मज़दूरों के हक के लिए लड़ता 'निर्माणा'

vineet bajpaivineet bajpai   12 Dec 2015 5:30 AM GMT

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मज़दूरों के हक के लिए लड़ता निर्माणागाँव कनेक्शन

गांधीग्राम (लखनऊ)। गांधीग्राम के ग्रामीण कई पुश्तों से उसी गाँव में रह रहे हैं, उनकी सारी यादें उसी गाँव से जुड़ी हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उन्हें वहां से हटा दिये जाने का डर सता रहता था कि कहीं यहां से हटा दिये गये तो हम लोग रहेंगे कहां, क्योंकि पूरा गाँव मजदूरी के भरोसे अपना जीवनयापन करता है और उनकी इतनी हैसियत नहीं है कि वो कहीं और ज़मीन खरीद कर अपने रहने की व्यवस्था कर सकें।

गांधीग्राम लखनऊ जि़ला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर सरोजनी नगर ब्लॉक की कल्ली पश्चिम ग्राम पंचायत में आता है। दरअसल पुलिस विभाग ने पुलिस लाइन से लगे इस गाँव के चारों तरफ करीब तीन साल पहले दीवार बना दी थी और कई बार हटने को भी कह चुके हैं। 

''ये लोग वर्षों से यहां पर रहते हैं लेकिन ये ज़मीन इन लोगों के नाम नहीं है। ये ज़मीन ग्राम सभा की है।"

कल्ली पश्चिम गाँव के घसीटेलाल जो खुद निर्माणा के सदस्य है, बताते हैं, "इस बारे में जब मैंने निर्माणा संस्था की लखनऊ शाखा के प्रमुख अध्यक्ष प्रमोद पटेल से बताया तो उन्होंने हम लोगों के साथ मिल कर लखनऊ तहसीलदार सदर के कार्यालय में आरटीआई के तहत ये जानकारी मांगी कि इन लोगों को यहां से क्यों हटाया जा रहा है और अगर इन लोगों को विस्थापित कर रहे हैं तो रहने के लिए ज़मीन कहां दे रहे हैं।"

वो आगे बताते हैं, "आरटीआई के जवाब में पता चला कि उन लोगों को दूसरी जगह रहने के लिए एक-एक बिस्सा ज़मीन दी गयी थी, जिसकी जानकारी उन लोगों को नहीं थी। लेकिन अभी तक सिर्फ 57 परिवारों को ज़मीन दी गयी है, करीब 60 लोगों को मिलनी बाकी है।"

निर्माणा संस्था का गठन वर्ष 1990 में दिल्ली में हुआ था और ये संस्था वर्तमान में छह राज्यों (उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश) में काम कर रही है। ये संस्था मज़दूरों के हक के लिए काम करती है, जिसके लिए ये कैम्प लगाकर मज़दूरों के पंजीकरण कराती है, क्योंकि पंजीकरण के बाद ही उनको सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाया जा सकता है।

निमार्णा संस्था की लखनऊ शाखा के प्रमुख अध्यक्ष प्रमोद पटेल बताते हैं, "हमारा काम मज़दूरों के हित के लिए काम करना है। अभी अगर हम इसी गाँव की बात करें तो यहां के जो मज़दूर हैं, उनका हम लोगों ने पंजीकरण करवाया और उसके बाद इस गाँव के करीब 20 मज़दूरों को साइकिल मिली, कुछ मज़दूरों को ज़रूरत के उपकरण खरीदने के लिए 1,900 रुपए के चैक भी दिए गए हैं।" निर्माणा कैम्प लगाकर मज़दूरों का पंजीकरण करवाता है, उसके बाद सरकार द्वारा मज़दूरों के लिये चलाई जा रही योजनाओं का लाभ दिलवाने में मदद करता है।

उसी गाँव की सुनीता बताती है, ''हमको पहले ये नहीं पता था कि रजिस्ट्रेशन भी होता है। ये सब हम लोगों को निर्माणा से ही पता चला।"

 

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