दुनिया की सबसे बड़ी इस योजना से अब भारत में नहीं सड़े-गलेंगे अनाज

ये सभी के लिए अच्छी ख़बर है। जल्द ही भारत में अनाज की किल्लत कुछ कम हो जाएगी। बढ़िया फ़सल होने के बाद भी उसे ठीक से नहीं रख पाने के कारण हर साल लाखों टन अनाज ख़राब हो जाता था। अब केंद्र सरकार ने दुनिया की सबसे बड़ी अन्न भंडारण योजना पर काम शुरू कर दिया है, जिसे सहकारिता के क्षेत्र में बड़ा फ़ैसला माना जा रहा है।

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दुनिया की सबसे बड़ी इस योजना से अब भारत में नहीं सड़े-गलेंगे अनाज

अभी देश में 1450 लाख टन अनाज के भंडारण यानी उसे रखने की क्षमता है। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के मुताबिक इस योजना को पायलट प्रोजेक्ट के तहत पहले 10 ज़िलों में लागू किया जाएगा। जिसपर एक लाख करोड़ रुपए का खर्च होगा।

एक रिपोर्ट की माने तो भारत में अनाज की बर्बादी का आलम ये है कि हर साल जो गेहूँ ख़राब होता है,वो आस्ट्रेलिया की कुल पैदावार के बराबर है। यानी इससे करीब 30 करोड़ लोगों को सालभर खाना दिया जा सकता है। बर्बादी की वजह क्या है ? देश में करीब 2.1 करोड़ टन अनाज रखने का इंतजाम नहीं होना।

कहने को भारत दुनिया में अनाज के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है लेकिन अनाज को रखने की क्षमता, सालाना उत्पादन का केवल 47 प्रतिशत है। ऐसे में कई किसानों के सामने सस्ते दाम पर उसे बेचने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है।

दूसरे देशों की अगर बात करें तो अमेरिका,चीन, ब्राजील, रूस के पास अनाज रखने की क्षमता काफी बेहतर है। अमेरिका में खेतों में काम करने वाले मज़दूरों के कम होने के बाद भी वो सबसे बड़ा कृषि उत्पादक देश है। दूसरे विश्व युद्ध के बाद से उसका खाद्य उत्पादन दोगुना हो चुका है।

चीन की बात करें तो वो दुनिया में सबसे ज़्यादा अनाज, सब्जियाँ और फल पैदा करता है। न सिर्फ़ खुद उसकी पैदावार की सबसे ज़्यादा ख़पत है बल्कि बड़ा आयातक भी है। वजह है, उसने इसके लिए एक मज़बूत सिस्टम तैयार किया है। ख़ेती बाड़ी से जुड़े कर्मचारियों और जानकारों को ना केवल खेतों पर जाकर काम करना होता है बल्कि ट्रेनिंग भी देनी होती है। वो किसानों से तालमेल करके लगातार ये कोशिश करते हैं कि पैदावार अच्छी मिले।

फ़सल का ख़राब होना या अनाज़ों का सही रख रखाव नहीं होने से उनका सड़ना कई देशों में बड़ी समस्या है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र की तरफ से विश्व खाद्य और कृषि संगठन (फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन) को बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी गई। ज़िम्मेदारी ये कि वे न सिर्फ़ दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के प्रयासों का नेतृत्व करे बल्कि पौष्टिक खाने के प्रति लोगों को जागरूक भी करे। इसी जागरूकता को बढ़ाने के लिए 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाता है।

लेकिन संयक्त राष्ट्र के फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन (एफएओ) की कोशिशों के बावज़ूद आज भी कई देशों में भूखमरी है। 1945 में जब ये संगठन बना था तब से इसके 194 सदस्य देश और दो सहयोगी सदस्य आपसी सहमति और सहभागिता से अपने सदस्य देशों को खेती, वन और मछली पालन से जुड़ी आधुनिक नयी तकनीक की जानकारी देते आ रहे हैं।

ये संगठन औद्योगिक देशों और विकास बैंकों की मदद से तमाम देशों को कृषि के लिए सहयोग भी देता है। इसकी कोशिश क़ानून और राष्ट्रीय रणनीतियों के ज़रिए स्थाई कृषि का समर्थन करना है। हालाँकि सभी देशों को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की उसकी कोशिशों में अब भी कई रुकावटें हैं। ख़ुद एफएओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पूरी दुनिया का 14 फ़ीसदी खाद्य (खाना) फ़सल के बाद बर्बाद हो जाता है। संयुक्त राष्ट्र अब अनाज़ के अधिक उत्पादन के साथ इस बात पर भी ज़ोर दे रहा है कि इसे ख़राब होने से कैसे बचाया जाए। एफएओ ने 2022 -2031 के बीच जिन कामों को पूरा करने का लक्ष्य तय किया है उनमें बेहतर उत्पादन और पोषण मुख्य है।

भारत में अनाज भंडारण जैसी समस्या फ़ल सब्ज़ियों के साथ भी है। हर साल करीब 16.2 करोड़ टन सब्जियों और 8.1 करोड़ टन फलों का यहाँ उत्पादन होता है। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (सीफैट) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल करीब 20 से 22 फ़ीसदी तक सब्जियाँ और फ़ल कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण के अभाव में ख़राब हो जाते हैं। ऐसे में करीब 20 हज़ार करोड़ रुपए की फ़ल -सब्जियाँ बर्बाद हो जाती हैं।

सीफैट की रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि देशभर में हर साल कोल्ड स्टोरेज के अभाव में 10 लाख टन प्याज़ बाज़ार में नहीं पहुँच पाता है। 22 लाख टन टमाटर भी अलग-अलग कारणों से बाज़ार में पहुँचने से पहले ही बर्बाद हो जाता है। उम्मीद है अब अनाज के भंडारण के साथ फ़ल - सब्जियों की इस समस्याँ का भी समाधान जल्द निकलेगा।

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