झारखंडः गांव-गांव चल रही किसानी की पाठशाला, महिला किसान हो रहीं जागरूक

झारखंडः गांव-गांव चल रही किसानी की पाठशाला, महिला किसान हो रहीं जागरूक

जोहार परियोजना के अंतर्गत झारखंड के 17 जिले के 68 ब्लॉक में 2100 से ज्यादा उत्पादक समूह चल रहे हैं। इन सभी समूहों में इनके ही गाँव में सखी मंडल की किसी एक महिला के घर में महीने की किसी एक निर्धारित तारीख को किसान पाठशाला का आयोजन होता है।

Neetu Singh

Neetu Singh   4 July 2019 11:12 AM GMT

पलामू (झारखंड)। गांव-गांव किसान पाठशाला के जरिए सुदूर क्षेत्रों की महिला किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। हर महीने चलने वाली इस पाठशाला में पशुपालन, उन्नत खेती, वनोपज और मत्स्य पालन पर चर्चा होती है।

जोहार परियोजना के अंतर्गत 17 जिले के 68 ब्लॉक में 2100 से ज्यादा उत्पादक समूह चल रहे हैं। इन सभी समूहों में इनके ही गाँव में सखी मंडल की किसी एक महिला के घर में महीने की किसी एक निर्धारित तारीख को किसान पाठशाला का आयोजन होता है। जिसमें उत्पादक समूह जो काम कर रहा होता है उस विषय पर क्रमवार चर्चा होती है। ये चर्चा समूह की कोई महिला जो आजीविका कृषक मित्र हो या पशु सखी हो या फिर वनोपज मित्र और मत्स्य मित्र हो जिन्होंने इस परियोजना के जरिये प्रशिक्षण लिया हो वही ट्रेनिंग देती हैं। कई बार परियोजना की तरफ से प्रशिक्षक भी उपलब्ध कराए जाते हैं।

पलामू जिला मुख्यालय से लगभग 31 किलोमीटर दूर छतरपुर प्रखंड के खेड़ी गाँव में हर महीने की 28-29 तारीख को दो किसान पाठशाला चलती हैं। हर पाठशाला में 28-30 महिलाएं शामिल रहती हैं। इस गाँव में वर्ष 2018 में सूरजमुखी आजीविका उत्पादक समूह का गठन हुआ जिसमें 58 सदस्य हैं। उत्पादक समूह की अध्यक्ष संगीता देवी (33 वर्ष) जो पशु सखी भी हैं। वो बताती हैं, "इस उत्पादक समूह की महिलाएं पशुपालन और वनोपज करती हैं। इस गाँव में बकरों का बधियाकरण कभी नहीं हुआ था। उत्पादक समूह बनने के बाद हमें पता चला बधियाकरण कराना कितना जरूरी है।"


संगीता वर्ष 2015 में पशु सखी के रूप में चुनी गईं। लगभग पांच साल से ये अपने आसपसपास की बकरियों की इलाज कर रहीं हैं। अब ये उत्पादक समूह की अध्यक्ष और किसान पाठशाला की प्रशिक्षक हैं। ये बताती हैं, "उत्पादक समूह में 58 सदस्य हैं इसलिए दो टोला में 28-30 महिलाओं को एक पाठशाला में प्रशिक्षण दिया जाता है। हर पाठशाला में एक-एक विषय पर चर्चा होती है साथ ही डेमो करके भी दिखाते हैं।" संगीता जब 2015 में सखी मंडल से जुड़ी थीं तब ये सामान्य महिलाओं की तरह मेहनत मजदूरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करती थीं।

शुरुआत में इन्होंने 1000 रुपए की एक बकरी और 150 रुपए की एक मुर्गी खरीदी। एक मुर्गी और बकरी से अपनी आजीविका शुरू करने वाली संगीता का बकरी और मुर्गी पालन आज जीविका का मुख्य व्यवसाय बन गया है। इस उत्पादक समूह में जितनी भी महिलाएं जुड़ी हैं सभी के पास बकरियां हैं। उत्पादक समूह की सदस्य और किसान पाठशाला में भाग लेने वाली सुनीता देवी (29 वर्ष) ने बताया, "बकरियां तो हमारे यहाँ हमेशा से पाली जाती हैं लेकिन कभी इतनी जानकारी नहीं थी कि बकरियों को कब क्या कितना खिलाना है। बधियाकरण तो कभी कराया ही नहीं इसलिए बकरा जैसे ही थोड़ा बड़ा होने लगता था बेच देते थे।"

सुनीता की तरह इस गाँव की हर महिला अपने हिसाब से बकरियां पालती थी जिसकी वजह से उन्हें ज्यादा मुनाफा नहीं हो पता था। अभी उत्पादक समूह बने एक साल ही हुआ है लेकिन फिर भी बकरियों की देखरेख में काफी सुधार हुआ है ये इन्हें देखकर आसानी से समझा जा सकता है। अब बकरियों का समय से टीकाकरण, डीवार्मिंग, बकरों का बधियाकरण, बकरियों का बीमा जैसे कई बातों पर ध्यान रखा जाता है। बकरे-बकरियों को रहने के लिए यहाँ बांस के शेड बनाये जा रहे हैं। अब यहाँ बकरे बकरियां तौलकर बेचे जाते हैं।


परिश्रम आजीविका सखी मंडल की सचिव चिंता देवी (42 वर्ष) बताती हैं, "पहले हम सोचते थे जो खाना खराब हो गया है वो बकरी को खिला दें। जब मन आता पानी पिलाते और चराने ले जाते कोई समय फिक्स नहीं था लेकिन अब समझ आया इनकी देखभाल भी इंसानों की तरह की जानी चाहिए तभी आप इनसे लाभ कमा सकते हैं।" वो आगे कहती हैं, "हमारे यहाँ पानी की बहुत समस्या है इसलिए खेती तो केवल बरसात में ही हो पाती हैं। यहाँ आसपास के कई गाँव छोटे पशुओं को ही पालते हैं क्योंकि इन्हें पालने पर ज्यादा खर्चा नहीं आता है। अगर हम पाठशाला के बताये अनुसार बकरी पालन करें तो ये हमारी आमदनी का एक मजबूत जरिया हो सकता है।"

उत्पादक समूह में जुड़ने के लिए ये चीजें हैं जरूरी

अगर आप उत्पादक समूह में जुड़ना चाहते हैं तो पहली शर्त यही है कि आपका सखी मंडल के सदस्य जरुर हों। दूसरा उत्पादक समूह जिस विषय पर फोकस होकर खेती कर रहा है उससे सम्बन्धित आप काम कर रहे हों जैसे अगर कोई उत्पादक समूह बकरी पालन प्रमुखता से करेगा तो अगर आप उत्पादक समूह में जुड़ रहे हैं तो आपके पास कमसेकम दो बकरियां जरुर होनी चाहिए। उसी प्रकास अगर आप खेती करने वाले उत्पादक समूह से जुड़ रहे हैं तो आप खेती करते हों। आपके पास थोड़ी बहुत अपनी जमीन हो।


इन तो शर्तों के आलावा उत्पादक समूह में जुड़ने के लिए 100 रूपये सदस्यता शुल्क और 1000 रूपये अंशदान जमा करना जरूरी है। छतरपुर ब्लॉक में 19 उत्पादक समूह हैं जिसमें 856 सदस्य हैं। यहाँ इन सबका एक पशुधन सेवा केंद्र भी है जिसमें दाना, दलिया, दवा हर उत्पादक समूह के लिए एक साथ मंगाई जाती है और यहाँ सबको आसानी से उपलब्ध हो जाती है।

किसान पाठशाला में इन विषयों पर होती है चर्चा

किसान पाठशाला में पशुपालकों की मनाग के हिसाब से उस हर विषय पर चर्चा होती है जिसकी वो जानकारी चाहते हैं इसके आलावा हर महीने मौसम के अनुसार पशुओं की कैसे देखरेख हो उसपर चर्चा होती है। छतरपुर के आसपास कई गांव की एक मुख्या समस्या थी कि यहां कभी बकरों का बधियाकरण नहीं किया गया। किसान पाठशाला में सबसे पहली कक्षा में बकरों के बधियाकरण पर ही बात हुई।


पशु सखी संगीता ने बताया, "हमने एक बकरे का बधियाकरण किया और एक का नहीं किया दोनों के बजन में जब तुलना की गयी तो बधियाकरण वाले बकरे में डेढ़ किलो की बढ़ोत्तरी एक महीने में देखी गयी। बधियाकरण वाला बकरा उस बकरे से ज्यादा फुर्तीला पाया गया। अब इस गाँव में बकरे के जन्म के 15 दिन से लेकर एक सवा महीने तक बकरे का बधियाकरण करा देते हैं।"

बच्चे के जन्म के डेढ़ महीने के अन्दर बकरी से अलग कर दें

जब भी कोई बकरी मेमने को जन्म दे तो उसके जन्म के डेढ़ महीने के बार उसे बकरी से अलग कर दें। जो बांस का शेड बनाया जा रहा है उसमें मेमने, गर्भवती बकरी के अलग रहने का इंतजाम किया गया है। क्योंकि अगर बकरी को मेमने से अलग नहीं किया गया तो मेमना लगातार बकरी का दूध पीता रहेगा जिससे बकरी का ग्रोथ रुक जाएगा।

बकरी को हर तीन महीने पर कृमिनाशक दवा देना जरूरी है जिससे पेट में कीड़ा नहीं होता है और उन्हें किसी तरह की कोई बीमारी नहीं होती है। साल में एक बार ठंड के मौसम में टीकाकरण किया जाता है जिससे संक्रामक बीमारियाँ होनी की संभावना नहीं होती है।

बकरी के गर्भधारण का सही समय ये होता है

बकरी के मेमने के जन्म के एक से डेढ़ महीने बाद ही बकरी को बकरे के पास ले जाना चाहिए। बकरी हीट करने के 24 घंटे बाद की उसे बकरे के पास ले जाएँ। बकरी 48 घंटे तक हीट रहती है। जब बकरी गर्भवती हो तो उसे गेंहूँ, मक्का का दर्रा देना चाहिए। अजोला और मुनगा (सहजन) भी बकरी को देना जरूरी है।




अजोला को दो पानी से धोने के बाद नमक और चोकर मिलाकर 200 ग्राम अजोला डालकर बकरी को खिलाएं। बकरी को जब भी पानी पिलायें उसमें माढ, चुटकी भर सत्तू और नमक डालकर पिलायें जिससे बकरियों को पानी स्वादिष्ट लगे और ज्यादा मात्रा में पीना शुरू करें।

बकरी का इंश्योरेंस कराना जरूरी

बकरी पालक को किसी तरह का कोई नुकसान न हो इसलिए बकरी का इंश्योरेंस करना जरूरी है। ये इंश्योरेंस तब सम्भव है जब बकरी एक साल से उपर की हो जाए। एक बकरी का तीन साल तक का इंश्योरेंस करा सकते हैं।

इंश्योरेंस के बाद कितनी मुआवजा राशि चाहिए उसके लिए उतने रूपये का ही इंश्योरेंस कराना जरूरी है। अगर एक हजार की मुआवजा राशि चहिये तो 124 का इंश्योरेंस कराना पड़ेगा। दो हजार के लिए 248 तीन हजार के लिए 372 रुपए का खर्चा आता है। उत्पादक समूह से जुड़ने वाली महिलाएं अब अपनी बकरियों का इंश्योरेंस कराने लगी हैं।

यह भी पढें- झारखंड के गांवों में हो रहा बकरियों के नस्ल सुधार का काम

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