मौसम की मार के बाद अफसर कर रहे परेशान
गाँव कनेक्शन 15 Oct 2015 5:30 AM GMT

सुलतानपुर। जिले के किसानों पर इस बार चौतरफा मार पड़ी है। ओलावृष्टि से बर्बाद गेहूं की फसल का आज तक मुआवज़ा भी नहीं मिला है, तो कम बारिश से बर्बाद हुई धान की फसल को काटकर पशुओं को खिलाने पर मज़बूर हैं।
जिला मुख्यालय से 21 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में कूरेभार विकास खंड के गलिबहां निवासी अनिल सिंह (50 वर्ष) इन दिनों काफी परेशान हैं। मायूस अनिल बताते हैं, “हमने जो किसान क्रेडिट कार्ड बनवाया है उससे हर बार फसल बीमा के पैसे काटे जाते हैं, लेकिन फसल बर्बाद होने पर लाभ कभी नहीं मिलता। गेहूं की पूरी फसल चौपट हो गई थी। दोबारा गेंहू बोने का मौसम आ गया है लेकिन आज तक पैसा खाते में नहीं आया है।”
अनिल सिंह की तरह जिले के हजारों किसानों ने फसली बीमा कराया था। लेकिन अधिकारियों, बैंक और बीमा कंपनी में तालमेल न होने ने किसानों की उनकी जरूरत पर पैसा नहीं मिल रहा है।
निदूरा गलिबहां के राज कुमार तिवारी (35 वर्ष) को गृहस्थी चलाने में दिक्कत आ रही है। वो बताते हैं, “न गेहूं ठीक से हुए न धान होने की उम्मीद है। छह महीने बीत गए हैं आपदा राहत का पैसा नहीं आया। उम्मीद थी सूखा राहत वाला पैसा मिल जाएगा तो आलू बो देंगे। अब या तो कर्ज लेकर खेती करें या फिर खेत खाली छोड़ दें।”
राजकुमार आगे बताते हैं, “कई बार कंपनी को फोन किया तो कंपनी वाले कहते हैं अपनी बैंक में संपर्क करो हमने पैसा भेज दिया है।”
उपकृषि निदेशक आरपी वर्मा भी मानते हैं किसान परेशान हो रहे हैं। आरपी वर्मा ने गांव कनेक्शऩ को बताया, "किसानों की शिकायतों को हमने कई पत्रों के माध्यम से ऊपर तक पहुंचाया है। लीड बैंक मैंनेजर से जानकारी मांगी थी। जानकारी नहीं मिलने पर जिलाधिकारी से शिकायत भी की है।”
हालांकि इस बारे में जब जिले में बीमा कराने वाले किसानों का काम देखऩे वाले लीड बैंक अधिकारी एस. पी.
श्रीवास्तव कुछ और कहते हैं। “पूरे जिले में फसली बीमा इन्सोरेंश के तहत 5918 किसानों को कवर किया गया, जिसमें 4757 किसानों को बीमा कम्पनी ने सभी बैंकों के माध्यम से सम्बन्धित खाते में 2,52,62,362 रुपये जुलाई के महीने में ही भेजा जा चुका है। अब तक किसानों तक पैसा क्यों नहीं पहुंचा हम इसकी जांच कराएंगे।” एसपी श्रीवास्तव बताते हैं।
लोकेपुर निवासी शरद सिंह (38 वर्ष) बताते हैं, बजाज एलियांश कम्पनी द्वारा बैंक से प्रति एकड़ 513 रुपए प्रति साल फसली बीमा पर काटा जाता है। लेकिन इसका लाभ नही दिया गया। जेब से बैंक की पासबुक निकालकर दिखाते हुए शरद सिंह कहते हैं, हम लोग बैंक जाते हैं और बीमा के पैसे के बारे में पूछते हैं तो बैंक वाले कहते हैं कृषि अधिकारी से मिलो। कृषि अधिकारी भी बस आश्वासन देते हैं।”
रिपोर्टर - केडी शुक्ला
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