मोदी की आंधी में हवा हुआ रालोद
Basant Kumar 12 March 2017 10:39 AM GMT

लखनऊ। सपा में विवाद के बाद जोश शोर से चुनाव लड़ने वाले राष्ट्रीय लोकदल को करारी हार का सामना करना पड़ा है। रालोद नेे पश्चिमी यूपी से लेकर लखऩऊ तक उम्मीदवार उतारे थे लेकिन वो एक सीट भी नहीं जीत पाई है। इस चुनाव में 315 सीटों पर चुनाव लड़ा।
छोटे चौधरी के नाम से मशहूर रालोद के मुखिया अजित सिंह की सारी रणनीति विधानसभा में मोदी की लहर में धाराशाई हो गई है। रालोद के राष्ट्रीय महासचिव त्रिलोक त्यागी ने इसे सांप्रदाायिक राजनीति करार दिया है, उन्होंने कहा, “बीजेपी ने हिंदू-मुस्लिम का कार्ड खेलकर जीत दर्ज की है।”
रालोद कार्यकर्ता और नेता इस बार वापसी करने के लिए जमकर पसीना बहाया लेकिन, कोई फायदा नहीं हुआ। जिस पश्चिम को एक समय रालोद का गढ़ कहा जाता था, वहीं से आज रालोद जीत के लिए तरसती दिखी।
2013 में हुए दंगे के बाद रालोद के प्रमुख वोटर जाट और मुस्लिम दोनों चौधरी अजित सिंह की दंगे पर चुप्पी के कारण नाराज़ हो गए और पार्टी से दूरी बना लिए नतीजतन कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बावजूद पार्टी बुरी तरह से हारी गयी। छह बार बागपत से सांसद रहे चौधरी अजित सिंह 2014 के लोकसभा चुनाव बागपत से ना सिर्फ हारे बल्कि तीसरे नम्बर पर रहे। वहीं रालोद महासचिव जयंत चौधरी को मथुरा लोकसभा क्षेत्र से हेमा मालिनी से हार मिली।
रालोद का गठन चौधरी अजित सिंह ने 1996 में किया था। 14 वें विधानसभा चुनाव में रालोद के 10 विधायक विधानसभा पहुंचे थे। तब रालोद ने बसपा को समर्थन दिया था। 15 वें विधानसभा में भी भी रालोद से 10 विधायक विधानसभा पहुंचे थे। 2012 के विधानसभा चुनाव में रालोद के 9 विधायक चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे।
इस बार शुरू से ही रालोद अध्यक्ष अजित चौधरी समाजवादी विचारधारा वाले पार्टियों को एकजुट कर एक मजबूत गठबंधन बनाने की कोशिश किए, लेकिन मुलायम सिंह के इंकार के बाद नीतीश कुमार की पार्टी जद(यू) और कुछ क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर गठबंधन में चुनाव मैदान में थे। समाजवादी पार्टी में हुए विवाद के बाद पार्टी छोड़ने वाले ज्यादातर लोग रालोद में ही शामिल होकर चुनाव मैदान में थे। इससे रालोद को फायदा होने का असार दिख रहा था लेकिन रालोद को कोई फायदा नहीं हुआ।
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