था। शायद हम ‘घर की इज़्ज़त’ को दशकों से इसी तरह से परिभाषित करते आएं हैं। तो क्या एक समाज के तौर पर हम उसी पिता की तरह बर्ताव करते हैं?

पाकिस्तान की सोशल मीडिया सेलेब्रिटी कंदील बलोच की मुल्तान में गला दबाकर हत्या कर दी गई। पुलिस स्टेटमेंट के मुताबिक हत्या उनके भाई वसीम ने की जो बीते कुछ हफ्तों से उन्हे फेसबुक पर लगातार धमकियां दे रहा था। वो कंदील पर मॉडलिंग छोड़ने के लिए भी दबाव बना रहा था। कुछ रोज़ पहले एक पाकिस्तानी इमाम के साथ कंदील की सेल्फी वायरल होने से उनका परिवार नाराज़ था, और बीते दिनों उनकी दो शादियों की बात सामने आने से ये नाराज़गी और बढ़ गई थी।

कंदील भारतीय नहीं थी लेकिन क्या हम इस बात से इंकार कर सकते हैं कि हमारे देश में भी आए दिन किसी ना किसी ‘कंदील’ की कहानी सामने आती है जिसे ‘ऑनर किलिंग’ के नाम पर मौत के घाट उतार दिया जाता है। नोएडा के बहुचर्चित केस आरुषि तलवार मामले को भी ऐसे ही देखा जाता है। इसके अलावा राजस्थान, हरियाणा, यूपी और पंजाब में भी ऑनर किलिंग के मामले सामने आते रहते हैं। आकड़े बताते हैं कि दुनिया में हर पांच ऑनर किलिंग मामलों में से एक भारत में होता है। क्या ये चौंकाने वाली बात नहीं हैं?

क्या कहते हैं आंकड़े?

दुनियाभर में हर साल होते हैं 5000 ऑनर किलिंग केस

जिनमें से अकेले 1000 मामले भारत में होते हैं

हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में सबसे ज़्यादा मामले

*Source – HBVA Network

साल 1990 में भारत में ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ की स्थापना की गई ताकि महिलाओं के मुद्दे और उनकी चुनौतियों को विमर्श के केंद्र में लाया जा सके, लेकिन क्या कुछ बदला? जवाब हम जानते हैं। बीस साल बाद यानि साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारों से बढ़ती ऑनर किलिंग की घटनाओं पर जवाब मांगा। उम्मीद है तत्कालीन सरकारों ने मुनासिब जवाब दिया भी होगा लेकिन एक सवाल ये भी है कि क्या ऑनर किलिंग किसी तरह की कानूनी सख्ती से रोकी जा सकती है?

अगर आपका जवाब हां तो फिर, तब आप क्या करेंगे जब कोई शख्स अपनी बहन के प्रेम संबंध के बारे में पता चलने पर उसे जान से मारने के बाद, मूछों पर ताव देता हुआ स्थानीय पुलिस स्टेशन में सरेंडर करे देगा। ये सवाल जायज़ है क्योंकि ऐसा हुआ है। सज़ा की सख्ती या कड़ी कानून व्यवस्था ऑनर किलिंग का हल नहीं है। ऑनर किलिंग को खत्म करने के लिए समाज की उस मानसिकता को खत्म करना पड़ेगा जिसके लिए बहन, बहू और बेटी घर की इज़्ज़त होती है और भाई और पिता उस इज़्ज़त के रख वाले।

क्या आपने कभी कहीं पढ़ा या सुना है कि किसी महिला ने अपने भाई का इसलिए कत्ल कर दिया, क्योंकि वो किसी के साथ प्रेम संबंध में था? या फिर ये कि किसी पिता ने अपने बेटे को किसी लड़की के साथ सिनेमाहॉल से निकलते देखकर उसकी हत्या कर दी। ये सुनने में भी अजीब बात लगती है, लेकिन ज़रा देर के लिए ‘भाई’ की जगह ‘बहन’ और ‘बेटे’ की जगह ‘बेटी’ कर के देखिए। ये ‘अजीब बात’ हकीकत में बदल जाएगी, वही जो आसपास हो रहा है। जिसे हम और आप खामोश आंखों से देख रहे हैं।

शायद ये ही उदाहरण इस बात को समझने के लिए काफी है कि ‘ऑनर किलिंग’ की मानसिकता ऑनर के बारे में नहीं है, मर्दवादी होने के बारे में है। औरत को इंसान ना समझने, उसकी आज़ादी छीने जाने के बारे में है। और इस पक्ष में दी जाने वाली शिक्षा की दलील सही नही है। इस विमर्श में एक तर्क ये भी है कि शिक्षित समाज में इस तरह की घटनाएं नहीं होती, ये हकीकत तो सिर्फ अशिक्षित समाज की हो सकती है। लेकिन ऐसा नहीं है हाल ही में आए कई मामलों में ‘ऑनर किलिंग’ करने वाले लोग शिक्षित थे।

सही मायनों में ‘ऑनर किलिंग’ समस्या नहीं है, समस्या का एक हिस्सा है। समाज में औरत को मर्द के बराबर ना गिने जाना समस्या है, उसकी आत्मनिर्भरता, उसके फैसलों को खारिज करना समस्या है, एक समाज के तौर पर पुरुष को ‘रखवाला’ और औरत को ‘निर्भर’ के खानों में बांट देना समस्या है। शायद ये सही वक्त है जब हमें ‘ऑनर किलिंग’ के टर्म को ‘किलिंग ऑनर’ में बदल देना चाहिए।

(लेखक - जमशेद क़मर सिद्दक़ी। ये इनके निजी विचार हैं।)

 

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