प्रेमिका को रिझाने के लिए प्रेमी करते हैं छपेली नृत्य

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प्रेमिका को रिझाने के लिए प्रेमी करते हैं छपेली नृत्यछपेली नृत्य, गाँव कनेक्शन, मनोरंजन

लखनऊ। जीवन सिंह बिष्ट अपनी प्रेमिका को रिझाने के लिए उनकी तुलना हर खूबसूरत चीज़ से करते हैं और वो भी नाच-गाकर। जीवन का यह नृत्य दरअसल एक तरह का लोकनृत्य है जिसे 'छपेली' के नाम से जाना जाता है।

छपेली नृत्य उत्तराखंड़ का एक बहुत पुराना लोकनृत्य है। इस नृत्य का आयोजन आमतौर से शुभ अवसरों पर किया जाता है। सात वर्षों से इस नृत्य को लोगों के सामने पेश कर रहे जीवन सिंह (20 वर्ष) बताते हैं, ''हम कई वर्षों से इस लोकनृत्य को मेलों-महोत्सवों आदि में करते हैं, इस नृत्य को करने में अच्छा लगता है। लोगों को यह नृत्य देखने में बहुत मज़ा आता है। यह फुर्ती से किया जाने वाला नृत्य है।"

इस नृत्य को समूह में किया जाता है। जीवन की टोली में उनके साथ दस लोग और हैं जो समूह में इस लोकनृत्य को प्रस्तुत करते हैं। इस नृत्य को करते समय लड़कियां अपने बाएं हाथ में एक दर्पण और दूसरे हाथ में रंगीन रुमाल रखती हैं और लड़के उत्तराखंड का वाद्य यंत्र 'हुड़का' के साथ ही मंजीरा और बांसुरी बजाते हैं। छपेली गीतों की एक पंक्ति मुख्य होती है, जिसे गायक दो पंक्तियों के अंतर के बाद, बार-बार दोहराता है, जिस पर लड़के और लड़कियां मुस्कान के साथ कमर को घुमाते हुए नृत्य करते हैं।

पिछले बीस वर्षों से छपेली नृत्य और गीतों से जुड़े चंदन सिंह मेहरा (40 वर्ष) बताते हैं, ''छपेली नृत्य प्रेमी युगल नृत्य है, जिसमें प्रेमी अपनी प्रेमिका को रिझाने के लिए उसके रूप की तारीफ करता है। इस नृत्य से जितने भी कलाकार जुड़े हैं वो उत्तराखंड के ही हैं।" चंदन मेहरा लोक कला और सांस्कृतिक संस्थान के महासचिव हैं, वे छपेली नृत्य के कार्यक्रमों का आयोजन करवाते हैं। वह सिर्फ छपेली नृत्य से ही नहीं जुड़े हैं बल्कि उत्तराखण्ड के कई लोकनृत्य और लोकगीतों पर अध्ययन करते हैं। मेहरा बताते हैं, छपेली नृत्य को छबीली शब्द से बना है इसमें छबीले लड़के व लड़कियों का जोड़ा होता है। 

इस नृत्य कला को कम लोग ही जानते हैं, इसे ज्यादा लोगों तक पहुंचाने के लिए मेहरा अपने समूह के साथ इस लोक नृत्य का उड़ीसा, कलकत्ता, दिल्ली, लखनऊ आदि शहरों मेंं आयोजन करवाते रहते हैं। ''अलग-अलग शहरों में इस लोकनृत्य को काफी पंसद करते हैं, जबकि इसकी भाषा बिलकुल अलग होती है," मेहरा ने बताया।

छपेली गीत

ओ बाना , पनुली चकोरा त्वीले धारौ बोला,

ओ लौंडा कुंदन अमीना त्वीले धारौ बोला।

पहाड़ भोटिया घोड़ो मैदान को होती,

त्वीलें यसी बोली मारी धन छ मेरी छाती।

ओ बाना पनुली चकोरा, त्वीले धारौ बोला॥

(इस गीत में प्रेमी अपनी प्रेमिका की तारीफ पहाड़ों के सबसे सुंदर पक्षी चकोरा से करता है।)

 

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