हरियाणा MBBS फीसवृद्धि :'ब्रेन ड्रेन' रोकने के लिए बना नियम क्या बन जाएगा 'ब्रेन ड्रेन' का कारण?

हरियाणा सरकार ने राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बॉण्ड सिस्टम लाते हुए एमबीबीएस कोर्स की सालाना फीस को 10 लाख रूपये कर दिया है। कहा जा रहा है कि इससे नए ग्रेजुएट डॉक्टरों का राज्य से पलायन रूकेगा और डॉक्टर राज्य में ही सेवा देंगे लेकिन इस बॉण्ड रूपी 'लोन' के भय से अब कई छात्र दूसरे राज्यों में एडमिशन लेने का सोचने लगे हैं, वहीं कुछ अब एमबीबीएस ही नहीं करना चाहते हैं।

Daya SagarDaya Sagar   15 Nov 2020 6:17 AM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

"हम तो हरियाणा के होते हुए भी हरियाणा के नहीं रहें। सरकार ने इतनी कठोर पॉलिसी ला दी है कि हमें अपनी पढ़ाई करने के लिए ना चाहते हुए भी राज्य से बाहर जाना होगा। यह बहुत दुःखद है कि किसी राज्य का बच्चा अच्छा रैंक लाने के बावजूद अपने राज्य में पढ़ना चाहता है, लेकिन राज्य की नीतियां उसको ऐसा नहीं करने दे रही हैं। सरकार कह रही है कि नई फीस पॉलिसी से ब्रेन ड्रेन नहीं होगा और राज्य के डॉक्टर राज्य में ही रहकर सेवा देंगे लेकिन इस नई फीस पॉलिसी से कोई भी मध्य वर्ग या गरीब तबके का बच्चा हरियाणा में नहीं पढ़ सकेगा और उसे मजबूरी में दूसरे राज्यों में एडमिशन लेना पड़ेगा। इससे अधिक ब्रेन ड्रेन क्या ही हो सकता है?", हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के नारनौल कस्बे के तरूण भारद्वाज (21 वर्ष) गांव कनेक्शन से बताते हैं।

तरूण भारद्वाज बॉयलोजी विषय से बारहवीं पास करने के बाद पिछले तीन साल से नारनौल में ही स्थित एक प्राइवेट कोचिंग इंस्टीट्यूट से ऑल इंडिया प्रीमेडिकल टेस्ट- नेशनल एलिजबिलटी कम इंट्रेस टेस्ट (NEET) की तैयारी कर रहे हैं। तीन साल के कड़े मेहनत के बाद तरूण ने इस बार पूरे देश में 9834 रैंक लाया था, जिसमें उन्हें अपने राज्य हरियाणा के पांच सरकारी मेडिकल कॉलेजों में से किसी एक कॉलेज में प्रवेश मिल सकता है। लेकिन अब वह चाहकर भी हरियाणा के किसी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश नहीं ले सकते क्योंकि हरियाणा के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में इस साल फीस कई गुना तक बढ़ गई है और सरकार ने 10 लाख रूपये का बॉण्ड सिस्टम भी ला दिया है।

हरियाणा सरकार द्वारा 6 नवंबर को जारी एक नोटिफिकेशन के अनुसार सत्र 2020-21 में राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश लेने वाले एमबीबीएस छात्रों को अब 53,000 की बजाय प्रतिवर्ष 80,000 रूपये फीस देना होगा। नए नोटिफिकेशन के अनुसार, यह फीस हर साल 10% बढ़ेगी और छात्र को दूसरे साल 88,000 रूपये, तीसरे साल 96,800 रूपये और चौथे साल 1,06,480 रूपये फीस के रूप में भरने होंगे।

हालांकि हरियाणा के मेडिकल छात्रों के लिए इस फीसवृद्धि से बड़ा सिरदर्द इस साल लाया गया बॉन्ड सिस्टम है। सरकार की इस नई पॉलिसी के अनुसार अब राज्य के प्रत्येक सरकारी मेडिकल कॉलेज के एमबीबीएस छात्र को प्रतिवर्ष 10 लाख रूपया बॉन्ड के रूप में भरना होगा। हरियाणा सरकार ने इसके लिए दो प्रावधान किए हैं या तो कोई छात्र इस 10 लाख रूपये (चार साल में 40 लाख रूपये) के बॉण्ड को खुद भरे या फिर इसे 'लोन' के रूप में हरियाणा सरकार से ले।

हरियाणा में 2020-21 सत्र के लिए नया फीस स्ट्रक्चर

लोन के रूप में इस बॉण्ड को लेने वाले एमबीबीएस छात्रों को कोर्स पूरा करने के बाद हरियाणा सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं में कम से कम सात साल तक अपनी सेवाएं देनी होगी और इसका उल्लंघन करने वाले छात्रों को लोन और उसका ब्याज खुद से भरना होगा।

हरियाणा सरकार की दलील है कि इससे राज्य से ब्रेन ड्रेन कम होगा और राज्य के मेडिकल कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्र राज्य के ही सरकारी अस्पतालों में अपनी सेवाएं देंगे। हालांकि राज्य सरकार ने अपनी नई पॉलिसी में यह कोई गारंटी नहीं दी है कि एमबीबीएस पूरा करने के बाद छात्रों को राज्य की स्वास्थ्य सेवा में नौकरी लग ही जाएगी। इसके अलावा आगे मेडिकल क्षेत्र में ही मास्टर्स (एमएस,एमडी) और रिसर्च की पढ़ाई का इरादा रखने वाले छात्रों के साथ क्या नियम होगा, यह भी इस नए नियम में स्पष्ट नहीं है।

नई पॉलिसी में लोन का नियम और रोजगार ना देने की गारण्टी की शर्त

इस वजह से इस साल नीट की परीक्षा देने वाले हरियाणा के विद्यार्थी असमंजस की स्थिति में हैं। कुछ विद्यार्थी जिनकी अच्छी रैंक आई है, वे तो देश के दूसरे राज्यों में प्रवेश लेने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन ऐसे विद्यार्थी जिनका नेशनल रैंक नहीं बल्कि स्टेट रैंक अच्छा आया है, वे परेशान चल रहे हैं। इनमें से अधिकतर विद्यार्थी किसी भी हालत में 40 लाख रूपये बॉण्ड को भरने के हालत में नहीं है, बल्कि इस बॉण्ड रूपी लोन के कारण उनके करियर और उनके परिवार के आर्थिक भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसे सोच के ही वह डरे हुए हैं और अगले साल के लिए तैयारी करने में लग गए हैं, ताकि और बेहतर रैंक लाकर देश के किसी दूसरे राज्य के सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश ले सकें।

ऐसे ही एक छात्र साहिल शर्मा (19 वर्ष) हैं, जो हरियाणा के पानीपत के रहने वाले हैं। उन्होंने बारहवीं पास करने के बाद अपने पहले प्रयास में ही पूरे देश में 33000 रैंक लाया है। इस रैंक से उन्हें अन्य राज्यों में तो नहीं लेकिन हरियाणा के सरकारी मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल सकता है। लेकिन साहिल एक साल फिर से तैयारी करने जा रहे हैं, ताकि और बेहतर रैंक लाकर वह देश के किसी दूसरे राज्य में प्रवेश के योग्य हो जाएं।

गांव कनेक्शन से फोन पर बातचीत में साहिल कहते हैं, "यह एक लोन है, जिसे बॉण्ड के रूप में हम पर जबरदस्ती थोपा जा रहा है। हरियाणा सरकार अगर चाहती है कि उनके राज्य में मेडिकल शिक्षा प्राप्त किए हुए डॉक्टर राज्य में ही सेवा दें तो उन्हें जॉब की भी गारण्टी देनी चाहिए, लेकिन सरकार तो ऐसा कर नहीं रही है। ऊपर से हमें और हमारे परिवार को बॉण्ड और लोन के जाल में फंसाया जा रहा है। आप ही बताइए अगर जिनकी जॉब नहीं लग पाएगी, वह 40 लाख के इस लोन और उसके ब्याज को कैसे भर पाएगा?" साहिल आगे कहते हैं कि अगर हरियाणा सरकार चाहती है कि यह लोन रूपी बॉण्ड रहे तो वह हमें जॉब की भी गारण्टी दे, नहीं तो यह 'तुगलकी फरमान' वापिस करे।

तरूण भारद्वाज ऐसे एक छात्र के बारे में बताते हैं, जिन्होंने इस आदेश के बाद डॉक्टर बनने का फैसला ही वापस ले लिया है। तरूण के साथ ही पिछले तीन साल से तैयारी कर रहे और एक दलित परिवार से आने वाले जय कुमार (जेके) ने इस बार 30,000 के करीब रैंक लाकर राज्य की मेडिकल सीट पर अपना दावा ठोका था, लेकिन सरकार के इस आदेश के बाद उन्होंने अब एमबीबीएस करने का इरादा ही बदल लिया है। वह अब किसी कॉलेज से सिंपल ग्रजुएशन (बीएससी या बीए) करेंगे।

तरूण ने कहा कि राज्य में जेके जैसे ऐसे सैकड़ों छात्र हैं, जो किसी किसान या गरीब परिवाप से संबंध रखते हैं। ऐसे छात्र अब या तो एमबीबीएस करने का निर्णय ही बदल दे रहे हैं या फिर एक साल और तैयारी करके बेहतर रैंक पाकर किसी अन्य राज्य में प्रवेश लेना चाहते हैं। तरूण ने बताया कि जेके के पिता भी नहीं हैं और उन्होंने बहुत मेहनत करके यह रैंक लाई थी।


नया फी स्ट्रक्चर

'यह नियम एक धोखा'

फरीदाबाद की रहने वाली कोमल सिंह (19 वर्ष) पिछले दो सालों से राजस्थान के कोटा में रहकर नीट परीक्षा की तैयारी कर रही थी। उन्होंने इस बार बेहतर 6125 रैंक लाया और देश के किसी भी मेडिकल कॉलेज में अपने सीट के लिए दावा कर सकती थीं। लेकिन कोमल अपना राज्य छोड़कर जाना नहीं चाहती थी इसलिए उन्होंने नीट के प्रथम चरण के कॉउंसलिंग के दौरान बेहतर रैंक होते हुए भी अपने राज्य के कॉलेजों को वरीयता दी। लेकिन वह अब अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रही हैं।

गांव कनेक्शन से फोन से बातचीत में वह कहती हैं, "यह कोई गलत नियम नहीं बल्कि एक धोखा है। सरकार यह नया नियम तब लाई जब अधिकतर बच्चे प्रथम राउंड में अपना काउंसलिंग करा चुके हैं, जो कि देश भर में 28 अक्टूबर से 2 नवंबर के बीच चला था और 5 तारीख तक सीट एलॉटमेंट हुए थे। जबकि सरकार ने 6 तारीख को इस नए पॉलिसी की घोषणा की।"

"अगर मुझे यह पहले से पता होता तो दूसरे राज्यों के कॉलेजों को भी पहले कॉउंसलिंग में वरीयता देती। अब मैं बुरी तरह से फंस गई हूं और ना चाहते हुए भी, हरियाणा के कॉलेज मिल जाने के बाद भी मुझे दूसरे राउंड की कॉउंसलिंग में बैठना होगा क्योंकि 40 लाख का बॉण्ड क्या हम तो ब्याज देने की भी स्थिति में नहीं हैं," किसान पिता की बेटी कोमल कहती हैं।

नीट के दूसरे राउंड की कॉउंसलिंग दीपावली के बाद 23 और 24 नवंबर को होगा, लेकिन कोमल, तरूण, साहिल और जय कुमार सहित हरियाणा के हजारों मेडिकल छात्र और अभिभावक चाहते हैं कि सरकार तब तक यह फैसला वापस ले ले और वे अपने राज्य में ही रहकर पढ़ाई कर सकें, जो कि उनका मौलिक अधिकार भी है। वह अपने इस मांग को लेकर #MedicosAgainstBondedSlavery और #SaveHaryanaMedicos हैशटैग चलाकर सोशल मीडिया पर आंदोलन भी चला रहे हैं।


विद्यार्थियों और अभिभावकों द्वारा दिया गया मांग पत्र

सीनियर्स और डॉक्टर्स एसोसिएशन का मिला समर्थन

हरियाणा के इन मेडिकल छात्रों का उनके सीनियर्स और अलग-अलग डॉक्टर्स एशोसिएशन से समर्थन भी मिला है। हरियाणा के रोहतक पीजीआई में मेडिकल छात्र पंकज बिट्टु गांव कनेक्शन से फोन पर बातचीत में कहते हैं, "यह सरकार का बहुत ही कठोर निर्णय है, जिसका परिणाम ना सिर्फ इस साल के छात्र बल्कि आने वाली हरियाणा की कई साल की पीढ़िया भुगतेंगी। सरकार साफ चाहती है कि अब सिर्फ अमीरों के बच्चे ही डॉक्टरी की पढ़ाई करें, जबकि उनके लिए पहले से ही प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हैं। इस पॉलिसी से अमीर और अमीर व गरीब और गरीब होगा।"

"अगर इतना फीस ही देना होता तो बच्चा इतनी मेहनत करके, ईयर ड्रॉप करते हुए लगातार सरकारी सीट के लिए तैयारी क्यों करता? हमें रेगुलर फीस जो कि हॉस्टल और मेस चार्ज लेकर लगभग 1.50 लाख प्रतिवर्ष हो जाता है, उसके लिए ही एजुकेशन लोन लेना पड़ता है। अब हम पर 40 लाख रूपये का जबरदस्ती सरकारी लोन भी थोपा जा रहा है," पंकज कहते हैं।

पंकज ने बताया कि इस फी स्ट्रक्चर के आने के बाद अब हरियाणा देश के सबसे महंगे मेडिकल पढ़ाई वाले राज्यों में शामिल हो गया है। देश के दूसरे राज्यों में ना इतनी फीस है और ना ही इतना महंगा और कठोर बॉण्ड सिस्टम। उन्होंने बताया कि राजस्थान में पूरे कोर्स के लिए 5 लाख रूपये का बॉण्ड है और उसकी अवधि भी सिर्फ दो साल है यानी दो साल के बाद कोई डॉक्टर अपनी मर्जी के अनुसार या तो सरकारी सेवा में रह सकता है या फिर अपने आगे की पढ़ाई या प्राइवेट प्रैक्टिस कर सकता है।

वह आगे कहते हैं कि राजस्थान सहित अन्य राज्य जहां पर भी बॉण्ड सिस्टम है, वहां पर सरकार सरकारी नौकरी का पूर्ण आश्वासन भी देती हैं। वहीं जहां पर सरकारी नौकरी के लिए जगह नहीं है, वहां पर बॉण्ड सिस्टम को खत्म किया जा रहा है। हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने दशकों से चली आ रही बॉण्ड सिस्टम को खत्म किया था क्योंकि वहां पर सरकारी डॉक्टरों की आवश्यकता पूरी हो गई है। इसी तरह हरियाणा में भी 2017 में 25 लाख रूपये का दो साल का बॉण्ड सिस्टम लाया गया था लेकिन वह सिर्फ एक ही सत्र तक रहा, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में वैकेंसी ही नहीं है। इसके अलावा यह बॉण्ड की नीति तभी लागू होती थी जब एमबीबीएस छात्र पास को किसी सरकारी सेवा में नियुक्ति मिल ही जाती थी।

हरियाणा में 2017 में लाया गया बॉण्ड सिस्टम, जिसमें साफ लिखा है कि बॉण्ड सरकारी सेवा शुरू होने के बाद ही लागू होगा।

पीजीआई, रोहतक में चौथे साल के छात्र अंशुल कहते है, "राज्य में 5 सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं। इसके अलावा 6 प्राइवेट और एक सेमी-गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज है, जिसमें से हर साल लगभग 1500 मेडिकल छात्र एमबीबीएस छात्र निकलते हैं। उसमें से सरकारी कॉलेजों से निकलने वाले डॉक्टरों की संख्या लगभग 800 होती है। जबकि हरियाणा में हर तीन या चार साल पर कभी 300 तो कभी 500 डॉक्टरों की वैकेंसी आती है, ऐसे में सरकार किसको कैसे नौकरी देगी यह समझ से परे है। यहां तो नई पॉलिसी के प्वाइंट 9 में साफ लिखा है कि सरकार नौकरी की कोई गारंटी नहीं लेती है। इससे तो बच्चे लोन व उसके ब्याज तले ही दबते जाएंगे।"

भारत में मेडिकल छात्रों के सबसे बड़े छात्र समूह इंडियन मेडिकल एसोसिएशन-मेडिकल स्टूडेंट्स नेटवर्क (IMA-MSN) ने भी हरियाणा के इन छात्रों को समर्थन दिया है। IMA-MSN ने ट्वीट करते हुए कहा है कि वे हरियाणा के मेडिकल छात्रों के साथ खड़े हैं। हरियाणा राज्य की शाखा इस मसले को गंभीरता से ले रही है और सरकार के सामने इसे मजबूती से उठा रही है। इस संबंध में वह राज्य और केंद्र सरकार के मंत्रियों से भी मिल रहे हैं। IMA-IMS ने भारत के सभी मेडिकल छात्रों से अपील की है कि वे हरियाणा के मेडिकल छात्रों के साथ खड़े हों।

हरियाणा के छात्रों को देश भर के डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों का भी समर्थन मिला है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के अध्यक्ष डॉ. राजन शर्मा ने हरियाणा सरकार के इस फैसले की निंदा करते हुए कहा, "सरकार गरीब परिवारों के छात्रों के लिए क्या कर रही है, जो एक कठिन प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद सरकारी कॉलेजों में प्रवेश लेते हैं? नई नीति में स्पष्ट रूप से लिखा है कि यदि कोई छात्र हरियाणा सरकार की नौकरी में आता है, तो ही सरकार बॉण्ड रूपी लोन के ईएमआई का भुगतान करेगी, लेकिन रोजगार की गारंटी सरकार नहीं ले रही है। इस पॉलिसी को लाने की आवश्यकता ही नही थी", डॉ. राजन कहते हैं।

आईएमए के अलावा ग्लोबल एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल स्टूडेंट्स (GAIMS), फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) व अन्य मेडिकल संगठनों का भी समर्थन इन छात्रों को मिला है। वहीं हरियाणा के वकीलों ने भी नए मेडिकल छात्रों का समर्थन किया है।

छात्र व युवा संगठन 'युवा हल्ला बोल' के हरियाणा राज्य के समन्वयक और हरियाणा हाईकोर्ट में वकील हर्षित सिंह कहते हैं कि जहां कोरोना काल में सरकार द्वारा आम व गरीब लोगों के हित में फैसले लेने की जरूरत थी, वहीं सरकार इस तरह के तुगलकी फरमान जारी कर रही है। कोरोना काल में जहां डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने की जरूरत हैं, वहीं दूसरी तरफ सरकार ऐसे फैसले ले रही है, जिससे निजी मेडिकल कॉलेजों को फायदा हो और सिर्फ अमीरों के बच्चे ही डॉक्टर बन पाए। आर्थिक तंगी और महामारी के ऐसे कठिन समय में सरकार को मेडिकल शिक्षा मुफ्त या कम से कम करना चाहिए और मेडिकल सीट भी बढ़ानी चाहिए, ताकि हरियाणावासियों को इलाज के लिए दिल्ली - चंडीगढ़ की तरफ़ रुख़ न करना पड़े।

हरियाणा में प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने राज्य की मनोहर लाल खट्टर सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि हरियाणा सरकार जान-बूझकर ऐसा कर रही है, ताकि गरीब, पिछड़े और अनसूचित जाति के बच्चे डॉक्टर बनने का अपना सपना पूरा नहीं कर पाए।

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सूरजेवाला ने कहा, "यह एक तुगलकी फरमान है, जो कि छात्र, युवा व हरियाणा विरोधी नीति और षड्यंत्र है। अब मेडिकल छात्रों को ब्याज सहित लगभग 55 लाख रूपये चुकाने होंगे, जो कि सिर्फ गरीब व निम्न मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए ही नहीं बल्कि मध्यम व उच्च वर्गीय परिवारों के लिए भी देना नामुमकिन होगा। अब हरियाणा के सरकारी या प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में पढ़ना लगभग एक बराबर हो गया है, जहां पर अब सिर्फ अमीरों के बच्चे पढ़ेंगे और गरीबों के लिए कोई जगह नहीं होगी।"

हालांकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने ऐसे किसी भी आरोपों से इनकार किया है। उनका कहना है कि सरकार प्रत्येक मेडिकल छात्र पर करोड़ों रूपये खर्च करती है इसलिए सरकार चाहती है कि कोर्स पूरा करने के बाद वे राज्य के ही स्वास्थ्य सेवा में रहे और बाहर ना जाए। इसलिए उन्हें 'बंधन' में रखने के लिए यह प्रावधान लाया गया है।

क्या सरकार सभी पासआउट मेडिकल छात्रों को रोजगार दे पाएगी ताकि वे यह बॉण्ड चुका पाए, इसका जवाब जानने के लिए गांव कनेक्शन ने हरियाणा राज्य चिकित्साशिक्षा एवं अनुसंधान विभाग के अपर मुख्य सचिव आलोक निगम से संपर्क किया। उन्होंने कहा कि वह मीडिया के किसी भी सवाल का जवाब देने के लिए अधिकृत नहीं हैं, इसलिए चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान विभाग के निदेशक से संपर्क किया जाए।

जब गांव कनेक्शन ने निदेशक अमनीत कुमार को संपर्क किया तो उनका कोई भी जवाब नहीं मिल सका। गांव कनेक्शन ने उन्हें इस संबंध में सवालों की एक सूची ईमेल की है, जिसका जवाब अभी तक नहीं मिल पाया है।

इसके अलावा हमने बीजेपी के राज्य प्रवक्ता डॉ. सत्यव्रत शास्त्री से भी संपर्क किया, उन्होंने दीवाली की व्यवस्तताओं का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने अभी इस नई नीति को पढ़ा नहीं है। इसे पढ़कर और संबंधित मंत्री से विमर्श कर ही वह इससे जुड़े किसी भी सवालों का जवाब दे पाएंगे। सरकार या प्रशासन का कोई भी जवाब आने पर इस खबर को अपडेट किया जाएगा।

ये भी पढ़ें- चार लाख रूपये सालाना फीस के खिलाफ उत्तराखंड के मेडिकल छात्रों का विरोध

कोरोना संकट में दिहाड़ी से भी कम स्टाइपेंड पर काम कर रहे हैं उत्तर प्रदेश और राजस्थान के मेडिकल इंटर्न


     

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.