दिवाली के एक दिन बाद, गायों के सम्मान में यहाँ मनाया जाता है ये अनोखा त्योहार

मध्य प्रदेश के राजगढ़ का सुल्तानिया गाँव दिवाली के अगले दिन 'छोड़ा उत्सव' मनाने के लिए तैयार हो जाता है; यह त्योहार दूर स्पेन में होने वाली बुल फाइटिंग या फिर तमिलनाडु के जल्लीकट्टू की याद दिलाता है।

Abdul Wasim AnsariAbdul Wasim Ansari   10 Nov 2023 12:33 PM GMT

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दिवाली के एक दिन बाद, गायों के सम्मान में यहाँ मनाया जाता है ये अनोखा त्योहार

सुल्तानिया (राजगढ़), मध्य प्रदेश। देश के बड़े हिस्से में दिवाली के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन लोग भगवान कृष्ण को पूजते हैं और उनसे प्रार्थना करते हैं। उनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने 'गोवर्धन' पर्वत उठाकर उत्तर प्रदेश में मथुरा के लोगों को बचाया था।

लेकिन मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव में इस दिन एक अलग ही रंग में सजे त्योहार की धूम-धाम देखने को मिलती है। राजगढ़ जिले के सुल्तानिया गाँव के निवासी अनोखे तरीके से गायों का जश्न मनाते है और उनका सम्मान करते हैं।

इसे आम भाषा में 'गौ क्रीड़ा' या 'छोड़ा उत्सव' कहा जाता है। यह मवेशियों को एक औपचारिक श्रद्धांजलि है। लेकिन इसमें एक अनुष्ठान शामिल है, जहाँ गायों को तुलसी के पौधे से लपेटे हुए बबूल की छड़ी से बँधे चमड़े के टुकड़े से चारा दिया जाता है; फिर मवेशियों को चमड़े के उस टुकड़े को फाड़ने के लिए उकसाया जाता है।


यह त्योहार स्पेन में बुल फाइट या फिर तमिलनाडु के जल्लीकट्टू की याद दिलाता है। जिसे लेकर समय-समय पर पशु अधिकार कार्यकर्ता नाराजगी जताते रहे हैं।

गाँव वाले आमतौर पर इस दिन पूड़ी के साथ खाने के लिए मिठाइयाँ और सब्जी बनाते हैं।

गौ -क्रीड़ा में सिर्फ पुरुष ही भाग ले सकते हैं, महिलाएँ और बच्चों को दूर खड़े होकर इसे देखने भर की इजाज़त होती है।

सुल्तानिया गाँव के 70 साल के राम नारायण ने गाँव कनेक्शन से बात करते हुए त्योहार के पीछे की रस्म के बारे में बताया। उन्होंने कहा, "इस दिन गाय को अपने सींगों से चमड़े के टुकड़े को फाड़ने के लिए उकसाया जाता है। हमारे गाँव में इस त्यौहार को लेकर काफी उत्साह रहता है।”

उन्होंने स्वीकार किया कि इस दौरान मवेशी और अनुष्ठान में भाग लेने वाले इँसान दोनों ही कई बार घायल हो जाते हैं, या यहाँ तक कि कई लोगों की मौत भी हुई है। नारायण ने आश्वासन देते हुए कहा, लेकिन जो लोग गायों को चारा डालते हैं, उन्हें काफी अनुभव होता है। वो सभी जरूरी सावधानियाँ बरतते हैं ताकि कोई घायल न हो।


गाँव के एक युवा जगदीश धाकड़ ने कहा, “दरअसल, यह देवताओं का खेल है; ऐसा माना जाता है कि देवनारायण नामक देवता ने पहली बार यह खेल खेला था और तभी से लोग इसे मनाते आ रहे हैं।”

छोड़ा उत्सव सुल्तानिया गाँव की परंपरा और सँस्कृति का एक हिस्सा है क्योंकि इस गाँव में ज्यादातर पशुपालक रहते हैं। भैंसवा माता या मवेशियों की देवी सुल्तानिया ग्रामीणों के लिए एक देवी है और गाँव से लगभग 15 किलोमीटर दूर उनके नाम का एक मँदिर है।

त्योहार की रस्में

एक अन्य ग्रामीण सुनील नागर ने कहा, “दिवाली के एक दिन बाद, छोड़ा उत्सव की शुरुआत सुबह गायों की पूजा के साथ होती है। उन्हें गौ क्रीड़ा से पहले गुड़ के साथ पूड़ी खिलाई जाती है।”

20 साल के नागर ने गाँव कनेक्शन को बताया, “सभी लोग पहले मँदिर जाते हैं और फिर खेल शुरू होता है। जो गाय चमड़ा फाड़ देती है उसे सम्मानित किया जाता है और उसके मालिक को पुरस्कार दिया जाता है।''

उन्होंने कहा, "त्योहार इस बात की परीक्षा है कि कौन सी गाय कितनी ताकतवर है।"

इस स्थानीय त्योहार के प्रति दीवानगी इतनी है कि लोग अक्सर इसलिए मवेशी खरीदते हैं ताकि वे अपनी गाय के साथ उत्सव में भाग ले सकें।

गाँव के एक प्राइवेट स्कूल के टीचर सुनील नागर ने कहा, “छड़ी के चारों ओर तुलसी लपेटी जाती है; यह तुलसी गाँव में खूब उगती है और इसकी सुगँध काफी अच्छी होती है।”

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "सुबह होते ही बच्चे गाँव में घूम-घूमकर जंगली तुलसी इकट्ठा करते हैं और फिर उसे क्रीड़ा में इस्तेमाल किया जाता है।" उत्सव तभी शुरू होता है जब तुलसी को अखाड़े में लाया जाता है और छड़ी के चारों ओर लपेटा जाता है।

शिक्षक ने समझाया, “तुलसी को ये शुभ और अच्छा शगुन मानते हैं; उनका मानना है कि तुलसी उन्हें बुरी नज़र से बचाती है।”

बाबूलाल नागर ने गाँव कनेक्शन को बताया कि शहरों में यह त्योहार होली और दिवाली की तरह मनाया जाता है।

उन्होंने कहा, "लोग त्योहार के दौरान अपने दोस्तों और रिश्तेदारों की सभी गलतियों को माफ कर देते हैं और आपसी मन-मुटाव भूल जाते हैं; खुशी-खुशी पूरा गाँव आराम से अपना दिन बिताता है।"

ग्रामीण परिवार आमतौर पर इस दिन पूड़ी के साथ मिठाइयाँ और सब्जी खाते हैं।

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