यकीन मानिए ये तस्वीरें आपका बचपन... दादी-नानी के घर की यादें ताजा कर देंगी

अगर आप को भारत के आदिवासी गांवों में जाने का मौका नहीं मिला है तो ये तस्वीरें जरुर देखिए… आदिवासियों के घर सजाने और उनकी कलाकारी आपका मन मोह लेगी।

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   19 Aug 2019 5:48 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
यकीन मानिए ये तस्वीरें आपका बचपन...  दादी-नानी के घर की यादें ताजा कर देंगी

लखनऊ। भारत के गांव तेजी से बदल रहे हैं। कार, बाइक और दूसरी सुविधाएं पहुंच रही हैं। गांवों के घरों में भी टाइल्स लगाई जा रही हैं। बावजूद इसके गांव अपने अंदर काफी कुछ अब भी पुराना समेटे हुए हैं। वो परंपरागत चीजें, वो पुराने तरीके, वो देसीपन आज भी कुछ गांवों में मिल जाएगा। वो मिट्टी के घर, वो हाथ वाली आटा चक्की... और ऐसा बहुत कुछ जो आप कभी बचपन में दादी-नानी के घरों में देखा करते होंगे।

गांव कनेक्शन के सीनियर सब एडिटर चंद्रकांत मिश्रा उत्तर प्रदेश के गांवों से आप के लिए लाएं हैं कुछ तस्वीरें, जिन्हें देखकर आपको अपना बचपन याद आ जाएगा। अगर शहर में रहते हैं वो गांव भी जहां गर्मियों की छुट्टियां बिताने जाया करते थे। नीचे दी गए तस्वीरें श्रावस्ती जिले से 70 किमी दूर विकास खंड सिरसिया के आदिवासी गांव रनियापुर की हैं। नेपाल बॉर्डर पर बसा ये गांव अपने अंदर काफी कुछ समेटे हुए हैं। घर कच्चे हैं, चीजें पुरानी हैं लेकिन आपका मन मोह लेंगी।

देसी स्टोर रूम- आज अनाज रखने के लिए लोहे और प्लास्टिक के बड़े-बड़े ड्रम भले आ गए हों लेकिन कभी ऐसे ही मिट्टी के बड़े-बड़े मटकों में रखा जाता था, जिन्हें डेहरी कहा जाता था। ये गीली मिट्टी को परत दर परत जोड़ कर तैयार की जाती हैं। कई गांवों में आज भी ये स्टोररूम हैं।

और ये गांव की दरी... चटाई कहते हैं इसे। चटाइयां खजूर और ताड़ की पत्तियों की बनाई जाती हैं। कई जगहों पर मूंज (घास) की भी चटाई ग्रामीण इस्तेमाल करते हैं।


गांवों की छते... घर के लोगों के लिए अलमारी का भी काम करती हैं.. उनका काफी सामान यहीं नजर आता है...


और इन्हें बोलते हैं डलिया... खपरैल पर रखी इन टोकरियों को मूंज से बनाया जाता है.. मूंज एक प्रकार की घास होती है, जिसकी चौड़ी पत्तियों को रंगकर सजाया संवारा जाता है। गांव के लोग इनका वैसे ही इस्तेमाल करते हैं जैसे शहर के लोग प्लास्टिक की टोकरी का।


इसी चक्की का आटा खाते हैं गांव वाले... ये है हाथ वाली चक्की.. चक्की में पत्थर के दो पार्ट होते हैं, नीचे वाला फिक्स होता है.. जबकि ऊपर वाले हाथ से घुमाया जाता है.. ऊपर वाले में एक गड्ढा होता है, जिससे गेहूं समेत दूसरे अनाज डाले जाते हैं जो दोनों पाटों के बीच से पिस कर निकलते हैं। कहा जाता है, हाथ वाली चक्की से पिसा आटा इन मैकेनिकल चक्कियों से कई गुना ज्यादा पौष्टिक होता था,मशीन की गर्मी से अनाज के पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं...





लकड़ी की नांद... इसे आप ग्रामीणों का जुगाड़ भी कह सकते हैं, नांद जिसमें पशुओं को चारा दिया जाता है। आज के समय में ज्यादातर नादें प्लास्टिक के टैंक जैसी होती है, लेकिन पहले ये मिट्टी और लकड़ी की भी बनी होती थीं...






   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.