मूंगफली की कम पैदावार से किसान निराश

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मूंगफली की कम पैदावार से किसान निराश

रायबरेली। अलीपुर गाँव के सुखराम पासवान (61 वर्ष) इस वर्ष अपने खेत में मूंगफली की पैदावार से खुश नहीं हैं, जिस खेत में उन्हें हर वर्ष कुन्तलभर मूंगफली मिलती थी, आज उसी खेत से उन्हें 50 किलो मूंगफली भी नसीब नहीं हो रही है।

रायबरेली जिला मुख्यालय से 14 किमी पूर्व दिशा में दरीबा-कड़घर मार्ग से सटे अलीपुर गाँव के निवासी सुखराम बताते हैं, ''बारिश न होने से मूंगफली बढ़ नहीं पा रही है। मूंगफली का आकार छोटा रह गया है और पैदावार भी कम हो रही है।"

विश्व में सबसे बड़ा मूंगफली उत्पादक देश भारत है। इसकी सबसे ज्यादा पैदावार गुजरात में होती है। उत्तर प्रदेश में मूंगफली की खेती मुख्यत: झांसी, हरदोई, सीतापुर, कानपुर, उन्नाव, बरेली, बदायूं, एटा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, मुरादाबाद, रायबरेली एवं सहारनपुर में की जाती है। भारत में मूंगफली की खेती का कुल क्षेत्रफल 4.5 लाख हेक्टेयर है।

अपनी खेत की मूंगफली दिखाते हुए सुखराम आगे बताते हैं, ''पिछले वर्ष हमने इसी खेत (10 बिस्वा) से करीब एक कुंतल मूंगफली पैदा की थी। अबकी बार  50 किलो भी नहीं मिलेगा।"

उत्तर प्रदेश कृषि निदेशालय के सांख्यिकी विभाग से आंकड़ों के अनुसार, 29 सितम्बर तक औसतन 350 से 380 मिमी वर्षा हुई जो सामान्य का 45 फीसदी रही। पिछले वर्ष इस अवधि तक प्रदेश में कुल 750 मिमी वर्षा हुई थी जो सामान्य का 78 फीसदी थी। कम वर्षा के चलते प्रदेश में मूंगफली समेत तिल्ली व अन्य तिलहन फसलों की पैदावार में 22 फीसदी गिरावट हुई है।

दस वर्षों से मूंगफली की खेती कर रहे रायबरेली के उन्नत किसान रामलखन वर्मा कहते हैं, ''मूंगफली की बढिय़ा उपज लेने के लिए किसान पूरी तरह से सिंचाई पर निर्भर रहता है। इस बार बारिश न होने से किसान को नुकसान सहना पड़ रहा है।"

जहां मौसम की मार का खामियाज़ा मूंगफली किसानों को झेलना पड़ रहा है,  वहीं दूसरी और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में मूंगफली की मांग कम होने से निर्यातकों को भी घाटे का सौदा करना पड़ रहा है।

देश की प्रख्यात तिलहन व्यापार व प्रसंस्करण इकाई गुजरात आयल सीड प्रोसेसर्स एसोसिएशन (जीओपीए) के मुताबिक, अक्टूबर 2013 से भारत के अंतरराष्ट्रीय मूंगफली व्यापार में लगातार कमी आई है। जीओपीए के अध्यक्ष मुकुंद शाह ने कहा, ''हमारी मूंगफली उत्पादन की लागत करीब 53 रुपए प्रति किग्रा है,लेकिन  मांग कम होने से निर्यातक हमसे मूंगफली 51 रुपए प्रति किग्रा की दर से मांग रहे हैं, ऐसा करना हमारे लिए घाटे का सौदा है।"

वर्ष 2013-14 में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर मूंगफली की फसल खरीदने में केंद्र सरकार के पसीने छूट गए थे वहीं इस बार केंद्र्रीय तेल उद्योग एवं कारोबार (सीओओआईटी) के मुताबिक मॉनसून की देरी से भारत में वर्ष 2014-15 के दौरान खरीफ मूंगफली का उत्पादन 24 फीसदी कम हुआ है।

रायबरेली में मूंगफली की खरीद बड़े स्तर पर लालगंज मंडी में होती है। पिछले आठ वर्षों से कानपुर, रायबरेली और उन्नाव जिलों के किसानों से मूंगफली खरीद रहे लालगंज मंडी के व्यापारी लल्लन सिंह बताते हैं, ''मंडी में मूंगफली 20 से 25 दिन बाद आना शुरू हो जाएगी। पिछली बार कच्ची मूंगफली का रेट 70 से 80 रुपए था, जिसे भुनवाकर 100 से 120 रुपए तक बेचते थे। इस बार फसल कम हुई है दाम कम मिलेगा।" 

मूंगफली की खेती में घटती उपज को रोकने के लिए गुजरात स्थित राष्ट्रीय स्तर की शोध संस्था मूंगफली अनुसंधान निदेशालय की पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक व करनाल के केंद्रीय मृदा लवणता अनुसन्धान संस्थान की मौजूदा वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अनीता मन बताती हैं, ''मूंगफली की घटती पैदावार को रोकने के लिए किसान कम पानी का इस्तेमाल करते हुए अपनी खेती में स्प्रिंक्लर का प्रयोग करें और उस पर धान की भूसी से ढक सकते हैं। इससे फसल में नमी बनी रहेगी और पानी कम लगेगा।" 

 

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