जन्मदिन विशेष: जिनके गीत सुनकर जवाहरलाल नेहरू भी रो पड़े थे
Shefali Srivastava 6 Feb 2017 6:49 PM GMT
लखनऊ। वह साल 1962 का समय था जब भारत में चीन का आक्रमण हुआ था। इस युद्ध में मेज़र शैतान सिंह सहित सभी जवानों ने अपनी बहादुरी का प्रमा देते हुए अंतिम सांस तक देश के लिए लड़ाई की थी। उनके बलिदान से प्रभावित और भावुक होकर एक गीतकार रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी ने बेहद मार्मिक गीत लिखा,
ऐ मेरे वतन के लोगों.. ज़रा आंख में भर लो पानी,
जो शहीद हुए हैं उनकी.. ज़रा याद करो कुर्बानी
बताते हैं कि 26 जनवरी 1963 में इस गीत को जब लता मंगेशकर ने दिल्ली के रामलीला मैदान में गाया था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की आंखों से आंसू छलक आए थे।
रामचंद्र नारायण जी कोई और नहीं बल्कि हिंदी साहित्य में वीर रस को नया आयाम देने वाले गीतकार कवि प्रदीप थे।
आज कवि प्रदीप की जयंती है। उनका जन्म 6 फरवरी 1915 को मध्य प्रदेश के उज्जैन के बड़नगर नाम के क़स्बे में हुआ था।
कवि प्रदीप ने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त की लेकिन उनकी रुचि साहित्य में थी। किशोरावस्था से ही वह कई कवि सम्मेलनों में कविता पाठ करते थे।
वर्ष 1939 में लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद कवि प्रदीप ने शिक्षक बनने का प्रयास किया। उसी दौरान संयोगवश रामचंद्र द्विवेदी को एक कवि सम्मेलन में जाने का अवसर मिला, जिसके लिए उन्हें बंबई आना पड़ा। वहां पर उनका परिचय बांबे टॉकीज़ में नौकरी करने वाले एक व्यक्ति से हुआ।
वह रामचंद्र द्विवेदी के कविता पाठ से प्रभावित हुआ तो उसने इस बारे में हिमांशु राय को बताया। उसके बाद हिमांशु राय ने उन्हें बुलावा भेजा। वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने 200 रुपए प्रति माह की नौकरी दे दी और उन्होंने प्रदीप को अपने बैनर तले बन रही फ़िल्म ‘कंगन’ के गीत लिखने की पेशकश की।
इस फिल्म के लिए कवि प्रदीप ने चार गीत लिखे और तीन गीतों को अपनी आवाज़ दी। इसके बाद बॉम्बे टॉकीज की पांच फ़िल्मों- ‘अंजान’, ‘किस्मत’, ‘झूला’, ‘नया संसार’ और ‘पुनर्मिलन’ के लिए भी कवि प्रदीप ने गीत लिखे।
आज जितने कवियों का प्रकाश हिन्दी जगत में फैला हुआ है, उनमें ‘प्रदीप’ का अत्यंत उज्ज्वल और स्निग्ध है। हिन्दी के हृदय से प्रदीप की दीपक रागिनी कोयल और पपीहे के स्वर को भी परास्त कर चुकी है। इधर 3-4 साल से अनेक कवि सम्मेलन प्रदीप की रचना और रागिनी से उद्भासित हो चुके हैं।सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने लखनऊ की पत्रिका ‘माधुरी’ के फ़रवरी, 1938 के अंक में कवि प्रदीप पर लिखे लेख का एक अंश
प्रदीप से 'कवि प्रदीप' बनने की कहानी
यह एक रोचक कहानी है। एक बार बाम्बे टॉकीज स्टूडियो के मालिक हिंमाशु राय ने कहा कि ये रामचन्द्र नारायण द्विवेदी रेलगाड़ी जैसा लम्बा नाम ठीक नही है, तभी से उन्होंने अपना नाम प्रदीप रख लिया। उन दिनों अभिनेता प्रदीप कुमार भी काफी प्रसिद्ध थे। अब फिल्म नगरी में दो प्रदीप हो गए थे एक कवि और दूसरा अभिनेता। दोनों का नाम प्रदीप होने से डाकिया अक्सर डाक देने में गलती कर बैठता था। एक की डाक दूसरे को जा पहुंचती थी। बड़ी दुविधा पैदा हो गई थी। इसी दुविधा को दूर करने के लिए अब प्रदीप अपना नाम 'कवि प्रदीप' लिखने लगे थे। अब चिट्ठियां सही जगह पहुंचने लगी थीं।
कवि प्रदीप को 1998 में 'दादा साहब फाल्के' पुरस्कार से अलंकृत किया गया था।
पेश हैं उनके यादगार गीत-
ऐ मेरे वतन के लोगों...
का गीत आओ बच्चों तुम्हें दिखाए... जागृति (1954)
फिल्म जागृति का गीत साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल... जागृति (1954)
दूर हटो ए दुनिया वालों... किस्मत (1943)
गीत चल अकेला चल अकेला... संबंध (1968)
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान... नास्तिक (1954)
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