राजधानी में आधे से ज्य़ादा दर्ज हो रहे फर्ज़ी केस

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राजधानी में आधे से ज्य़ादा दर्ज हो रहे फर्ज़ी केसगाँव कनेक्शन

लखनऊ। राजधानी के थानों में लगभग 10 से 60 फीसदी फर्जी केस रजिस्टर हो रहे हैं। ऐसे लोगों को पुलिस जांच का बिलकुल भी खौफ नहीं है। हर फर्जी केस में लगभग दो से तीन महीने पुलिस परेशान रहती है। 

रीगल मानव सृजन सोशल वेलफेयर सोसाइटी की संस्थापक मंजू शुक्ला का कहना है, “100 में से 10 फीसदी दहेज उत्पीड़न और 10 फीसदी घरेलू हिंसा की शिकायतें फर्जी निकलती हैं।”  

एक ओर सरकार जहां लोगों की सुरक्षा और बढ़ रहे अपराधों को कम करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है तो वहीं दूसरी ओर लोग कानून का गलत उपयोग कर रहे हैं। कुछ लोग फर्जी केस रजिस्टर कराकर पुलिस का वक्त बर्बाद कर रहे हैं। लखनऊ पुलिस के अनुसार फर्जी एफआईआर के अलग-अलग आंकड़े सामने आए हैं।

ये हैं आंकड़े

केस-1

आईजी नवनीत सिकेरा के अनुसार, फर्जी केस आना तो रोज की घटनाएं हैं। इसमें प्रतिशत के बारे में बता पाना मुश्किल है, लेकिन 200 लोगों की भीड़ में एक भी मामला क्राइम या पुलिस का नहीं था। एक घर में नई बहू आयी और उसे अलग रहना है पति अलग मकान की व्यवस्था नहीं कर पाया तो लड़की ने इतना हंगामा मचाया कि सास-ससूर और सारे घरवालों को सड़क पर रात गुजारनी पड़ी और फिर वह महिला कानून से भी मदद चाहती है। आधे से ज्यादा मामले ऐसे आते हैं जो सिविल के होते हैं और जमीन जायदाद के होते हैं। जिनका पुलिस से कोई मतलब ही नहीं होता, छोटे-छोटे मामलों में लोग एफआईआर कराने के लिए उनको बड़ा मुद्दा बना देते हैं, खून तक कर देते हैं। कहीं फर्जी बलात्कार तो कहीं मारपीट के फर्जी केस रजिस्टर करा रहे हैं। कानून का लोग गलत फायदा उठा रहे हैं।”

केस-2

वूमेन पावर लाइन की सीओ बबिता सिंह का कहना है, “हम आंकड़ा तो नहीं बता पायेंगे, रही बात वूमेन पावर लाइन 1090 की तो हमारे पास जो भी कॉल आती हैं वह रिकार्ड कॉल होती हैं और हम पहले मामले की काउंसिलिंग करते हैं और अगर कोई लड़की कहती है कि मुझे लड़का परेशान कर रहा है तो हम उसका फोन सर्विलांस पर लगा देते हैं और अगर लड़का कॉल नहीं कर रहा होता है तो बात वहीं की वहीं खत्म हो जाती है। हम कोई केस तो रजिस्टर करते नहीं हैं जो फर्जी हो और दूसरी बात ये है कि 1090 पेड हेल्पलाइन सुविधा है इसलिए लोग फर्जी कॉल नहीं करते हैं।”

केस-3

चौक कोतवाली की सब इंस्पेक्टर राधा रमन सिंह ने बताया, “लगभग 10 फीसदी जो एफआईआर लिखी जाती हैं वो जांच में फर्जी पाई जाती हैं।” इनका कहना है, “एक केस की जांच करने में लगभग तीन से चार महीने या कभी-कभी उससे ज्यादा लग जाता है। ऐसे में जब वह एफआईआर फर्जी निकलती है तो कहीं न कहीं इसका बुरा प्रभाव उन पर पड़ता है जो वास्तव में प्रताड़ित होते हैं, क्योंकि हमारे मन में घटना की वास्तविकता को लेकर शक होने लगता है।”

केस-4

महिला थाना हजरतगंज की सब इंस्पेक्टर (नाम न छापने की शर्त पर) के अनुसार, लगभग 60 फीसदी महिलाएं फर्जी रिपोर्ट दर्ज कराती हैं, जिसमें दहेज उत्पीड़न से लेकर घरेलू हिंसा तक के मामले होते हैं। इनके मुताबिक अभी 10 से 15 दिन पहले चिनहट की एक लड़की ने दहेज उत्पीड़न को लेकर एफआईआर दर्ज करायी थी और जब पुलिस ने जांच की तो पता चला लड़की खुद सारे जेवर लेकर मायके में बैठ गयी थी।

रिपोर्टर-  दरख्शां कदीर सिद्दीकी 

 

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