पारम्परिक लोकगीतों को संजो रहीं संजोली 

Divendra SinghDivendra Singh   2 April 2017 7:51 PM GMT

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पारम्परिक लोकगीतों को संजो रहीं संजोली लोक गायिका संजोली पांडेय परंपारिक लोकगीतों के संरक्षण का काम कर रहीं हैं।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

लखनऊ। बच्चे के जन्म से लेकर शादी तक के लोकगीत गाए जाते हैं, लेकिन आधुनिकीकरण के इस दौर में लोक गीतों की संस्कृति विलुप्त होती जा रही है, ऐसे में लोक गायिका संजोली पांडेय परंपारिक लोकगीतों के संरक्षण का काम कर रहीं हैं।

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फैज़ाबाद के छोटे से गाँव रामपुर की रहने वाली संजोली पाण्डेय (23 वर्ष) बचपन से ही भोजपुरी और अवधी गीत गाती हैं। आज संजोली एक लोकगायिका के नाम से जानी जाती हैं। वह अपने लोकगीतों के माध्यम से समाज को जाग्रत करने का प्रयास कर रही हैं। भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, लड़कियों की शिक्षा, किसानों के लिए गाना गाना उसे पसंद है और वो खुद भी गीत लिखती हैं।

गीतों में सोहर, मुंडन, कनछेदन, जनेऊ, विवाह एवं गौना (बहू विदाई) के गीत दोनों क्षेत्रों में गाए जाते हैं। संजोली ने पारम्परिक धरोहर नाम से लोक गीतों का एलबम निकाला है, जिसमें देवी गीत, सोहर, बधाईयां, कजरी, कहरवा, लाचारी जैसी लोक विधाओं के कई गीत गाए हैं। संजोली कहती हैं, “लचारी गीत जब राम-सीता वन को जा रहे थे, उन्हीं के बारे में लाचारी गीत में बताया जाता है।”

सोहर घर में बेटे के होने पर गाया जाने वाला मंगल गीत है। इसको संतान के जन्म और उससे संबंधित अवसरों जैसे सतमासा, इत्यादि अवसरों पर गाया जाता है। इन गीतों में संतान के जन्म, उससे संबंधित कहानियों और उत्सवों के सुंदर वर्णन मिलते हैं। अभी तक सोहर सिर्फ बेटे के जन्म पर गाया जाता है, लेकिन संजोली ने बेटी के लिए सोहर गाना शुरु किया है।

संजोली बताती हैं, “बचपन से ही सुनती आई हूं, सोहर केवल बेटे के जन्म में ही गाया जाता है, मैंने सोचा कि मैं लड़कियों के लिए सोहर गाऊंगी, इसीलिए मैंने अपने एलबम में एक सोहर भी गाया है, जिसे लिखा भी मैंने खुद है। आगे भी मैं ऐसे गीत गाती रहूंगी।” संजोली कहती हैं, “मैं ऐसे जिले फैजाबाद से हूं जहां पर लड़कियों को पढ़ने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, मेरे माँ-पापा ने परिवारवालों और गाँववालों से छिपकर मुझे इस काबिल बनाया, अपना सब कुछ छोड़ मेरे लिए शहर में बस गए। मैं समाज में फैली कुप्रथा पर गीत इसलिए गाती हूं ताकि लोगों को जागरूक कर सकूं।”

एक समय था जब गाँवों में हर कार्यक्रम के लिए अलग-अलग गीत गाए थे, बच्चा पैदा होने पर सोहर, शादी के लिए बन्ना, बन्नी, नकटा जैसे गीत गाए जाते थे, लेकिन अब धीरे-धीरे कम हो गया है, अगर ऐसा ही तो धीरे-धीरे लोग इन गीतों को भूल जाएंगे।
संजोली पांडेय, लोक गायिका

समाज को जागरुक करने का प्रयास

आज संजोली एक लोकगायिका के नाम से जानी जाती हैं। वह अपने लोकगीतों के माध्यम से समाज को जाग्रत करने का प्रयास कर रही हैं। भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, लड़कियों की शिक्षा, किसानों के लिए गाना गाना उसे पसंद है और वो खुद भी गीत लिखती हैं।

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