इरफान का ख़त: कैंसर के खिलाफ लड़ाई में दिखा जिंदगी का सच

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इरफान का ख़त: कैंसर के खिलाफ लड़ाई में दिखा जिंदगी का सच

बॉलीवुड और हॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता इरफान खान ने कुछ महीनों पहले अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा था "जिंदगी में अचानक कुछ ऐसा हो जाता है जो आपको आगे लेकर जाती है। मेरी जिंदगी के पिछले कुछ दिन ऐसे ही रहे हैं। मुझे न्यूरो इंडोक्राइन ट्यूमर नामक बीमारी हुई है। लेकिन मेरे आसपास मौजूद लोगों के प्यार और ताकत ने मुझमें उम्मीद जगाई है।"

पढ़िए क्या है उनके खत में

'इस बात को कुछ समय बीत चुका है जब मुझे पता चला कि मैं हाई ग्रेड न्यूरो एंडोक्राइन कैंसर से पीड़ित हूं। ये नाम मेरे शब्दकोश में नया है। मुझे पता चला कि ये एक दुर्लभ बीमारी है और इसके बारे में और इसके उपचार के बारे में कम जानकारी है जिसके चलते इसके ट्रीटमेंट पर संदेह भी ज्यादा है। मैं इस ट्रायल और एरर गेम का हिस्सा बन गया।

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मैं अपने एक दूसरे ही गेम में था जहां में अपने स्पीड ट्रेन में राइड कर रहा था, मेरे सपने थे, प्लान थे, कुछ गोल्स थे और उम्मीदें थी और इन कामों में मैं पूरी तरह से व्यस्त था और तब अचानक से कोई पीछे से आकर मेरे कन्धों पर थपथपा कर मुझे बुलाता है। मैं पलटकर देखता हूं तो वहां टीसी मौजूद है जो मुझसे कहता है कि तुम्हारी मंजिल आ गई है अब उतर जाओ लेकिन मैं कन्फ्यूज हो जाता हूं और कहता हूं कि नहीं मेरी मंजिल अभी नहीं आई है। ये कुछ ऐसा हो रहा है।



ये जिस तरह से आया है उससे मुझे इस बात का अंदाजा हुआ है कि आप इस ओशियन में तैर रहे एक कॉर्क की तरह हो जिसके साथ कभी भी कुछ भी हो सकता है और आप बेकरारी से इसे रोकने की कोशिश कर रहे हो।

इन सब भागदौड़ के बीच, मैं डरा सहमा सा अपने अस्पताल विजिट के दौरान एक बार अपने बेटे से कहता हूं, 'मैं खुद से बस यही चाहता हूं कि इस समय में इस तरह से परेशान न होऊं और मुझे अपने पांव जमीन पर रखना चाहिए। डर और परेशानी को मुझपर हावी होने नहीं देना चाहिए क्योंकि ये हालत को और बिगाड़ देंगे।

ये मेरा उद्देश्य था और तब दर्द ने मुझे आकर दस्तक दी जैसे अब तक आप दर्द के बारे में सिर्फ जान रहे थे। कुछ भी काम नहीं कर रहा था। किसी भी तरह का हौसला काम नहीं कर रहा था और पूरी स्थिति एक जैसी हो गई सिर्फ दर्द ही दर्द से भरा हुआ था।

जैसे ही मैं अस्पताल में दाखिल हो रहा था मुझे इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि मेरे अस्पताल के अपोजिट में लॉर्ड्स स्टेडियम है जोकि मेरे बेटे के सपनों का मक्का है। इस दर्द के बीच मैंने विवियन रिचर्ड्स की हंसती हुई तस्वीर देखी और फिर ऐसा लगा जैसे कुछ हुआ है नहीं है और ये दुनिया मेरी कभी थी ही नहीं। अस्पताल में एक कोमा वॉर्ड भी था। एक बार अपने अस्पताल की बालकनी में खड़ा था जब इस बात ने मुझे घेर लिया कि जिंदगी और मौत के दरम्यान बस एक रोड था. एक तरफ अस्पताल था और दूसरी तरफ स्टेडियम और एक तरफ ऐसा था जो कभी शांत नहीं होगा, ये बात मुझे चोट पहुंचाती थी।

मैं इस ब्रह्मांण्ड की विशाल शक्ति और बुद्धि के साथ रह गया था। मेरे अस्पताल के स्थान की विशिष्टता - यह मुझे हिट करती थी। एकमात्र चीज जो अनिश्चित थी। मैं बस इतना ही कर सकता था कि इस गेम को समझकर इसे बेहतर ढंग से खेल सकता था।

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इस अनुभूति ने मुझे खुद को समर्पित करने और विश्वास करने पर मजबूर कर दिया फिर भले ही जो भी इसका परिणाम होता और चाहे वो मुझे जहां ले जाता। अभी से चाहे 8 महीने, या फिर 4 महीने या फिर दो साल। ये सभी चिंताएं पीछे हट गईं और धुंधली हो गई और मेरे दिमाग से बाहर निकल गई।

पहली बार मुझे इस बात का अंदाजा हुआ कि आजादी क्या होती है और ये किसी जीत की तरह महसूस होती है। मानों जैसे मैं जिंदगी को पहली बार चख रहा था और इसके मैजिकल साइड को देख रहा था। ब्रह्मांण्ड की बुद्धिमत्ता पर मेरा विश्वास बढ़ गया। मुझे लगा जैसे मैं अपने हर एक सेल में दाखिल हो गया हूं।

ये तो समय ही बताएगा कि ये रहेगा या नहीं लेकिन फिलहाल मैं कुछ ऐसा ही महसूस कर रहा हूं।

अपनी इस यात्रा के दौरान, लोगों ने मेरे सेहत के लिए मेरे लिए प्रार्थना भी किया। वो लोग जिन्हें मैं जानता हूं और जिन्हें नहीं भी जानता हूं। लोग अलग-अलग जगहों से अलग-अलग समय पर मेरे लिए प्रार्थना कर रहे थे और मुझे लगता है कि उनकी प्रार्थना एक हो गई है। एक बड़े से फोर्स की तरह जो मुझमें मेरे स्पाइन से लेकर मेरे सर तक दाखिल हो गई है। ये बढ़ रहा है, एक पत्ते और की कली के समान। मैं इसे अपने पास रखता हूं और इसे देखता हूं। वो हर एक दुआ जो मेरे सामने एक पत्ते और कली के रूप में आई है वो मुझे आश्चर्य से भर देती है और मुझे अनुभूति कराती है कि कॉर्क को कुछ भी कंट्रोल करने की जरूरत नहीं है और आपको कुदरत के इस झूले में आराम से झुलाया जा रहा है।"

साभार: फर्स्टपोस्ट



     

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