रोचक किस्सों के साथ जानिए क्यों मनाया जाता है 'अप्रैल फूल डे'

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रोचक किस्सों के साथ जानिए क्यों मनाया जाता है अप्रैल फूल डेभारत के साथ कई देशों में मनाया जाता है अप्रैल फूल डे।

लखनऊ। 'अप्रैल फूल' सुनने में ही कुछ शरारतभरा लगता है और है भी ऐसा। एक अप्रैल पर लगभग सभी लोगों का खुरापाती दिमाग ज़ोरों से दौड़ने लगता है। किस तरह से अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और करीबी लोगों को बेवकूफ़ बनाकर उनका मज़ाक उड़ाया जाए, इसकी प्लानिंग लोग दो-चार दिन पहले से ही शुरू कर देते हैं। अफ़वाहें उड़ाकर, शरारत करके लोगों की खिल्ली उड़ाई जाती है और ऐसा जताया जाता है कि जैसे सबकुछ सच हो। फिर जाकर बाद में पता लगता है कि सब कुछ नाटक था, मज़ाक था।

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जहां कुछ लोग अप्रैल फूल का दमदार झटका देने की तैयारी कर रहें होते हैं वहीं कुछ लोग अपनी ही दुनियादारी में व्यस्त रहते हुए इस दिन से अंजान रह जाते हैं। उन्हें बस इतना याद रहता है कि एक अप्रैल महीने की पहली तारीख है। शायद ऐसे ही कामकाजी लोग अप्रैल फूल बन जाते हैं और लोगों के हंसी-मज़ाक में अक्सर इनका ज़िक्र होता है। किसी को फूल (बेवकूफ़) बनाने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि वह पहले से ही बेवकूफ बल्कि लोग इस इरादे से ऐसा करते हैं जिससे कि वे इस तरह के लोगों की चुटकी ले सकें, सभी के चेहरे हंसते-हंसते लाल हो जाएं। वैसे तो अप्रैल फूल डे पश्चिमी सभ्यता की देन है लेकिन यह भारत के साथ दुनिया के कई देशों में मनाया जाता है।

अप्रैल फूल डे (मूर्खता दिवस) कहां से, कब से और कैसे आया, इसके बारे में भी जरूर लोग सोचते होंगे। इसकी शुरुआत के भी कई किस्से हैं। इसे लेकर कई मान्‍यताएं हैं। इनमें से सबसे ज्यादा प्रचलित मान्यता ब्रिटेन के लेखक चॉसर की किताब 'द कैंटरबरी टेल्स' की एक कहानी पर आधारित है।

1381 में कैंटरबरी के लोग पहली बार बने अप्रैल फूल

अपनी किताब कैंटरबरी में चॉसर ने बताया है कि किस तरह पहली बार लोगों ने बिना तथ्य की बात और अफ़वाह को सच मानकर उसे गंभीरता से लिया। बताया जाता है कि 13वीं सदी में एक घोषणा की गई थी। इसके मुताबिक इंग्लैंड के राजा रिचर्ड सेकेंड और बोहेमिया की रानी एनी की सगाई 32 मार्च 1381 को आयोजित होने वाली थी। कैंटरबरी के जन-साधारण ने सगाई की इस तारीख को सही मान लिया और इसपर किसी ने गौर नहीं किया कि ऐसी कोई तारीख यानि 32 मार्च जैसा कुछ होता ही नहीं है। इसतरह इस तारीख को वहां के लोगों ने सच समझा और बेवकूफ़ बन गए। उसी समय से एक अप्रैल को मूर्ख दिवस (अप्रैल फूल डे) मनाया जाने लगा।

सफेद गधों को नहाता देखने के लिए पहुंचे लंदनवासी और बन गए अप्रैल फूल

अगर किसी को गधा बोला जाए उसका सीधा मतलब है कि उसे बेवकूफ कहा जा रहा है। इसी तरह गधों से जुड़े एक किस्से में ही लोग गधे बन गए और उन्हें अप्रैल फूल बनाया गया। यह किस्सा है एक अप्रैल 1860 का जो बहुत मशहूर हुआ। बताया जाता है कि इस दिन लंदन के हजारों लोगों के घरों में पोस्ट कार्ड भेजकर उन्हें एक रोचक जानकारी दी गई थी। उस पोस्ट कार्ड में लिखा गया था कि उस शाम (एक अप्रैल को) टॉवर ऑफ लंदन में सफेद गधों को नहलाया जाएगा जिसे देखने के लिए सभी लोग आमंत्रित हैं। लोगों से कहा गया कि गधों को देखने के लिए सभी लोग कार्ड जरूर लेकर आएं। शाम हुई और टावर के बाहर हज़ारों लोगों की भीड़ सफेद गधा-स्नान देखने पहुंच भी गई। लोगों में आगे पहुंचने की धक्का-मुक्की भी होने लगी लेकिन न कोई गधा दिखा और न उसे नहलाने वाला। बाद में पता चला कि उन दिनों किसी वजह से टॉवर ऑफ लंदन बंद था और इस तरह वहां पहुंचे लोग अप्रैल फूल बन गए।

2013 में पूरी दुनिया को बनाया गया था अप्रैल फूल

चार साल पहले 2013 को एक अफ़वाह फैलाई गई थी। इसके मुताबिक 31 मार्च को यह कहा गया था कि एक अप्रैल से यूट्यूब बंद कर दिया जाएगा। इतना ही नहीं, घोषणा तो यहां तक कर दी गई थी कि बीते पिछले सालों में यूट्यूब पर जितने भी वीडियो अपलोड किए गए हैं, उनमें से सबसे अच्छे वीडियो का चुना जाएगा। इस चुनाव के लिए एक खास पैनल भी बनाया गया है। यह पैनल 2023 में परिणाम की घोषणा करेगा। इन सभी बातों को लेकर पूरी दुनिया में तरह-तरह की बातें होने लगीं। कुछ 2023 के परिणाम के बारे में सोचने लगे तो कुछ इस सोशल मीडिया के बंद होने की बात से निराश हुए। जब एक अप्रैल आया तब भी यूट्यूब जैसे का तैसा ही रहा। इस तरह बाद में पता चला कि लोगों को अप्रैल फूल बनाने के लिए यह शरारत की गई थी।

जिसने अप्रैल से की नए साल की शुरुआत, वह बना अप्रैल फूल

साल 1564 से पहले यूरोप के ज्यादातर देशों में पहले से ही एक ऐसा कैलेंडर प्रचलित था जिसमें नया साल एक अप्रैल से शुरू होता था। इसके बाद साल 1564 में वहां के राजा चार्ल्स नवम् ने एक नया कैलेंडर जारी करने का आदेश दिया। उस मए कैलेंडर के मुताबिक अप्रैल से शुरू होने वाला नया साल अब एक जनवरी से शुरू हो रहा था। इस बदलाव को जिसने माना वह हुआ सयाना लेकिन जिसने नहीं माना उसे अप्रैल फूल समझा गया।

भारत से भी जुड़ा है अप्रैल फूल का किस्सा

कहा जाता है कि आज से कई साल पहले पूरी दुनिया में भारतीय कैलेंडर की मान्‍यता थी। इस मान्यता के अनुसार नया साल चैत्र मास में शुरू होता था जो अप्रैल महीने में होता था। बताया जाता है कि 1582 में पोप ग्रेगोरी ने नया कैलेंडर लागू करने के लिए कहा। पोप की ओर से जारी किए गए नए कैलेंडर के मुताबिक नया साल अप्रैल की जगह जनवरी में शुरू होने लगा और ज्‍यादातर लोगों ने नए कैलेंडर को मान लिया। कुछ ने तो पोप के फैसले को माना लेकिन कुछ ऐसे भी थे जिन्‍होंने नए कैलेंडर को मानने से इंकार कर दिया। उन्होंने नये साल के लिए अप्रैल को ही चुना और इसलिए उन्‍हें बेवकूफ कहा जाने लगा। यहीं से एक अप्रैल को अप्रैल फूल डे मनाया जाने लगा।

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