प्रदूषण की वजह से सांस की बीमारी में इज़ाफा

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प्रदूषण की वजह से सांस की बीमारी में इज़ाफाgaoconnection

लखनऊ। लगातार बढ़ रहे प्रदूषण और खान-पान में मिलावट के कारण अस्थमा बड़ों के साथ बच्चों में भी तेजी से फैल रहा है। इससे बचाव और जागरूकता के लिए हर वर्ष तीन मई को अस्थमा दिवस भी मनाया जाता है।

जब किसी व्यक्ति की सांस नलियों में सूजन आ जाती है तो उसे सांस लेने मे परेशानी होने लगती है। इसके कारण उसे लगातार खांसी भी आने लगती है। इसे दमा भी कहते हैं।

चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन ने सरकारी एजेंसी के सहयोग से देश के 880 शहरों, कस्बों के 13,250 फिजिशियन से बात की। इनमें से 7500 डॉक्टरों ने अपने मरीजों का पूरा रिकार्ड रखा था। उसके आधार पर 204,912 मरीजों के लक्षणों और लिए जाने वाले इलाज से पता चला कि लोगों में सांस की बीमारियां लगातार बढ़ रही हैं और इसकी सबसे बड़ी वजह बढ़ता वायु प्रदूषण है।

इस अवसर पर केजीएमयू के पल्मोनरी विभाग के हेड डॉ सूर्यकांत बताते हैं,  “बड़ों के साथ अब बच्चों में अस्थमा अटैक तेजी से बढ़ रहा है और इसकी सबसे बड़ी वजह प्रदूषण है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में घरों में जलने वाले चूल्हे अंदर ही अंदर लोगों को सांस की बीमारियां दे रहे हैं। महिलाओं में इसके कारण कम वजन वाले, प्रीमैच्योर बच्चों की पैदाइश भी हो रही है। ये बीमारी आनुवांशिक भी हो सकती है।”लक्षण

  • दमा रोग से पीड़ित रोगी को रोग के शुरुआती समय में खांसी, सरसराहट और सांस उखड़ने के दौरे पड़ने लगते हैं।
  • दमा रोग से पीड़ित रोगी को कफ सख्त, बदबूदार और डोरीदार निकलता है।
  • दमा रोग से पीड़ित रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक कठिनाई होती है।
  • सांस लेते समय अधिक जोर लगाने पर रोगी का चेहरा लाल हो जाता है।
  • लगातार छींक आना।
  • रात या सुबह के समय परेशानी बढ़ जाती है।

कारण

कई लोगों में यह एलर्जी मौसम, खाद्य पदार्थ, दवाइयां, इत्र, परफ्यूम जैसी खुशबू और कुछ अन्य प्रकार के पदार्थों से हो सकती हैं। कुछ लोग रुई के बारीक रेशे, आटे की धूल, कागज की धूल, कुछ फूलों, पशुओं के बाल, फफूंद और कॉकरोज जैसे कीड़े के प्रति एलर्जित होते हैं, जिन खाद्य पदार्थों से आमतौर पर एलर्जी होती है। उनमें गेहूं, आटा दूध, चॉकलेट, बींस की फलियां, आलू, सूअर और गाय का मांस आदि शामिल है। मानसिक तनाव, क्रोध के कारण भी दमा रोग हो सकता है या फिर नशीले पदार्थों का अधिक सेवन करना भी दमा का कारण बन सकता है। 

अस्थमा के लिए जांच

शहरों में प्रदूषण बढ़ने की वजह से अस्थमा रोगियों की संख्या हर रोज बढ़ रही है। अस्थमा या दमा एक गंभीर बीमारी है, जो श्वांस नलिकाओं पर असर डालती है। अस्थमा होने पर श्वांस नलिकाओं की भीतरी दीवार पर सूजन आ जाती है। इससे सांस लेने में दिक्कत होती है और फेफड़ों में हवा की मात्रा कम हो जाती है। इससे खांसी आती है, नाक बजती है, छाती कड़ी हो सकती है, रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ शुरू हो जाती हैं। 

स्पिरोमेटी

यह एक सामान्य प्रकार का टेस्ट होता है जो किसी भी मेडिकल क्लिनिक में हो सकता  है। इस जांच से सांस लेने की दिक्कत या हृदय रोग को पहचाना जा सकता है। इस जांच से आदमी के सांस लेने की गति का पता चलता है।

पीक फ्लो

इस जांच द्वारा पता लगाया जा सकता है कि आदमी अपने फेफड़े से कितनी तेजी से और आसानी से सांसों को बाहर कर रहा है। अस्थमा को बेहतर तरीके से नियंत्रित करने के लिए यह जरूरी है कि आप अपनी सांसों को तेजी से बाहर निकालें। इस मशीन में एक मार्कर होता है जो सांस बाहर निकालते समय स्लाइड को बाहर की ओर ढकेलता है।

चेस्ट एक्सरे

अस्थमा में चेस्ट का एक्सरे कराना चाहिए। चेस्ट एक्सरे द्वारा अस्थमा को फेफड़े की अन्य बीमारियों से अलग किया जा सकता है। एक्सरे द्वारा अस्थमा को देखा नहीं जा सकता लेकिन इससे संबंधित स्थितियां जानी जा सकती हैं।

एलर्जी टेस्ट

कई बार डॉक्टर एलर्जी टेस्ट के बारे में सलाह देते हैं, इस टेस्ट से यह पता लगाया जा सकता है कि आदमी कि टिगर्स की सही स्थिति क्या है और कौन सी परिस्थितियां आपको प्रभावित कर सकती हैं।

ब्लड टेस्ट

ब्लड टेस्ट, द्वारा अस्थमा का पता नहीं लगाया जा सकता है लेकिन शरीर के त्वचा की एलर्जी के लिए यह टेस्ट बहुत ही कारगर होता है।

उपचार

  1. सांस लेने में दिक्कत हो तो तुरंत डॉक्टर से जांच कराएं।
  2. हमेशा इन्हेलर को अपने पास रखें
  3. घर को हमेशा साफ रखें ताकि धूल से एलर्जी की संभावना न हो
  4. योग-व्यायाम और ध्यान करें इससे भी काफी फायदा होता है।
  5. मुंह से सांस न लें क्योंकि मुंह से सांस लेने पर ठंड भीतर चली जाती है, जो रोग को बढ़ाने में मदद करती है।
  6.  समय पर डॉक्टर से परामर्श लें।

 

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