लॉकडाउन में जेवर, फोन, जमीन तक बेचा, क़र्ज़ लिया, लेकिन सरकार के कामों से संतुष्ट हैं 74% ग्रामीण: गांव कनेक्शन सर्वे

लॉकडाउन के बाद से लेकर अब तक आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से सबसे ज्यादा गांव की जनता ही प्रभावित है, जहां तीन में से दो भारतीय रहते हैं। हालांकि मेनस्ट्रीम मीडिया में ग्रामीण भारत पर कोरोना संकट के प्रभाव की चर्चा अभी तक काफी कम हुई है।

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कोरोना महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए हुए लॉकडाउन से परेशान लोगों को मोबाइल और ज्वैलरी और जमीन तक बेचनी पड़ी, पड़ोसियों और दोस्तों से उधार और कर्ज़ लिया, बावजूद इसके 74% ग्रामीण, कोरोना महामारी से लड़ने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से संतुष्ट दिखें।

गांव कनेक्शन द्वारा कोविड-19 लॉकडाउन के बाद किए गए ग्रामीण भारत के पहले राष्ट्रव्यापी सर्वे में ऐसी कई रोचक बातें निकल कर सामने आईं हैं। 78 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वह इस दौरान अपने राज्य सरकारों द्वारा उठाए गए कदमों से भी संतुष्ट हैं।

यह सर्वे भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया प्लेटफॉर्म गांव कनेक्शन के डेटा और इनसाइट्स विंग 'गांव कनेक्शन इनसाइट्स' द्वारा देश के 23 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 179 जिलों में किया गया, जिसमें 25,300 उत्तरदाता शामिल हुए। 30 मई से 16 जुलाई 2020 के बीच सोशल डिस्टेंसिंग के साथ लोगों का फेस-टू-फेस इंटरव्यू कर उनकी राय जानी गई। इस सर्वे का डिजाइन और डाटा विश्लेषण नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी के लोकनीति-सीएसडीएस टीम द्वारा किया गया।

कोरोना संकट का ग्रामीण भारत पर क्या प्रभाव पड़ा, इस पर मेनस्ट्रीम मीडिया में काफी कम चर्चा हुई। इसे सिर्फ शहरों से गांवों की तरफ लौटते प्रवासी कामगारों और मजदूरों के सड़क पर आईं मुश्किलों तक सीमित कर दिया गया। जबकि लॉकडाउन के बाद से लेकर अब तक आर्थिक, सामाजिक और मानसिक रूप से सबसे ज्यादा गांव की जनता ही प्रभावित है, जहां तीन में से दो भारतीय रहते हैं। किसानों को फसल काटने में दिक्कत हुई, फसल कट गई तो मंडी पहुंचने में समस्या, फल और सब्जियों के किसान खासकर परेशान हुए। गांवों में शहरों से खाली हाथ लौटे कामगारों के घरों में आर्थिक समस्याएं खड़ी हो गईं, हजारों हजार घरों में खाने का संकट हो गया।

"द रूलर रिपोर्ट" नाम का यह सर्वे कोराना और लॉकडाउन के दौरान हुए ग्रामीण लोगों की जीविका, आय, सरकारों के प्रति धारणा और भविष्य की योजनाओं पर हुए प्रभाव का व्यापक राष्ट्रीय दस्तावेज तैयार करता है, जिसका पूरा विवरण हमारी वेबसाइट www.ruraldata.in पर उपलब्ध है।

लॉकडाउन के दौरान मोदी सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों का समर्थन करने वालों में से 37% ने कहा कि वे सरकार के काम से "बहुत संतुष्ट" हैं, जबकि 37% ने कहा कि वे केंद्र सरकार के कामों से "कुछ हद तक संतुष्ट" हैं। वहीं 14% से अधिक लोगों ने कहा कि वे मोदी सरकार से "कुछ हद तक असंतुष्ट" हैं, जबकि सिर्फ 7% ने कहा कि वे सरकार के उपायों से "बहुत ही अधिक असंतुष्ट" हैं।

गांव कनेक्शन के संस्थापक नीलेश मिश्रा ने इस सर्वे को जारी करते हुए कहा, "कोरोना संकट की इस घड़ी में ग्रामीण भारत, मेनस्ट्रीम राष्ट्रीय मीडिया के एजेंडे का हिस्सा नहीं रहा। यह सर्वे एक सशक्त दस्तावेज है जो बताता है कि ग्रामीण भारत अब तक इस संकट से कैसे निपटा और आगे उसकी क्या योजनाएं है? जैसे- क्या वे शहरों की ओर फिर लौटेंगे? क्या वे अपने खर्च करने के तरीकों में बदलाव करेंगे, ताकि संकट की स्थिति में वे तैयार रहें और फिर से उन्हें आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़े।"

सीएसडीएस, नई दिल्ली के प्रोफेसर संजय कुमार ने कहा, "सर्वे की विविधता, व्यापकता और इसके सैंपल साइज के आधार पर मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं कि यह अपनी तरह का पहला व्यापक सर्वे है, जो ग्रामीण भारत पर लॉकडाउन से पड़े प्रभाव पर फोकस करता है। लॉकडाउन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और अन्य सरकारी नियमों का पालन करते हुए यह सर्वे गांव कनेक्शन के द्वारा आयोजित किया गया, जिसमें उत्तरदाताओं का फेस टू फेस इंटरव्यू करते हुए डाटा इकट्ठा किए गए।"

कोविड-19 ने भारत को कई अन्य देशों की तुलना में बाद में प्रभावित किया लेकिन अब देश में 21 लाख से अधिक मामले हो गए हैं, जबकि 43,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। जिस तरह से लॉकडाउन लगने के बाद प्रवासी कामगार और मजदूर अपने गांवों की तरफ लौटे उसे 1947 के भारत के विभाजन के बाद सबसे बड़ा पलायन कहा गया। लाखों लोगों ने उन महानगरों को छोड़ दिया, जहां वे काम कर रहे थे। बहुत ही कठिनाइयों का सामना करने के बाद वे किसी तरह अपने घर-गांवों को लौट सकें।

सर्वे के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान 23 फीसदी मजदूर ऐसे रहें, जिन्होंने पैदल ही शहर से अपने घर-गांव की यात्रा की। हालांकि अब 33 फीसदी प्रवासी मजदूरों ने कहा कि वे रोजगार के लिए फिर से शहरों की तरफ वापस जाना चाहते हैं।


इस सर्वे के कुछ मुख्य निष्कर्ष नीचे दिए गए हैं-

--लॉकडाउन के दौरान लगभग 23 फीसदी ग्रामीणों को उधार लेना पड़ा, जबकि 8 फीसदी लोगों को अपने कीमती सामान जैसे- घड़ी, मोबाइल आदि बेचने पड़े, जबकि 7 फीसदी लोगों को अपने गहने गिरवीं रखने पड़े। 5 फीसदी लोग ऐसे भी थे, जिन्हें लॉकडाउन की दिक्कतों के कारण अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ी या उसे बेचना पड़ा।


- गांव कनेक्शन के सर्वे में शामिल लोगों में सबसे ज्यादा संख्या किसानों की थी, सर्वे में शामिल आधे से अधिक किसान लॉकडाउन के दौरान अपने फसल को सही समय पर काटने में सफल तो हुए लेकिन सिर्फ एक चौथाई किसानों को ही अपनी फसल का सही दाम मिल पाया।


-वो लोग जिनके पास राशन कार्ड था, उनमे से 71 फीसदी लोगों को लॉकडाउन के दौरान सरकार द्वारा निर्धारित राशन (गेंहू या चावल) मिला। सर्वे के दौरान 17 फीसदी लोग ऐसे मिले जिनके पास राशन कार्ड नहीं था और ऐसे राशन कार्ड विहीन लोगों में से सिर्फ 27 फीसदी लोगों को ही राशन मिल सका। जबकि सरकार ने सभी के लिए निःशुल्क राशन की घोषणा की थी।

--लॉकडाउन से सबसे अधिक प्रभावित कुशल कामगार और अकुशल मजदूर रहें। 60 फीसदी कुशल कारीगरों का काम पूरी तरह ठप रहा, जबकि 64 फीसदी अकुशल मजदूर भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए और उनका काम पूरी तरह से ठप हो गया।


-सर्वे के दौरान हर आठ में से एक ग्रामीण परिवार ने कहा कि लॉकडाउन में आर्थिक तंगी के कारण उन्हें कई बार पूरे दिन भूखा रहना पड़ा।

-सिर्फ 20 प्रतिशत ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के तहत काम मिला। छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक 70 फीसदी लोगों को मनरेगा के तहत काम मिला, जबकि 65% और 59% के साथ उत्तराखंड और राजस्थान तीसरे स्थान पर रहें। वहीं गुजरात और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर-लद्दाख का प्रदर्शन इस मामले में सबसे खराब रहा और वहां क्रमशः सिर्फ 2% और 4% मजदूरों को ही मनरेगा के तहत काम मिल सका।


-68 फीसदी से अधिक ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें लॉकडाउन के दौरान आर्थिक दिक्कतों का गंभीर सामना करना पड़ा।

-ऐसे घर जिनमें गर्भवती महिलाएं थी, उनमें से 42 फीसदी लोगों ने कहा कि लॉकडाउन के कारण वे गर्भावस्था के दौरान होने वाली नियमित जांचों (चेकअप) को नहीं करा सकीं। पश्चिम बंगाल (29%) और ओडिशा (35%) इस सूची में सबसे निचले पायदान वाले राज्यों में रहे।

-डेयरी और पोल्ट्री उद्योग से जुड़े 56 फीसदी लोगों ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें अपने उत्पाद बेचने में बहुत कठिनाई हुई जबकि 35 फीसदी ने कहा कि उन्हें अपने उत्पाद का सही कीमत नहीं मिला।

-78 प्रतिशत लोगों ने कहा कि लॉकडाउन के कारण उनका काम (रोजगार) पूरी तरह से रुक गया या काफी हद तक प्रभावित हुआ। 44 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनका काम लॉकडाउन के दौरान पूरी तरह ठप हो गया।

-71 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान उनके परिवार की मासिक आय में गिरावट आई।

-सबसे अधिक गरीब प्रभावित हुए। 75 फीसदी गरीब परिवारों और 74 फीसदी निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों के मासिक आय में गिरावट दर्ज हुई।


-38 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान उन्हें जरूरी दवा या चिकित्सा मिलने में परेशानी हुई। पूर्वोत्तर राज्य इससे सबसे अधिक प्रभावित रहें। असम में 87% और अरुणाचल प्रदेश में 66% परिवारों ने कहा कि उन्हें जरूरी दवा या चिकित्सा उपलब्ध नहीं हुई।

- आंगनबाड़ी और सरकारी स्कूलों में पंजीकृत बच्चों वाले आधे से अधिक परिवारों (54%) को लॉकडाउन के दौरान सूखा राशन/भोजन प्राप्त हुआ। उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर-लद्दाख और छत्तीसगढ़ में यह प्रतिशत क्रमशः 90%, 89% और 86% रहा, जो कि अधिकतम है। जबकि बिहार और गुजरात में क्रमश: 32% और 25% के साथ सबसे नीचे के राज्य रहें।

-64 फीसदी लोगों ने कहा उन्हें या उनके घर में किसी शख्स को लॉकडाउन के दौरान सरकार द्वारा भेजी गई आर्थिक सहायता (जनधन 500 रुपए महीना, 2000 रुपए पीएम किसान योजना, 1000 रुपए श्रम कल्याण योजना या उज्ज्वला योजना के तहत एलपीजी गैस की सब्सिडी) बैंक खाते में सीधी पहुंची, हालांकि सबसे गरीब परिवारों को इन डीबीटी योजनाओं का उतना लाभ नहीं मिल पाया।

-40% लोगों ने कहा कि लॉकडाउन 'बहुत कठोर' था, जबकि 38% ने कहा कि यह 'पर्याप्त कठोर' था। वहीं 11% ने कहा कि लॉकडाउन को और कठोर होना चाहिए था। जबकि 4% लोग ऐसे भी थे जिन्होंने कहा कि लॉकडाउन बिल्कुल नहीं होना चाहिए था।

30 मई से 16 जुलाई 2020 के बीच हुए इस सर्वे में कुल 25,371 उत्तरदाताओं का साक्षात्कार किया गया। सभी उत्तरदाता अपने घरों के प्रमुख कमाने वाले थे, इस तरह यह सर्वे पुरुष प्रधान रहा और लगभग 80 प्रतिशत उत्तरदाता पुरूष ही रहें। हालांकि इसमें 20 फीसदी महिलाओं ने भी हिस्सा लिया।

जिन राज्यों में सर्वे किया गया उनमें राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, ओडिशा, केरल, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ हैं। वहीं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर- लद्दाख और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह भी इस सर्वे में शामिल होने वाले राज्य रहें।

सर्वे के अनुसार, ऐसा लगता है कि लॉकडाउन से केंद्र के मोदी सरकार या राज्यों सरकारों के बारे में ग्रामीण नागरिकों की धारणा कुछ अधिक नहीं बदली। उदाहरण के रूप में, दस में से सात उत्तरदाताओं (73 प्रतिशत) ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान मोदी सरकार का प्रवासी मजदूरों के प्रति रवैया बहुत अच्छा रहा। (29 प्रतिशत ने कहा- बहुत अच्छा और 44 प्रतिशत ने कहा अच्छा रहा।)

सिर्फ 23 फीसदी या हर चार में से एक ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान सरकार की व्यवस्था खराब थी, जिसमें से 9 फीसदी ने बहुत खराब और 14 फीसदी ने खराब कहा।


इसी तरह राज्य सरकारों के बारे में लोगों की धारणा काफी सकारात्मक रही। 76 प्रतिशत लोगों ने कहा कि राज्य सरकार का प्रवासियों के प्रति उनका रवैये काफी अच्छा रहा, जबकि केवल 20 प्रतिशत ने इसे बुरा बताया।

दिलचस्प बात यह है कि भाजपा शासित राज्यों में लोग मोदी सरकार और राज्य सरकारों द्वारा किए गए कार्यों से कम प्रभावित दिखें। साथ ही, भाजपा शासित राज्यों में लोग, कांग्रेस शासित राज्यों की तुलना में प्रवासियों के प्रति मोदी और राज्य सरकार के रवैये से थोड़ा कम खुश दिखें। हालांकि यह अंतर भी बहुत कम था।

सर्वे में ग्रामीणों से उनकी भविष्य की योजनाओं, ट्रैक्टर फार्म मशीनरी, घर के उपकरण आदि खरीदने पर सवाल किया गया। इस दौरान पाया गया कि केवल नौ प्रतिशत अमीर ग्रामीण परिवार, जिनके पास कार नहीं है, आगे आने वाले महीनों में कार खरीदने की सोच रहे हैं। इसी तरह केवल 14 प्रतिशत परिवार, जिनके पास बाइक नहीं है, अगले पांच से छह महीने में बाइक खरीदने की योजना बना रहे हैं।

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