इंटीग्रेटेड फार्मिंग से रिक्शा चलाने वाले की जिंदगी में आया बदलाव: सब्जी, दूध, मुर्गी और मछली पालन से रोज हो रही कमाई

मध्य प्रदेश के पन्ना शहर में 20 साल तक रिक्शा चलाने वाले 50 वर्षीय गोविंद मंडल का परिवार अब खुशहाल है। इंटीग्रेटेड फार्मिंग से उनकी जिंदगी में यह बदलाव आया है। अब दूसरे किसान भी खेती का यह फायदेमंद तरीका अपना रहे हैं।

Arun SinghArun Singh   25 Oct 2021 8:44 AM GMT

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इंटीग्रेटेड फार्मिंग से रिक्शा चलाने वाले की जिंदगी में आया बदलाव: सब्जी, दूध, मुर्गी और मछली पालन से रोज हो रही कमाई

20 साल तक रिक्शा चलाने वाले गोविंद मंडल 5 साल से कर रहे हैं खेती। 

पन्ना (मध्यप्रदेश)। "पूरे 20 साल तक पन्ना में मैंने रिक्शा चलाया, कमाई कम होने से उस समय परिवार का गुजारा मुश्किल से होता था। इसलिए मन में विचार आया क्यों ना अपने खेत में फलदार पेड़ लगाएं और खेती करें। पेड़ में फल लगेंगे तो कम से कम नाम रहेगा कि फलाने ने लगाया था।" यह कहते हुए 50 वर्षीय गोविंद मंडल मुस्कुराए और पास में चुग रही मुर्गियों को दाना डालने लगे।

गोविंद मंडल का छोटा सा गांव उड़की पन्ना जिला मुख्यालय लगभग 22 किलोमीटर दूर पन्ना-पहाड़ीखेरा मार्ग के किनारे स्थित है। अहिरगुंवा पंचायत के अंतर्गत आने वाले उड़की गांव की आबादी साढ़े सात सौ के आसपास है। गांव में 99 फ़ीसदी लोग बंगाली हैं, जो 1971 में बंटवारे के समय बांग्लादेश से यहां आए थे। पुनर्वास योजना के तहत इन बंगाली परिवारों को यहां पर बसाया गया था और खेती के लिए जमीन के पट्टे भी दिए गए थे। गोविंद मंडल के पास भी गांव के निकट ही 5 एकड़ कृषि भूमि है, जिस पर अब वह खेती करते हैं।

गांव कनेक्शन की टीम जब गोविंद मंडल के खेत में पहुंची, तो उस समय वे खेत में ही बने तालाब के किनारे मुर्गियों को दाना चुगा रहे थे। उन्होंने मुस्कुराते हुए बताया कि इन मुर्गियों के अलावा बतख भी पाल रखी हैं। पास ही तालाब की तरफ इशारा करते हुए कहा कि देखिए पानी में तैर रही हैं। तालाब में मछली पालते हैं, जिसमें 7 किलोग्राम वजन तक की मछलियां हैं। इन मछलियों से उनको अतिरिक्त आय हो जाती है।

अपनी मुर्गियों को दाना डालते गोविंद मंडल।

गोविंद मंडल ने स्कूल का मुंह नहीं देखा है लेकिन खेती में उन्होंने जो प्रयोग किया है कि वो छोटी जोत के किसानों के लिए एक सफल मॉडल ही कहा जाएगा।

गोविंद मंडल गांव कनेक्शन को बताते हैं, "मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं। खेती व फलदार पेड़ लगाने की शुरुआत खुद ही की थी। मेरी लगन और मेहनत से खुश होकर सरकारी अधिकारियों ने मनरेगा योजना से कुआं बनवा दिया, जिससे पानी की समस्या दूर हो गई। कुआं से सिंचाई होने पर धान और गेहूं के साथ-साथ वह सब्जियां भी उगाने लगा।"

गोविंद खेतों में सिर्फ गोबर की ही खाद डालते है, रासायनिक उर्वरक व कीटनाशक उपयोग नहीं करते। मंडल कहते हैं, "साहब कीटनाशक तो जहर होता है, इसका छिड़काव करने से सब्जी जहरीली हो सकती है, जो सेहत के लिए ठीक नहीं है। फिर हम अपनी व दूसरों की सेहत से खिलवाड़ क्यों करें? अच्छा खाते हैं और दूसरों को भी अच्छा खिलाते हैं, इसलिए खुश हैं।"

गोविंद घूम-घूम कर अपना खेत, तालाब और आम, अमरुद, कटलह, आंवला, मौसम्मी के लगाए पड़े दिखाते हैं। उन्होंने अपने खेत में कई किस्म के केले लगा रखे हैं। जिसमें कोलकता का सबरी केला खास है। गोविंद के मुताबिक जब यह पकता है तो इसकी खुशबू पूरे खेत में आती है तथा खाने में भी बहुत स्वादिष्ट होता है।

गोविंद के परिवार में 2 बेटियां और 2 बेटे हैं। बेटियों की शादियां हो चुकी हैं। बड़ा बेटा निरंजन मंडल (26 वर्ष) और छोटा (छोटू मंडल-21 वर्ष) खेत ही पिता का हाथ बटाते है।

गोविंद और उनका परिवार मिलकर घर की जररुत की लगभग हर चीज पैदा करते हैं। अनाज, फल, सब्जियां जिसके चलते उनकी बाजार पर रोज की निर्भरता नहीं है। बल्कि घर से कुछ न कुछ अक्सर भी बाजार बिकने जाता है। मंडल के मुताबिक उनकी जिंदगी खुशहाल है।


अपने तालाब के पास खड़े गोविंद।

पास में ही खड़े निरंजन मंडल ने गांव कनेक्शन को बताया कि 2016-17 में मनरेगा योजना से खेत तालाब बनने के बाद से आमदनी और बढ़ गई है। उसने बताया कि तालाब में देशी रोहू, कतला मछली हैं जिनका बीज मछली विभाग से लिया था। मुर्गियों के बीट का उपयोग तालाब में मछलियों के चारे के रूप में करते हैं।

निरंजन मंडल ने कहा, "साल में उन्हें खेती से 2.5 लाख से 3 लाख रुपये तक की आय हो जाती है। मुर्गियों उनके अंडों तथा मछली से अतिरिक्त आय भी होती है।"

गोविंद के पास इस साल 4 एकड़ में धान है, उन्हें उम्मीद है करीब सवा सौ कुंटल धान होंगे। धान काटने के बाद इसी में गेहूं बो देंगे। जो करीब 70-80 कुंटल तक पैदा होता है।

निरंजन बताते हैं, "धान और गेहूं के अलावा पपीता, केला, गन्ना, आम, आंवला, कटहल तथा सब्जी से भी आमदनी होती है। खेत की सब्जी यहीं स्थानीय बाजार में बिक जाती है। इलके अलावा दो गाय भी हैं, जिनसे पर्याप्त दूध मिल जाता है तथा गोबर का उपयोग खाद के लिए करते हैं। गोबर की खाद गांव से भी खरीद लेते हैं, हम खेत में रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करते।"

प्राकृतिक प्रकोप में भी बना रहता है आमदनी का जरिया

इंटीग्रेटेड फार्मिंग यानी एकीकृत कृषि प्रणाली की सबसे बड़ी खूबी यह है कि सूखा व कीट-व्याधियों का फसलों पर प्रकोप होने की स्थिति में भी आमदनी का कोई न कोई जरिया बना रहता है। किसानों के साथ काम करने वाली पन्ना की स्वयं सेवी संस्था 'समर्थन' के क्षेत्रीय समन्वयक ज्ञानेंद्र तिवारी के मुताबिक गोविंद मंडल व उनका बड़ा बेटा निरंजन बहुत ही मेहनती हैं। इन्होंने अपनी मेहनत से बीते 4 सालों में खेती के इस मॉडल को सफल बनाया है।

तिवारी बताते हैं, "इन लोगों की मेहनत और लगन से अधिकारी भी प्रभावित रहते हैं, इसलिए इन्हें योजनाओं का लाभ लेने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता, योजना का लाभ देने वाले लोग खुद इनके पास आते हैं और इनकी मदद करते हैं। गोविंद मंडल की पहचान एक आदर्श किसान के रूप है।"

5 एकड़ जमीन में छोटे-छोटे प्रयोग और बहु फसली, विविधिकरण से मंडल ने जो मॉडल विकसित किया है, उसे अब देखने तमाम किसान आते हैं। एकीकृत कृषि मॉडल के जरिए कम जमीन से कमाई जा जरिया समझने के लिए उनके यहां अक्सर किसान आते हैं। कई किसान तो उन्हें देखकर अपने यहां ऐसे प्रयोग शुरु भी कर रहे हैं।

बिना कीटनाशक और रासायनिक खादों के जैविक तरीके से उगाई गई उनकी सब्जियों की रहती है खासी मांग।

मनरेगा से कुआं खोदने पर बढ़ा हौसला

जिला पंचायत पन्ना के परियोजना अधिकारी (मनरेगा) संजय सिंह परिहार ने गांव कनेक्शन को बताया कि 5 साल पहले गोविंद मंडल पन्ना में रिक्शा चलाता था। सिंचाई सुविधा ना होने के कारण खेत में फसल भी नहीं होती थी। लेकिन कुआं बनने के बाद पूरी तस्वीर बदल गई।

परिहार बताते हैं, "इस मेहनती किसान ने हमसे खेत तालाब बनाने का अनुरोध किया ताकि वह मछली पालन कर सके। मनरेगा योजना से इसके खेत में तालाब भी बनवाया गया, जहां वह मछली पालन करके 75 हजार से 1लाख रुपये तक सालाना कमाई कर रहा है। गोविंद द्वारा जैविक पद्धति से की जा रही इंटीग्रेटेड फार्मिंग को जिला पंचायत सीईओ बालागुरु के. ने भी जाकर देखा है। उन्होंने हर तरह की मदद का भरोसा भी दिया है।"

मध्य प्रदेश में जैविक खेती को दिया जा रहा बढ़ावा

मध्य प्रदेश के किसान कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री कमल पटेल के मुताबिक मध्यप्रदेश देश का ऐसा पहला राज्य है, जहां 11 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर जैविक खेती की जा रही है। पिछले दिनों उन्होंने प्रदेश के सीहोर जिले में जैविक खेती करने वाले किसानों को पुरस्कृत और सम्मानित करते हुए कृषि मंत्री ने कहा, "सभी के स्वास्थ्य व पर्यावरण की दृष्टि से जैविक खेती को और अधिक बढ़ावा देने की जरूरत है। हरित क्रांति के कारण ज्यादा उत्पादन की लालसा में हमने देसी तकनीक से खेती करने के बजाय पेस्टीसाइड और फर्टिलाइजर का ज्यादा उपयोग किया है। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति की क्षति हुई है।" उन्होंने कहा कि प्रदेश में कृषि पाठ्यक्रमों में जैविक खेती को विषय के रूप में सम्मिलित करने का कार्य पूर्णता की ओर है।


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