गांव कनेक्शन सर्वे: 40 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं ने कहा- कोराना और लॉकडाउन के कारण पानी के लिए करनी पड़ी अतिरिक्त मशक्कत

सरकार और स्वास्थ्य एजेंसियों ने कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए बार-बार हाथ धोने की सलाह दी है। इसका मतलब है कि रोज के पानी की जरूरतें बढ़ गई हैं और हजारों ग्रामीण महिलाओं को पानी भरने और ढोने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने पड़ रहे हैं।

Shivani GuptaShivani Gupta   17 Sep 2020 6:45 AM GMT

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गांव कनेक्शन सर्वे: 40 प्रतिशत ग्रामीण महिलाओं ने कहा- कोराना और लॉकडाउन के कारण पानी के लिए करनी पड़ी अतिरिक्त मशक्कतलॉकडाउन के दौरान पानी ढोकर ले जाने के लिए महिलाओं को अतिरिक्त दूरी और मेहनत तय करना पड़ा। फोटो: निधि जम्वाल

झारखंड के देवघर जिले के थेंगाडीह गांव की निवासी हिलोनी देवी रोजाना एक किलोमीटर पैदल चलती हैं। हिलोनी के परिवार में चार सदस्य हैं। 46 वर्षीय हिलोनी के लिए पानी का संकट एक ऐसी समस्या है, जिसका सामना वह पूरे साल करती हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया कि चाहे बारिश आये, ओले गिरें या कोरोना वायरस महामारी हो उन्हें दिन में कम से कम पांच बार घर से बाहर निकलना पड़ता है ताकि वह परिवार के लिए पानी की व्यवस्था कर सकें।

देवी गांव कनेक्शन से कहती हैं, "पानी का बहुत तकलीफ है और यह जिन्दगी भर का तकलीफ है।"

हिलोनी देवी, देवघर, झारखंड

पिछले कुछ महीनों में कोरोना महामारी की वजह से यह संकट और बढ़ गया है क्योंकि कोरोना वायरस के प्रसार से बचने के लिए सरकार और स्वास्थ्य एजेंसियों ने बार-बार हाथ धोने की सलाह दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार साबुन और पानी से नियमित रूप से हाथ धोने पर हाथों पर मौजूद कोरोना वायरस को मारा जा सकता है।

इसका मतलब यह हुआ कि परिवार की दैनिक पानी की जरूरतें बढ़ गई और देवी को अधिक पानी ढोकर लाना होगा।

देवी की तरह ही कई और ग्रामीण महिलाओं ने गांव कनेक्शन के सर्वे के दौरान लॉकडाउन में परिवार के लिए पानी की व्यवस्था करने के लिए अतिरिक्त दूरी तय करने की शिकायत की। यह देश के 23 राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में ग्रामीण भारत पर कोरोना महामारी के प्रभाव की जांच करने वाला पहला राष्ट्रीय सर्वे है।

सर्वे में यह पता लगाने की कोशिश की गई कि ग्रामीण क्षेत्र के घरों में हाथ धोने के लिए पर्याप्त पानी है या नहीं? कुल मिलाकर दो तिहाई घरों में यह पाया गया कि उनके पास पानी की उचित व्यवस्था है। लेकिन 38 फीसदी परिवारों ने शिकायत की कि परिवार की अतिरिक्त पानी की जरूरतों को पूरा करने के लिए महिलाओं को ज्यादा दूरी तय करना पड़ा।


वर्तमान में भारत का एक बड़ा हिस्सा लोग जल संकट की स्थिति का सामना कर रहा है। नीति आयोग के हालिया 'समग्र जल प्रबंधन सूचकांक' के अनुसार भारत में लगभग 82 प्रतिशत ग्रामीण घरों में जलापूर्ति के लिए अलग से पाइपलाइन नहीं है। वहीं 16.30 करोड़ लोगों के घरों के पास मौजूद पानी पीने योग्य नहीं है।

ग्रामीण भारत में महिलाएं अक्सर अपने परिवार के लिए पानी ढोने का काम करती हैं। साल दर साल महिलाओं के लिए पानी लाना बोझ जैसा बनता चला जा रहा है। साथ ही अप्रैल और मई के महीने में जब गर्मी अपने चरम पर थी, ऐसे समय में लॉकडाउन की वजह से महिलाओं पर बोझ और अधिक बढ़ गया है।


महाराष्ट्र के पालघर में आदिवासी समुदायों के साथ काम करने वाले गैर-लाभकारी संस्थान, स्वराज फाउंडेशन की मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्रद्धा श्रीनगरपुरे ने कहा, "महामारी के बीच पानी के लिए ग्रामीणों पर बोझ बढ़ गया है।" श्रद्धा के अनुसार, पालघर के मोखदा ब्लॉक के गांवों में साल में कम से कम तीन महीने पानी की कमी होती है। ज्यादातर नदियां और कुएं नवंबर-दिसंबर के बाद सूख जाते हैं और होली के बाद पानी की कमी हो जाती है।

श्रद्धा आगे कहती हैं, "पानी के दो बर्तन भरने के लिए इन आदिवासी गांवों में कई लोगों को स्थानीय कुएं से पानी लाने के लिए पूरी रात जागना पड़ता है। एक व्यक्ति हाथ में बर्तन के साथ कुएं में पानी भरने के लिए उतरता है। ऐसे लोगों के संकट की कल्पना कीजिए अगर उन्हें नियमित रूप से हाथ धोने के लिए अतिरिक्त पानी लाना पड़ जाए तो?

पानी के टैंकर के आने पर मोखदा गांव के लोग बाल्टी भरने के लिए भीड़ लगाए हुए. फोटो: श्रद्धा श्रीनगरपुरे

छत्तीसगढ़ की ग्रामीण महिलाओं पर सबसे ज्यादा पानी का बोझ

छत्तीसगढ़ में10 में से 8 घरों में महिलाओं को लॉकडाउन के दौरान पानी के लिए अतिरिक्त प्रयास करना पड़ा। स्थानीय विशेषज्ञों ने दो कारकों को इसका जिम्मेदार बताया है। पहला है राज्य के कई स्थानों में तेजी से घटता भूजल स्तर और दूसरा प्रदूषकों जैसे कि फ्लोराइड, आर्सेनिक, लोहा और अन्य भारी धातुओं द्वारा पानी का रासायनिक प्रदूषण।

छत्तीसगढ़ के बस्तर निवासी तामेश्वर सिन्हा ने गांव कनेक्शन को बताया, "बस्तर में रहने वाले आदिवासी लोगों को पानी की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। चूंकि यहां कई खदानें हैं इसलिए लोगों को लाल पानी इस्तेमाल करना पड़ता है, जिसके कारण वह कई बार गंभीर बीमारियों से पीड़ित भी हो जाते हैं। लेकिन वे यह पानी पीने के लिए मजबूर हैं। "

उन्होंने आगे कहा, "ज्यादातर सरकारी बोरवेलों में लाली पानी आता है। यही कारण है कि कई ग्रामीण पानी के प्राकृतिक स्रोतों की तलाश करते हैं। जिसके लिए ग्रामीण महिलाओं को दिन में एक या दो किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। लेकिन वह कर भी क्या सकती हैं, प्राकृतिक स्रोतों का पानी लाल पानी पीने से बेहतर है। "

पानी की समस्या सिर्फ खनन क्षेत्रों में ही नहीं है बल्कि राज्य के विभिन्न हिस्सों में भी है। छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव जिले के निवासी राजू सैमसन ने गांव कनेक्शन को बताया,"खनन क्षेत्रों के अलावा ऐसे कई गांव हैं जहां पानी की अपनी समस्याएं हैं। यहां पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक है। महिलाओं को पानी की व्यवस्था करने के लिए रोजाना एक या डेढ़ किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। वहीं कुछ लोग पानी जिहिया (नालियों) या आस-पास के गांवों के हैंडपंप से लेते हैं।"

सैमसन लोकशक्ति समाज सेवा संस्थान से जुड़े हुए हैं जो कि एक गैर-लाभकारी संस्था है और पिछले 35 वर्षों से राज्य में पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम कर रही है। समाचार रिपोर्ट्स के अनुसार पानी में मौजूद भारी धातुओं की वजह से ज्यादातर ग्रामीणों को किडनी फेल होने की समस्या होती है।


उत्तराखंड में पानी लाना एक कठिन कार्य

पानी की समस्या सिर्फ छत्तीसगढ़ में ही नहीं है। सर्वे में पता चला है कि उत्तराखंड में 67 प्रतिशत ऐसे ग्रामीण परिवार हैं जहां महिलाओं को पानी के लिए अतिरिक्त प्रयास करना पड़ा।

उत्तराखंड के अल्मोड़ा निवासी विक्की कुमार आर्य ने गांव कनेक्शन को बताया, "पानी की व्यवस्था करने के लिए हमें कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यहां पानी की आपूर्ति दो दिनों में एक बार की जाती है। हमें पानी की व्यवस्था सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि अपनी गायों और बकरियों के लिए भी पड़ती है। "

एक तरफ जहां हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, जम्मू कश्मीर और गुजरात जैसे राज्यों में हाथ धोने के लिए पर्याप्त पानी दर्ज किया गया। वहीं ओडिशा, झारखंड, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में पानी की कमी दर्ज की गई।


गांव कनेक्शन सर्वे के अनुसार ओडिशा के 65 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास महामारी के समय में हाथ धोने के लिए पर्याप्त पानी नहीं था। ओडिशा के पुरी की रहने वाली पद्मिनी मुदिली ने गांव कनेक्शन को बताया, "हमारे गांव में पानी की आपूर्ति की समस्या है। इस महामारी के समय में हम पानी लाने के लिए बाहर जाने में असमर्थ हैं। "

झारखंड के कई ग्रामीण परिवारों ने दावा किया कि उनके पास पानी की आपूर्ति नहीं है। सर्वेक्षण में पाया गया कि राज्य के 55 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को महामारी में अतिरिक्त पानी के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। झारखंड के देवघर के पालोजोरी गांव की निवासी रूपा देवी ने गांव कनेक्शन को बताया, "यहां हमारे लिए पानी की उचित सुविधा नहीं है। हमारे पास हैंडपंप या नल नहीं हैं। अन्य गांव यह सुविधाएं पहले ही प्राप्त कर चुके हैं।"

रूपा देवी, देवघर, झारखंड

उन्होंने आगे कहा, "कभी-कभी जब लाइन खराब हो जाती है तो ठीक करने के लिए मजदूर हमसे पैसे मांगते हैं। लॉकडाउन में हमने अपनी आजीविका खो दी है अब इसके लिए हम पैसे की व्यवस्था कैसे करेंगे? हम चाहते हैं कि सरकार इस समस्या पर ध्यान दे ताकि हमें पानी की नियमित आपूर्ति मिल सके।''

छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड के अलावा उत्तर प्रदेश के ग्रामीण परिवारों ने भी लॉकडाउन के दौरान पानी की कमी की शिकायत की है। राज्य के कई क्षेत्रों जैसे बुंदेलखंड, सोनभद्र और मथुरा पानी की कमी झेल रहे हैं। सर्वे में पाया गया कि राज्य के प्रत्येक 10 ग्रामीण परिवारों में लगभग तीन (27 प्रतिशत) को अतिरिक्त पानी पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है।

पिशे, मथुरा, उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश के मथुरा के मौरा गांव की रहने वाली पिशे को महामारी में पानी की कमी के कारण काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। लेकिन उनकी यह परेशानी सिर्फ महामारी के समय ही नहीं थी, वह लंबे समय से पानी की समस्या झेल रही हैं। वह दुःखी मन से कहती हैं, "हमने पानी का सुख कभी देखा ही नहीं। हमारी शादी को 35 साल हो गए हैं और मैं लंबे समय से पानी के लिए संघर्ष कर रही हूं। हर दिन मुझे पानी लाने के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता है। आदमी मरे या जिए हमें वहीं से पानी लाना होता है।"

पहले से ही पानी की समस्या झेल रही एक बड़ी आबादी के लिए हाथ धोने के लिए पानी की व्यवस्था करना एक ना पूरा होने वाले सपने के जैसा है।

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