ममता के मंच पर ‘तीसरे मोर्चे’ की झलक

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ममता के मंच पर ‘तीसरे मोर्चे’ की झलकगाँव कनेक्शन

नई दिल्ली (भाषा)। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‘संघ मुक्त भारत’ के आह्वान के तहत साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एक नये ‘राष्ट्रीय मोर्चा’ की पहल और पांच राज्यों में चुनाव के नतीजे सामने आने के बाद ममता बनर्जी की परिकल्पना ‘संघीय मोर्चे’ पर बहस शुरु होने के साथ ही यह बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है कि इस विषय पर अतीत के प्रयासों के परिणाम को देखते हुए क्या भाजपा और कांग्रेस से इतर केंद्रीय स्तर पर ‘तीसरे मोर्चे’ की संकल्पना साकार होगी।     

‘संघीय मोर्चा’ की परिकल्पना को आगे बढ़ाने के विचार पर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि बंगाल में ममता बनर्जी के पुन:सत्तारुढ़ होने के बाद जैसे ही यह बात उठी तो ‘’मैंने कहा था कि यह पहले से जांचा परखा और विफल विचार है।’’     

ममता बनर्जी की ताजपोशी में हिस्सा लेने गए नेताओं को देखकर उठे इस विचार के बारे में जेटली ने कहा है कि जब तक किसी गठबंधन का केंद्रीय दल राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत नहीं होगा तब तक वह भारत जैसे विशाल देश में स्थिर सरकार नहीं दे पायेगा।

कांग्रेस ने संघीय मोर्चा के विचार को ‘मृगमरीचिका’ करार दिया। कांग्रेस नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि संघीय मोर्चा, तीसरा मोर्चो या चौथे मोर्चे के गठन की संभावना का विषय भारतीय राजनीति में ‘‘स्थायी मृगमरीचिका’’ है।

गैर भाजपा और गैर कांग्रेस दलों के कुछ नेताओं ने भाजपा को चुनौती देने के लिए केंद्र में एक ‘संघीय मोर्चा’ की परिकल्पना पर लगातार दूसरी बार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाली तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने इस विचार का समर्थन करते हुए कहा कि समान सोच वाले दल अगर इस तरह का मोर्चा बनाते हैं तो वह उसे समर्थन देंगे। 

साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने संघीय मोर्चा का प्रस्ताव किया था, लेकिन तब उनका सपना साकार नहीं हो सका था।अब ममता बनर्जी के शपथग्रहण समारोह में लालू प्रसाद, फारुक अब्दुल्ला, अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव समेत कई क्षेत्रीय दलों के नेताओं की मौजूदगी से तीसरे मोर्चे पर अटकलें तेज हो गई हैं।

ममता बनर्जी के संघीय मोर्चा की परिकल्पना के साथ-साथ नीतीश कुमार के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा का विचार भी हाल ही में काफी चर्चा में रहा। बिहार के मुख्यमंत्री ने संघमुक्त भारत का आह्वान करते हुए उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान समेत देश के विभिन्न राज्यों का दौरा किया और तब नीतीश कुमार के नेतृत्व में ‘राष्ट्रीय मोर्चा’ के गठन का विषय सुर्खियों में रहा था। 

पांच राज्यों के चुनाव नतीजे चौंकाने वाले नहीं हैं, अलबत्ता कुछ अपेक्षित, कुछ अभूतपूर्व जरुर कहे जा सकते हैं। इसमें महत्वपूर्ण बात यह कि तीन राज्य वैसे हैं जहां कांग्रेस न तो सत्ता में आई या लौटी और इनमें भाजपा के प्रभाव में थोड़ी वृद्धि जरुर हुई है लेकिन वह ताकतवर विकल्प के रुप में अभी नहीं उभरी है। इन तीन राज्यों में से पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और तमिलनाडु में जयललिता की अन्नाद्रमुक ने सत्ता में वापसी की है और केरल में वाममोर्चा गठबंधन सत्ता में आया है। इन तीनों राज्यों में क्षेत्रीय दलों ने अपना परचम लहराया जिनमें से दो ने दमदार वापसी की। ऐसे में राष्ट्रीय राजनीति में नए विकल्पों की संभावनाओं को, इन परिणामों ने बलवती कर दिया।

इतिहास पर नजर डालें तो कांग्रेस का वर्चस्व पहली बार 1977 में टूटा था। जब आपातकाल के बाद जेपी आंदोलन की पृष्ठभूमि में मोराजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी सत्ता में आई। इसके बाद 1988 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में मोर्चा बना और सत्ता में आया। 1998 और 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में विभिन्न दलों का गठबंधन बना और यह गठबंधन सत्ता में आया।

राजनीतिक विश्लेषकों का हालांकि कहना है कि ऐसे किसी गठबंधन के लिए नीतीश कुमार, लालू प्रसाद के साथ मुलायम सिंह यादव, मायावती, जयललिता, नवीन पटनायक, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल को एक मंच पर आने की जरुरत होगी। इनमें से कई पहले ही प्रधानमंत्री पद के लिए अपनी इच्छा व्यक्त कर चुके हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन बनाने की राह में बाधक है।

संघीय मोर्चे पर लालू प्रसाद का कहना है कि भाजपा को हराना जरुरी है क्योंकि पार्टी और संघ परिवार देश को विभाजित करना चाहता है। मोदी सरकार में विकास नहीं हो रहा है। लालू प्रसाद का कहना है कि धर्मनिरपेक्ष और समान सोच वाली पार्टियों को साथ बैठकर भाजपा के खिलाफ एक मोर्चा बनाने के लिए बातचीत करनी होगी।

नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारुक अब्दुल्ला ने कहा है कि केंद्र में एक संघीय मोर्चा बनाने की संभावना है। फारुक का मानना है कि समान सोच वाले कई दल और नेता हैं और ममता बनर्जी उनमें से एक हैं।

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इस विचार पर कोई प्रतिबद्धता व्यक्त करने से बचते रहे हैं। ममता के शपथग्रहण समारोह में इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने सिर्फ इतना कहा था कि हम यहां उन्हें बधाई देने आए हैं। यह हम सबके लिए और लोकतंत्र के लिए महान दिन है।

केंद्रीय मंत्री एवं भाजपा के वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, ‘‘यह हताश एवं निराश लोगों का प्रयास है जो पहले गैर कांग्रेसवाद के नाम पर राजनीति करते थे और अब खुद ही कांग्रेस की गोद में बैठ गए हैं।’’     

उन्होंने कहा कि यह विचार साकार नहीं होने वाला ‘‘क्योंकि इनके पास न कोई नीति है और न ही नेतृत्व। इनकी नीति केवल भाजपा का विरोध है और नेतृत्व बिखरा हुआ है। ये अपनी राजनीतिक पहचान और अस्तित्व बचाने की जुगत में लगे हुए हैं।’’साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा, कांग्रेस और सपा, जदयू, बसपा एवं कुछ दलों के लिए सबसे बड़ा दांव 2017 में छह राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं।

जदयू के वरिष्ठ नेता शरद यादव का कहना है कि नीतीश कुमार के जदयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से भाजपा विरोधी ताकतों को एकजुट करने की पहल को मजबूती मिलेगी और यह देश में राजनीतिक विकल्प के द्वार खोलेगा। कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने कहा है कि हमारा कांग्रेस और राजद के साथ बिहार में गठबंधन है। इसी तरह से कुछ दलों के साथ राज्य स्तर पर गठबंधन हैं. हम विपक्षी दलों की एकजुटता के पक्षधर हैं।           

 

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