चाइना टाउन: खून से चीनी, दिल से भारतीय
गाँव कनेक्शन 26 Oct 2016 5:58 PM GMT

सीमा शर्मा
मुंबई। अगर आप मुंबई में रहते हैं तो शायद जानते हो लेकिन अगर आप मुंबई के बाहर रहते हैं तो शायद ही जानते हों कि मुंबई के एक इलाके में ‘चीनी’ मंदिरहै। मुंबई के मझगांव इलाके में एकलौता और बेहद प्राचीन चीनी सभ्यता का मंदिर है जहां आज भी चीनी मूल के लोग आकर पूजापाठ करते हैं।
मंदिर कई सदी पुराना है लेकिन अगर आप मंदिर की दूसरी गली में पूछे तो शायद ही कोई इसके बारे में बता पाए। खैर काफी भटकने के बाद जब हम यहां पहुंचे तो इसे देखना अपने आप में किसी रोमांच से कम नहीं था। संकरी गलियों में पेड़ के पीछे खामोश खड़ा ये तीन मंजिला मंदिर आसपास के लोगों से भी अनजान है। पूरी तरह से लाल रंग में रंगा ये मंदिर पहली नजर में ही आपको मोह लेता है। मंदिर के भीतर घुसते ही आपको चीनी संस्कृति के दर्शन होते हैं। मध्यम आवाज में बज रहा चीनी संगीत आपको किसी भी अन्य मंदिरों में मिलने वाली शांति का अहसास कराता है। पहले और दूसरे माले पर अलग अलग भगवानों की मूर्तियां हैं। मंदिर के केयरटेकर अल्बर्ट थंग बताते हैं, “तीसरे माले पर ह्वान कुंग की मूर्ति है जो एक योद्धा थे। वहीं दूसरे माले पर चायनीज ‘देवी’ के अलावा भगवान ‘बुद्ध’ और भगवान ‘शंकर’ की भी तस्वीरे हैं। कई पीढ़ियों से यहां रहने से उन्हें यहां की हर चीज से प्यार है इतना ही नहीं वे कहते हैं कि उनके प्रिय भगवान भोले भंडारी शिव जी हैं।” भगवान शिव की कई रोचक कहानियां उनसे सुनना चौकाने वाला था।
चीन और भारत के कई संस्कार एक समान हैं। पौराणिक कहानी के अनुसार वे बताते हैं, “सदियों पूर्व भगवान बुद्ध से प्रभावित होकर चीन के स्वांन स्वांग नाम के एक महाज्ञानी भारत आए और यहां उन्होंने ज्ञान प्राप्त किया, जिसे उन्होंने संस्कृत में लिपिबद्ध किया। आज भी चीन में संस्कृत में ही उन कृतियों को पढ़ा जाता है। मंदिर में इन योद्धा की यात्रा का वर्णन भी मिलता है।”
18वीं सदी में हमारे पूर्वज भारत आए थे और फिर यहीं के होकर रह गए। कुछ वापस भी गए लेकिन जो रह गए वो भारतीय हो गए। हम लोगों की रगों में खून भले चीनी मूल का हो लेकिन भीतर नमक भारत का है और दिल उनका भारत के लिए ही धड़कता है।अल्बर्ट थंग, केयरटेकर, चीनी लाल मंदिर, चाइना टाउन, मुंबई
मंदिर की बारीकियों को समझाते हुए अल्बर्ट थंग कहते हैं, “18 वी सदी में हमारे पूर्वज भारत आए थे और फिर यहीं के हाकर रह गए। कई पीढ़ियों को वापस जाने का मौका मिला और कई लोग चले भी गए लेकिन कुछ थे जो भारत नहीं छोड़ पाए और आज भी यहीं हैं। बेशक उनकी रगों में खून चीनी मूल का हो लेकिन उनके भीतर नमक भारत का है और दिल उनका भारत के लिए ही धड़कता है।”
पूरी तरह से भारतीय हो चुके अल्बर्ट बताते हैं कि इस वक्त मुंबई में 400 के करीब चीनी मूल के परिवार रहते हैं। पहले सभी लोग मझगांव के इसी इलाके में रहते थे, जिसके चलते आम भाषा में इस इलाके को ‘चाइना टाउन’ भी कहा जाने लगा था। लेकिन अब नई पीढ़ी भविष्य की तलाश में मुंबई और देश के अन्य शहरों में पलायन कर रही है। बाहरी होने की वजह से कभी किसी प्रकार की परेशानी का सामना करता पड़ा पूछे जाने पर वे मुस्कुराते हुए कहते हैं कि एकदम शुरूआत में लोग चीनी चीनी कहकर छेड़ते थे लेकिन बाद में सब सामान्य हो गया। वे बताते हैं, “लोगों का सहयोग और प्यार इतना मिला कि कभी लगा ही नहीं कि हम पराए देश में हैं।“ अल्बर्ट बेहद फर्क के साथ मानते हैं कि वे भारत के है और मरतेदम तक भारत के ही रहेंगे। चीनी सभ्यता की एकमात्र निशानी यह मंदिर केवल चीनी लोगों के लिए ही नहीं सभी के लिए खुला है स्थानीय निवासी थामस बताते हैं कि वो कभी भी शांति के लिए मंदिर में आकर घंटों बैठे रहते हैं।
चीनी मंदिर में इंडियन दीवाली
एक तरफ देश में चाइनीज सामान का बहिष्कार करने की बात की जा रही है, तो दूसरी तरफ यहां रह रहे चीनी मूल के लोग हैं जो पूरी तरह से भारतीय हो चुके हैं। खानपान, पहनावे, बोलचाल ही नहीं इनकी पूजा की अलमारी में हिंदू भगवान भी शामिल हैं। करीब 200 साल से पहले भारत आकर बसे चाइनीज मूल के लोग देश को इस कदर अपना चुके हैं कि त्यौहारों का भी भेद नहीं रहा। अपने प्रमुख त्यौहार न्यू ईयर के अलावा ये लोग दीपावली भी बड़े जोश खरोश से मनाते हैं। मंदिर के पुजारी और केयरटेकर अल्बर्ट बताते हैं कि दीवापली से पूर्व मंदिर और घरों की सफाई की जाती है और दीपावली पर मंदिर को सजाया जाता है। मुंबई के कई अन्य इलाकों से भी लोग दीवाली की रात यहां दर्शन के लिए आते हैं।
हमारे मंदिर में चीनी लाइट्स और भारतीय मिट्टी के दिए एक साथ जलते हैं।अल्बर्ट थंग, चीनी सामान के बहिष्कार पर
दीपाली पर चीनी सामान के बहिष्कार पर वे कहते हैं कि ये सब राजनीति है। सामान्य लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। एक विचारधारा के लोग हैं जो ये सब फैला रहे हैं वरना देश की सामान्य जनता ऐसा कुछ नहीं सोचती। वे कहते हैं हमारे मंदिर में चीनी लाइटस और भारतीय मिट्टी के दिए एक साथ जलते हैं।
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