नई विधि: अब जनवरी से ही मेंथा तैयार कर सकेंगे किसान

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नई विधि: अब जनवरी से ही मेंथा तैयार कर सकेंगे किसानगाँव कनेक्शन

लखनऊ। कई ऐसे किसान हैं जिन्होंने पानी न मिल पाने के कारण अपने खेत खाली छोड़ दिए थे। अब जब पानी बरस गया है तब ये किसान मेंथा की नई विधि से बुआई करके अभी भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आमतौर पर मेंथा की बुवाई मार्च-अप्रैल में होती है।

केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के डॉ सौदान सिंह की विकसित की गई मेंथा की 'अगेती मिन्ट’ तकनीक से किसान मेंथा बो सकता है। इस तकनीक के ज़रिए फसल बहुत कम पानी की खपत और 110 दिन की सामान्य अवधि के बजाए 80-90 दिन में तैयार हो जाती है। कम समय में तैयार होने के चलते किसान खरीफ के पहले दो फसलें ले सकता है, जिससे तेल उत्पादन और मुनाफा दोगुना हो सकता है।

'मेंथा उगाने की 'अगेती मिंट’ पद्घति को इस्तेमाल करके किसान अभी से पॉलीथीन से ढककर कृत्रिम गर्मी से 20-25 दिन में नर्सरी तैयार कर सकता है, और फिर फरवरी में ही बुआई कर सकता है,’’ डॉ. सौदान सिंह आगे बताते हैं, ''किसानों को भ्रम रहता है कि जितना गर्म मौसम होगा उतना ज्यादा तेल निकलेगा, लेकिन इस चक्कर में वो गर्मी की फसल लेट करके दोनों तरफ नुकसान झेलते हैं। अगर बारिश हो गई तो पूरा नुकसान। जबकि अगेती मिंट से इतने समय में दो बार मेंथा बो सकते हैं।’’

डॉ. सिंह बताते हैं कि सीमैप की तैयार की गई नई पौध सामग्री बनाने की विधि से जड़ों का उत्पादन भी सामान्य तरीके के मुकाबले 15-20 फीसदी ज़्यादा होता है। साथ ही, हर हेक्टेयर में तैयार फसल से करीब 50-60 किलोग्राम तेल ज़्यादा निकलता है।

नई तकनीक में ध्यान रखने योग्य बातें

  1. इस तकनीक में समतल क्यारियों के स्थान पर मेड़ बनाकर उस पर रोपाई की जाती है।
  2. मेड़ों की दूरी एक दूसरे से 40-50 सेमी और पौध से पौध की दूरी 25 सेमी रखनी चाहिए।
  3. कटाई के 15-20 दिन पहले ही सिंचाई बंद कर देनी चाहिए लेकिन फसल सूखने न पाए।
  4. कटाई से पहले सिंचाई करने से पौधों की लम्बाई बढ़ती है लेकिन कुछ समय बाद पौधों की पत्तियां गिरनी शुरू हो जाती हैं।
  5. कटाई के समय खेत में नमी है तो पत्तियां और अधिक गिरती हैं। 
  6. समय-समय पर खेत के पौधों को पास से देखना चाहिए ताकि समय रहते कीट प्रबंधन किया जा सके।

नई तकनीक के लाभ

  1. सामान्य विधि के ज़रिए दो फसलें लेने में फरवरी से जुलाई तक का 160-170 दिन का समय लगाता है जबकि नवीन विधि से ये समय घटकर 130-140 हो जाता है यानि मेंथा कि दो फसलें लेने के बाद भी खेत जून तक खाली हो जाएंगे।
  2. एक से दो सिंचाई की बचत होती है।
  3. मानसून जल्दी आने या खड़ी फसल में जल भराव होने पर अपेक्षाकृत कम नुकसान होता है।
  4. तेल की उपज और गुणवत्ता पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि उपज और गुणवत्ता में बढ़ोत्तरी होती है।
  5. सिंचाई बंद करने से आसवन से पहले पौधों को सुखाने की जरुरत नहीं पड़ती, पौधों को सीधे आसवन की टंकी में भरा जा सकता है। इससे टंकी में अधिक पौधे आते हैं और ईंधन, पानी कम लगता है।

 

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