ललितपुर में ग्रामीण महिलाओं की प्रेरणा कैंटीन आत्मनिर्भरता की एक मिसाल
उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले में, 6 हजार महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन किया गया है जो ग्रामीण महिलाओं को रोजगार के अवसर प्रदान कर रहे हैं। साथ ही उन्हें अपना व्यवसाय शुरू करने में मदद कर रहे हैं। ऐसी ही चार महिलाएं जिला कलेक्ट्रेट में कैंटीन चलाती हैं।
Jyotsna Richhariya 20 May 2022 9:50 AM GMT
सुनीता कुशवाहा अपने गाँव में इडली बेचने वाली एक छोटी सी दुकान चलाती थीं, जिसे उनकी दिवंगत दादी ने शुरू किया था। इस समय उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले के रानीपुरा गाँव की सुनीता जिला कलेक्ट्रेट कार्यालय में महिला प्रेरणा कैंटीन चलाती हैं।
जखौरा ब्लॉक के रानीपुरा गाँव की चार ग्रामीण महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने के उद्देश्य से जनवरी 2020 से प्रेरणा कैंटीन चला रही हैं। वे न केवल ताजा और स्वस्थ भोजन पकाती हैं, बल्कि कैंटीन में व्यंजनों का स्वाद लेने के लिए आने वाले ग्राहकों को खुद ही परोसती भी हैं।
पिछले ढाई साल से कैंटीन चला रही 30 वर्षीय कुशवाहा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमारी कैंटीन, जो मेन जिले में स्थित है, इस कैंटीन से हम हर महीना 5 हजार रुपये कमा लेते हैं।"
कुशवाहा अपने पति और दो बेटियों के साथ रानीपुरा गाँव में रहती हैं और अपने कार्यस्थल (प्रेरणा कैंटीन) तक जाने के लिए रोजाना 20 किलोमीटर का सफर तय करती हैं। अपने सभी दैनिक घरेलू कामों के साथ वह 6 दिन कैंटीन में काम करती हैं। उसने मुस्कुराते हुए कहा, "मैं ज्यादातर दक्षिण-भारतीय खाना कैंटीन में बनाती हूं।"
कैंटीन सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को सस्ती दर पर दक्षिण भारतीय भोजन जैसे डोसा, वड़ा और इडली परोसती है। कैंटीन में काम करने वाली एक अन्य महिला दुर्गा ने कहा, "शुरुआत में हम व्यवसाय करने को लेकर थोड़ा झिझक रहे थे क्योंकि हमने शहरों में काम करने के लिए कभी घर से बाहर कदम नहीं निकाला था, लेकिन हमारे परिवारों ने हमरा समर्थन करके हमारा हौसला बढ़ाया।"
उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के एक प्रोजेक्ट के तहत ललितपुर के रानीपुरा गाँव के स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) से इन महिलाओं को 7,000 रुपये के मासिक किराए पर कैंटीन दी गई थी। इस कैंटीन को चलाने वाली चारों महिलाओं की मासिक कमाई पांच हजार रुपये है।
कुशवाहा ने बताया, "स्वयं सहायता समूह ने हमारी मदद करने के लिए हमें 70 हजार रुपये का लोन दिया ताकि कैंटीन को चलाने के लिए जरूरी साज-व-सामान खरीद लें।"
ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूहों को मिल रहा है समर्थन
दीनदयाल अंत्योदय योजना - राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत, स्वयं सहायता समूहों की ग्रामीण महिलाओं को भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए सामूहिक रूप से काम करने के विचार को जुटाने के लिए एक इंटरनल कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (आईसीआरपी) टीम का गठन किया जाता है।
ललितपुर, जो बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त क्षेत्र में आता है, इस जिले में लगभग 6 हजार स्वयं सहायता समूह बनाए गए हैं जो ग्रामीण महिलाओं को रोजगार के अवसर प्रदान कर रहा है। इनमें से लगभग 3 हजार स्वयं सहायता समूह सूखे राशन के वितरण अभियान में आंगनबाड़ी केंद्रों के साथ काम कर रही हैं, जबकि 317 स्वयं सहायता समूह की महिलाएं सार्वजनिक शौचालयों का रखरखाव करती हैं।
प्रेरणा कैंटीन : एक तहरीक और कमाई का स्रोत
कैंटीन के लिए 'प्रेरणा' नाम सामूहिक रूप से स्वयं सहायता समूह की महिलाओं ने तय किया था क्योंकि वे अपने आपको प्रेरित महसूस करती हैं और उन्हें यकीन है कि इससे प्रेरित होकर अन्य महिलाएं भी घर से बाहर निकलें गी काम करेंगी और आत्मनिर्भर बनेंगी।
कैंटीन में काम करने वाली स्वयं सहायता समूह की एक सदस्य धनलक्ष्मी ने बताती हैं, "हमारी कैंटीन में आने वाले ग्राहकों के अलावा, हमें स्कूलों और अन्य सरकारी कार्यालयों से भी थोक भोजन के ऑर्डर मिलते हैं, जिससे अतिरिक्त कमाई में मदद मिलती है।"
धनलक्ष्मी के लिए, यह कैंटीन पारिवारिक आय और उनके दोनों बेटों की शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
उन्होंने बताया, "मेरे पति शहरों में मजदूरी करते हैं और दो-तीन महीने में एक बार घर आते हैं, हम दोनों घर चलाने के लिए कमाते हैं।"
29 वर्षीय दुर्गा भी प्रेरणा कैंटीन में काम करती हैं और अपने परिवार की मुख्य कमाने वाली हैं जिसमें उनकी सास, पति और एक बेटी शामिल हैं।
दुर्गा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "मेरे पति गाँव में मोची का काम करते हैं। इस कैंटीन ने मुझे अपने परिवार का समर्थन करने में मदद की है। "
ललितपुर के जिला मिशन प्रबंधक रवि ने गाँव कनेक्शन को बताया, "ललितपुर जिले में विभिन्न स्तरों पर कुल आठ कैंटीन चलती हैं, जिनका प्रबंधन विभिन्न स्वयं सहायता समूह करते हैं। हम छह हजार से अधिक स्वयं सहायता समूहों को कवर करते हैं, जहां हम उन्हें अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए कौशल प्रदान करते हैं।"
यह स्टोरी ट्रांसफॉर्म रूरल इंडियन फाउंडेशन के सहयोग से लिखी गई है।
अनुवाद: मोहम्मद अब्दुल्ला सिद्दीकी
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