धौलपुर में खूबसूरत गलीचा बुनने वाली महिलाओं से मिलिए

राजस्थान के बहरावती गाँव में महिलाएं कालीन बुनती हैं, जिसे स्थानीय रूप से गलीचा के नाम से जाना जाता है, जिससे उन्हें अपना घर चलाने में मदद मिलती है। हालांकि, उनकी कमाई का एक हिस्सा बिचौलियों के पास जाता है। इन ग्रामीण महिलाओं को सीधे बाजार से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है।

Manoj ChoudharyManoj Choudhary   26 April 2023 8:11 AM GMT

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धौलपुर में खूबसूरत गलीचा बुनने वाली महिलाओं से मिलिए

बहरावती (धौलपुर), राजस्थान। कांता देवी फर्श पर बैठी हैं, उनके सामने लोहे के एक बड़ा सा फ्रेम है, जिसमें ऊपर लगी लकड़ी की बीम में सूत के धागों को अच्छे से बांधा हुआ है। कांता धीरे-धीरे उस हथकरघे पर नारंगी रंग के ऊन को सलीके से इधर-उधर करके डिजाइन बनाती हैं।

कांता गलीचा या कालीन बना रही हैं। 35 साल की कांता के लिए यह मेहनत भरा काम है, जिसमें काफी समय भी लग जाता है। वह पिछले 10 वर्षों से यह काम कर रही हैं। एक दिन में वो लगभग डेढ़ इंच तक गलीचा बुन लेती हैं।

“छह बाई दस फुट की गलीचा को पूरा करने में मुझे तीन महीने तक का समय लग सकता है। मैं प्रति वर्ग फुट 500 रुपये कमाती हूं और बिचौलिये को 50 रुपये प्रति वर्ग फुट का कमीशन देती हूं, "कांता ने गाँव कनेक्शन को बताया, उनकी 10 साल की बेटी किंजल मदद करने के लिए उसके पास आकर बैठ गई। कांता ने कहा कि तैयार कालीन बाजार में करीब 30,000 रुपये में बिकता है।

उनके साथ जमुना देवी और राधा देवी भी हैं जो एक ही परिवार से हैं और वे सभी राजस्थान में धौलपुर जिला मुख्यालय से लगभग 24 किलोमीटर दूर सैपऊ तालुक के बहरावती गाँव में रहती हैं। गाँव की आबादी 2500 से अधिक है।

कांता देवी ने कहा, "हमारे परिवार के पुरुष सदस्य या तो कृषि या दिहाड़ी मजदूरी में लगे हुए हैं और वे जो कमाते हैं वह गुज़ारा करने के लिए अपर्याप्त है।" यही कारण है कि महिलाओं ने परिवार की आय बढ़ाने के लिए गलीचा बनाने का फैसला किया।

हालांकि कांता देवी दस साल से गलीचा बुन रही हैं, लेकिन धौलपुर स्थित गैर-लाभकारी मंजरी फाउंडेशन द्वारा कालीन-बुनाई में एक नया प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया था।

मंजरी फाउंडेशन के टीम लीडर विनोद कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मार्च 2020 में गांव की लगभग 30 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया था, जिनमें से लगभग 10 अपनी आजीविका कमा रही हैं।" मेहनत भरे और कम मुनाफे के कारण बाकी 20 बाहर हो गए। उन्होंने कहा कि प्रशिक्षण के अलावा, मंजरी फाउंडेशन विपणन अवसर भी पैदा करता है और ग्रामीण स्तर के स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के माध्यम से महिलाओं को ऋण की सुविधा सुनिश्चित करता है।

गाँव की महिलाओं द्वारा बुने गए गलीचों को बिचौलिए ले जाते हैं, जो उन्हें उत्तर प्रदेश के आगरा में फिनिशिंग यूनिट में भेजते हैं, जहां उन्हें धोया जाता है, ट्रिम किया जाता है और बिक्री के लिए तैयार किया जाता है। गलीचे बनाने वाली कालीन कंपनियां महिलाओं को मुफ्त में मशीनें उपलब्ध कराती हैं।

बिचौलिए बुनकरों के घरों में मशीन स्थापित करते हैं और महिलाओं को रंगीन ऊन के लच्छे और कालीन बुनने के लिए एक पैटर्न भी उपलब्ध कराते हैं। कांता देवी ने कहा, ऐसा पिछले कई सालों से चला आ रहा है।

लेकिन अब महिलाएं यह देखने की कोशिश कर रही हैं कि क्या वे बिचौलियों से छुटकारा पा सकती हैं। बहरावती गाँव की अनीता देवी, जो गलीचे भी बनाती हैं, के अनुसार, कई युवा लड़कियों को शिल्प में रुचि है, लेकिन उन्हें लगता है कि वे इससे जो पैसा कमा सकती हैं, वह इस पर की जाने वाली सारी मेहनत को सही नहीं ठहराती हैं।

"वर्तमान में बिचौलिए हमारी कमाई का एक बड़ा हिस्सा ले जाते हैं, क्योंकि वे हमें कालीनों के लिए जॉब ऑर्डर लाते हैं, "उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया। उन्होंने कहा कि अगर महिलाओं को शुरू से आखिर तक सब कुछ करने का अधिकार दिया जाए तो चीजें उनके लिए काफी बेहतर होंगी।

बिचौलियों को समीकरण से बाहर निकालने की योजना चल रही है। “मंजरी फाउंडेशन की कोशिश है कि धौलपुर में ही कटिंग, फिनिशिंग और पैकेजिंग सहित पूरी गलीचा बनाने की प्रक्रिया हो। इससे बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी और महिलाएं ज्यादा कमाएंगी, "मंजरी फाउंडेशन के विनोद कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया।

बहरावती में स्वयं सहायता समूह, सिद्धि बाबा राजीविका महिला बचत समिति की सुजाता कुमारी कहती हैं, "गाँव में ऐसी कई महिलाएँ हैं जो गलीचा बनाने के लिए मशीनें और कच्चा माल खरीदने के लिए स्वयं सहायता समूह से ऋण लेने को तैयार हैं।" कांता देवी और अनीता देवी इस स्वयं सहायता समूह की सदस्य हैं।

“हम महिलाओं को लगता है कि हम सीधे कंपनियों से गलीचों के ऑर्डर ले सकते हैं। इससे बिचौलिए की जरूरत खत्म हो जाएगी। सुजाता कुमारी ने कहा, हमें विश्वास है कि हम किस्तों में कर्ज चुकाने के लिए पर्याप्त कमाई कर लेंगे।

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