किसान आंदोलन: घर और खेत की भी जिम्मेदारी संभाल रही हैं पंजाब की ग्रामीण महिलाएं

ऐसे समय में जब दिल्ली में कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहा है, पंजाब के मालवा क्षेत्र की ग्रामीण महिलाएं ना सिर्फ अपना घर बल्कि खेती का काम भी संभाल रही हैं। उनका कहना है कि अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए वे मजबूती के साथ खड़ी हैं।

Vivek GuptaVivek Gupta   7 Dec 2020 9:35 AM GMT

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किसान आंदोलन: घर और खेत की भी जिम्मेदारी संभाल रही हैं पंजाब की ग्रामीण महिलाएं

नई दिल्ली के विज्ञान भवन में जिस समय किसान नेताओं और केंद्र सरकार के बीच कृषि कानूनों पर पांचवें दौर की बातचीत चल रही थी, उसी समय वहां से 350 किलोमीटर की दूरी पर पंजाब के बठिंडा जिले के घुद्दा गांव में 65 वर्षीय राजिंदर कौर और उनकी बहू तरनजीत कौर अपने छह एकड़ खेत में काम करने में व्यस्त थीं।

राजिंदर के बेटे रेशम सिंह कृषि-बिल का विरोध कर रहे किसानों के प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दिल्ली गए हैं। रेशम ने पशुओं को चारा खिलाने, उन्हें दूध पिलाने और बछड़ों की देखभाल करने का काम अपनी पत्नी और माँ को सौंपा है।

32 साल की तरनजीत कहती हैं, "मैं चाहती हूं कि सभी किसान जल्द से जल्द घर लौट आएं, लेकिन मैं उन्हें विजेता के रूप में ही वापस आते देखना चाहती हूं।" वह आगे कहती हैं, "इस काम में समय लग सकता है और इसलिए हम एक लंबी लड़ाई के लिए भी तैयार हैं।"

गांव में अपने मवेशियों की देखभाल करतीं तरनजीत कौर Photo-By Arrangement

हाल ही में बोए गए गेहूं की फसल पर सिंचाई करने में पड़ोसी भी दोनों महिलाओं की मदद कर रहे हैं। इस बीच राजिंदर ने एक मजदूर की मदद से अपनी फसल पर कीटनाशकों का छिड़काव भी किया है। वह कहती हैं, "यह हमारे लिए एक बुरा समय हैं। लेकिन हम सभी को अभी मजबूती के साथ खड़े होने की जरूरत है।"

पंजाब के मालवा क्षेत्र में स्थित 11 जिले के लोग, जिसमें फ़िरोज़पुर, मुक्तसर, फरीदकोट, मोगा, लुधियाना, बठिंडा, मानसा, संगरूर, पटियाला, आनंदपुर साहिब और फतेहगढ़ साहिब शामिल है, केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान राज्य में भयानक सन्नाटा है। यहां के पुरुषों और युवाओं की एक बड़ी संख्या विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दिल्ली चली गई हैं, लेकिन इसके बावजूद यहां की ग्रामीण महिलाएं अपने जमीन की देखभाल और सिंचाई, मवेशियों की देखभाल और इसके साथ ही रबी फसल की तैयारियां बड़े सूझबूझ से कर रही हैं।

घुद्दा गांव की ही बात करें, तो यहां के 983 घरों में लगभग 5,500 लोगों की आबादी रहती है। इनमें से लगभग 150 घरों के पुरुष विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दिल्ली में हैं। नौजवान भारत सभा के एक स्थानीय किसान नेता अश्विनी घुद्दा कहते हैं, "उनकी (पुरुषों और युवाओं की) अनुपस्थिति में हम यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनके परिवारों और खेतों को हर संभव सहायता मिले। हमारे कार्यकर्ताओं ने कई इलाकों में कपास की कटाई में भी इन महिलाओं की मदद की है। ग्राम पंचायतें उन परिवारों को हर तरह की मदद कर रही है जिनके घर के पुरुष दिल्ली में हैं।"

प्रदर्शनकारी किसानों की माताओं, पत्नियों, बेटियों और बहनों का कहना है कि वे घर पर रहकर और चूल्हा चौका करके इस काम में योगदान दे रही हैं। पटियाला के पातड़ां तहसील के बारस गांव की रहने वाली दलीप कौर कहती हैं, "हम चाहते हैं कि हमारे बेटे और पति इस काले कानून का तब तक विरोध करें जब तक कि इन्हें वापस नहीं ले लिया जाता। इस लड़ाई में हम भी उनके साथ हैं और उनके सकुशल घर वापसी के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं।"

प्रदर्शन स्थल पर खाना बनाती महिलाएं (फोटो- दया सागर)

मवेशियों के लिए चारा काटने वाली एक अन्य 60 वर्षीय महिला पहले तो उन्हें चारा देती हैं और फिर अपने गेहूं की फसल की देखभाल के लिए खेत चली जाती हैं। वह पूछती हैं, "मेरे पास क्या विकल्प है? घर के सभी पुरुष प्रदर्शन में शामिल होने के लिए दिल्ली चले गए हैं। अगर मैं काम नहीं करूंगी तो मवेशी भूखे मर जाएंगे।"

पंजाब में तरनजीत, राजिंदर और दलीप कौर जैसी सैकड़ों महिलाएँ हैं जो कृषि कानूनों के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन के दौरान घर के पुरूषों की अनुपस्थिति में भी ना सिर्फ उनका काम कर रही हैं बल्कि पूरा घर संभाल रही हैं।

तरनजीत कहती हैं, "इन नए कृषि कानूनों ने हमारे अस्तित्व पर हमला किया है। इसलिए हम सभी को अब साथ मिलकर एक मजबूत मोर्चा बनाने की जरूरत है। इस लड़ाई को तब तक जारी रखा जाएगा, जब तक कि ये काले कानून वापस नहीं ले लिए जाते।"

इस बीच अपने हरे-भरे खेतों और घरों से दूर हजारों किसान दिल्ली में कड़ाके की ठंड में अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। इस दौरान उन्हें कई तरह की तकलीफों से गुरजना पड़ रहा है। ऐसी खबरे हैं कि किसानों को कभी-कभी शौचालय की सुविधा भी नहीं मिल पा रही है। इस दौरान लगभग छह किसानों के मरने की खबर भी आई है, जिनमें ज्यादातर की मौत ठंड लगने और दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुई है।

बारस के एक युवा किसान नेता गुरप्रीत कौर कहती हैं, "आंदोलन स्थल पर शौचालयों की अनुपलब्धता समेत कई तरह की समस्याएं है। लेकिन कोई भी आंदोलन बिना किसी कष्ट के सफल नहीं हो सकता है। हर कोई चाहे वह विरोध प्रदर्शन में हो या घर में इस आंदोलन का समर्थन कर रहा है।" गुरप्रीत दिल्ली में चल रहे विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थीं, जो फिलहाल गांव लौट चुकी हैं। वह जल्द ही प्रदर्शनकारी पुरुषों और महिलाओं का एक और जत्था लेकर दिल्ली लौट जाएंगी।

बठिंडा के बहादुरगढ़ जंडियान गांव की 80 वर्षीय मोहिंदर कौर कहती हैं कि अभी भी लड़ाई बाकी है। उन्होंने अपने पति और बेटों को जीवन भर खेती करने में मदद की है और अब भी वह नियमित रूप से खेतों में काम करती हैं। मोहिंदर गाँव कनेक्शन से कहती हैं, "अगर हम अब भी खड़े नहीं होते हैं, तो इसका नुकसान हमारी भावी पीढ़ी को उठाना होगा।"

मोहिंदर कौर Photo: By arrangement

पंजाब के बरनाला जिले के हरिगढ़ गांव के 22 वर्षीय मनदीप कौर बताते हैं कि जब इलाके के अन्य युवा विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए घर से बाहर निकले तो उनका छोटा भाई भी अपने पिता के साथ दिल्ली चला गया। मनदीप कहते हैं, "कई लोगों ने हमें इसके संभावित खतरों से आगाह किया और छोटे भाई को दिल्ली नहीं भेजने की सलाह दी।"

मनदीप कहते हैं कि वह अभी भी चिंतित है, क्योंकि प्रदर्शन के दौरान हुए लाठीचार्ज की चपेट में उनका परिवार भी आया है। इसके साथ ही उनके परिवार को दिल्ली में कड़ाके की ठंड में रात बितानी पड़ रही है। वह कहते हैं, "यह आंदोलन हमारे अस्तित्व की लड़ाई है और अगर भविष्य में जरूरत पड़ी तो हम दिल्ली भी जाएंगे।"

हरिगढ़ गांव की ही रहने वाली करमजोत कौर गाँव कनेक्शन से कहती हैं, "मैं अपने पति को वापस आने के लिए तब तक नहीं कहूंगी, जब तक कि इन काले कानूनों को सरकार वापस नहीं ले लेती है।"

संगरूर जिले के धनोला के बूटा सिंह अंतर्राष्ट्रीय अंग्रेजी भाषा परीक्षण प्रणाली (आईईएलटीएस) परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं और इसके लिए वे कनाडा जाना चाहते हैं। लेकिन फिलहाल वे अपने परिवार की मदद के लिेए गांव में ही रुक गए हैं। वे कहते हैं, "कनाडा के लिए कुछ और दिनों का इंतजार किया जा सकता है। यह हम सबकी साझा लड़ाई है। ऐसे वक्त में परिवार को मेरी जरूरत है।"

चंडीगढ़ के श्री गुरु गोबिंद सिंह (SGGS) कॉलेज में सहायक प्रोफेसर (इतिहास) हरजेश्वर पाल सिंह का कहना है, "इस आंदोलन में शामिल ज्यादातर लोग पंजाब से हैं। इसने गांवों में लोगों के बीच आपसी संबंध को मजबूत किया है और विचारधाराओं में अंतर के बावजूद विभिन्न कृषि संगठनों को एक साथ लाया है।"

सिंह ने इस बात को भी खारिज किया कि इस आंदोलन को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है। उन्होंने कहा, "जो लोग पंजाबी संस्कृति को समझते हैं, वे कभी इस तरह के बयान नहीं देंगे। इस आंदोलन के लिए फंडिंग आंदोलनकारियों ने स्वयं की है। गांव स्तर पर लोगों ने बड़े पैमाने पर दान दिया है।"

आंदोलन स्थल पर खाना बनाते पंजाबी युवा (फोटो- हरिंदर बिंदु, टिकरी बॉर्डर)

दैनिक जरूरतों का सामान आ रहा है गांवों से

भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के एक किसान नेता सुखविंदर सिंह ने गाँव कनेक्शन से कहा, "हम गुरुद्वारे के पब्लिक एड्रेस सिस्टम के जरिए फंड के लिए घोषणा करते हैं और ग्रामीण लोग स्वयं आगे आकर दान करते हैं। फिर इन दैनिक जरूरतों के सामानों को ट्रैक्टर और ट्रॉलियों के जरिए दिल्ली बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों के बीच भेज दिया जाता है।" उन्होंने आगे बताया कि इन सामानों में दुध और पका हुआ भोजन जैसे साग व मक्के की रोटी शामिल है। ठंड की वजह से खाने की ये सामग्री जल्दी खराब नहीं होती हैं।

बरनाला जिले के कृष्ण सिंह शन्ना ने बताया, "हर दिन तीन क्विंटल दूध एक निजी बस ऑपरेटर के माध्यम से भेजा जाता है, जो धौला से दिल्ली के लिए मुफ्त बस सेवा चलाता है।" उन्होंने कहा, "हमारे जिले से दूध की आपूर्ति दिल्ली में विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद से कभी नहीं रुकी है।"

अनुवाद- शुभम ठाकुर

इस स्टोरी को मूल रूप से अंग्रेजी में यहां क्लिक करके पढ़ें।

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