निर्माण मजदूरों को कैसे मिले सरकारी योजनाओं और सामजिक सुरक्षा का लाभ?

निर्माण मजदूरों का काम हमेशा से ही जोखिम भरा होता है। यह जानते हुए भी निर्माण श्रमिकों को शायद ही कभी सामाजिक सुरक्षा या सरकारी योजनाओं का लाभ मिल पाता है। उनके लिए एक सुनियोजित योजना ही यह सुनिश्चित कर सकती है कि इन श्रमिकों को वो लाभ मिलें जिनके वे असल में हकदार हैं।

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निर्माण मजदूरों को कैसे मिले सरकारी योजनाओं और सामजिक सुरक्षा का लाभ?

गायत्री दिवेचा और पूजा लपासिया

बसंत लाल चौधरी ने 2016 में गांव मध्य प्रदेश के अपने गांव से पलायन किया था। उस गांव में लगभग 1,200 लोग रहते हैं जबकि जम्मू और कश्मीर के जिस शहर में वह गए, वह 90,000 लोगों का शहर है। उन्होंने आखिरी बार कोरोना से पहले एक निर्माण श्रमिक के रूप में काम किया था, लेकिन लॉकडाउन ने उनसे उनका रोजगार छीन लिया।

बसंत कहते हैं, "मैं 350 रुपये की दैनिक मजदूरी कमाता था। यह मेरी आय का एकमात्र स्रोत था।" कोरोना महामारी के इस समय में बसंत और उनके साथ काम करने वाले अन्य लोगों के लिए दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल हो रहा है। उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि मैं यहां कभी भी काम कर पाऊंगा या नहीं।"

भारत में 50 मिलियन से अधिक निर्माण श्रमिक हैं, जो हमारे घरों और शहरों का निर्माण करते हैं। बसंत लाल चौधरी की तरह एक औसत निर्माण श्रमिक लगभग 350 रुपये प्रति दिन कमाता है, जिसमें कोई अन्य भत्ता या बीमा नहीं होता है। कई श्रमिक अपने परिवार के अकेले कमाने वाले होते हैं। श्रमिक जिस तरह की उच्च जोखिम वाले काम करते हैं, उन्हें शायद ही कभी उसके लिए कोई सामाजिक सुरक्षा दिया जाता हो।

निर्माण उद्योग में लगभग 87.4 प्रतिशत श्रमिकों को आकस्मिक श्रम के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और यह भारत में अनौपचारिक कार्यबल में सबसे अधिक है। 1996 में भारतीय संसद ने दो कानून बनाए थे, जिनमें इस कार्यबल को संरक्षण और गरिमा प्रदान करने की क्षमता थी।

ये दो कानून थे- द बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स (रेग्युलेशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट एंड कंडीशन ऑफ सर्विस) अधिनियम, 1996 (BOCW Act या BOCWA) और भवन व अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण उपकर अधिनियम।

भारत में 50 मिलियन से अधिक निर्माण श्रमिक हमारे घरों और शहरों का निर्माण करते हैं। फोटो: पिक्साबे

ये कानून आदेश देते हैं कि निर्माण कंपनियां, निर्माण लागत पर न्यूनतम एक प्रतिशत उपकर (सेस) का भुगतान करें। यह पैसा फिर बीओसीडब्ल्यू (BOCW) अधिनियम के तहत पंजीकृत निर्माण श्रमिकों के कल्याण के लिए आवंटित किया जाता है। यह इन श्रमिकों और उनके परिवार वालों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इसमें पेंशन, शिक्षा, मातृत्व सहायता, ऋण, दुर्घटना बीमा और चिकित्सा व्यय शामिल हैं।

इसके बावजूद फरवरी, 2019 की शुरुआत में श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि 5 करोड़ निर्माण श्रमिकों में से केवल 3.5 करोड़ ही बीओसीडब्ल्यू (BOCW) अधिनियम के तहत पंजीकृत थे। यहां तक कि सक्रिय पंजीकरण की संख्या की कोई अप-टू-डेट जानकारी भी उपलब्ध नहीं है।

उदाहरण के लिए दिल्ली में 5,39,421 श्रमिक पंजीकृत हैं लेकिन राज्य की वेबसाइट के अनुसार केवल 1,28,394 सक्रिय हैं। इसमें यह भी स्पष्ट नहीं है कि इन पंजीकृत श्रमिकों में से कितने स्थानीय हैं और कितने प्रवासी हैं क्योंकि किसी भी सिस्टम में यह बात दर्ज नही है।

उपकर अधिनियम की स्थापना के बाद से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने निर्माण कंपनियों से लगभग 52,000 करोड़ रुपये इकट्ठा किए हैं। हालांकि 2019 तक निर्माण श्रमिकों के कल्याण पर 40 प्रतिशत से भी कम खर्च किया गया था। राज्यों के बीच अंतर प्रकार है:

• 37 में से 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने एकत्रित धन का 30 प्रतिशत से कम खर्च किया है।

• दूसरी ओर केरल एकमात्र ऐसा राज्य था जिसने एकत्रित धन (121 प्रतिशत) से अधिक खर्च किया था।

• कुछ राज्य जिन्होंने उपकर की उच्चतम राशि एकत्र कर ली थी, उन्होंने निर्माण श्रमिकों के कल्याण पर सबसे कम खर्च किया है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र ने एकत्र किए गए 7,400 करोड़ रुपये का केवल पांच प्रतिशत ही खर्च किया। इसी तरह दिल्ली ने 2,190 करोड़ रुपये एकत्र किए लेकिन इसमें से केवल नौ प्रतिशत ही खर्च किए।

कोरोना और उसके बाद के लॉकडाउन के बाद सरकार ने राज्यों को निर्माण श्रमिकों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए अपने बजट का उपयोग करने के लिए कहा। यह एक स्वागत योग्य कदम था। यह न केवल मजदूरों के संकट को कम करेगा बल्कि पिछले 24 वर्षों में पहली बार हम इस फंड से खर्च करने में तेजी देखेंगे।

हालांकि इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए श्रमिकों को बीओसीडब्ल्यू (BOCW) अधिनियम के तहत पंजीकृत होना आवश्यक है। प्रवासी आबादी के बीच कम पंजीकरण होने की वजह से निर्माण कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा इससे बाहर है।

निर्माण श्रमिक बसंत लाल कहते हैं, "मैं कहीं भी पंजीकृत नहीं हूं। मुझे इसके बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है। मैं बस अपना श्रम कार्य करता हूं।" इस वजह से बसंत और उनके जैसे लाखों श्रमिक न केवल ऐसे राहत पैकेजों के लाभ से वंचित रह जाते हैं, बल्कि ऐसे कई अन्य कल्याणकारी लाभ जिसके वह और उनका परिवार हकदार हैं जानकारी न होने की वजह से उनसे छूट जाता है।

बीओसीडब्ल्यू अधिनियम के तहत पंजीकरण करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सरकार से किसी भी समर्थन का लाभ उठाने का पहला कदम है। लेकिन पंजीकरण इतने कम क्यों हैं और इसे बदलने के लिए क्या किया जा सकता है? हमें इसे तोड़ने की जरूरत है।

भारत में 50 मिलियन से अधिक निर्माण श्रमिक हमारे घरों और शहरों का निर्माण करते हैं.फोटो: गोदरेज इंडस्ट्रीज लिमिटेड

बीओसीडब्ल्यू (BOCWA) पंजीकरण को बढ़ावा देने के लिए क्या करने की आवश्यकता है?

1. सिंगल विंडो सिस्टम को अपनाना

वर्तमान प्रणाली किसी भी पोर्टेबिलिटी विकल्प के बिना एक राज्य में पंजीकरण और समर्थन की अनुमति देती है। यह उन प्रवासी मजदूरों की वास्तविकता के साथ मेल नहीं खाता है जो अक्सर एक वर्ष में कई राज्यों में काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली में 2015 के बाद से पंजीकृत श्रमिकों में 87 प्रतिशत की बड़ी गिरावट देखी गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जब लोग काम के लिए कहीं और चले गए तो उन्होंने सिस्टम छोड़ दिया।

गोविंद और उनके परिवार को ही ले लीजिए। निर्माण मजदूर के रूप में जीवन यापन करने के लिए वह झांसी से जोधपुर आ गए। वह झांसी में बीओसीडब्ल्यू अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं। मगर चूंकि गोविंद अब झांसी में नहीं हैं इसलिए उनका पंजीकरण निष्क्रिय साबित हो जाएगा और उन्हें इसका कोई लाभ नहीं मिल पाएगा। वह कहते हैं, "हमें अभी तक उस पंजीकरण का कोई लाभ नहीं मिला है। हम इस बात से भी अवगत नहीं हैं कि यह लाभ क्या है और इसका लाभ कैसे उठाया जाए?"

इस वास्तविकता को देखते हुए राज्यों के पास ऐसे तंत्र होने चाहिए जो अनौपचारिक कार्यबल के निर्बाध पोर्टेबिलिटी को सुनिश्चित करें। उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा एक आदर्श कल्याण योजना की रूपरेखा तैयार की गई है। इसके तहत प्रत्येक कार्यकर्ता को एक विशिष्ट पहचान कोड आवंटित किया जाएगा जिसका उपयोग देश भर में किया जा सकता है। जैसा कि जन साहस ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि राज्यों को नए मॉडल के क्रियान्वयन में तेजी लानी चाहिए जो सिंगल विंडो में पंजीकरण और लाभों को सुव्यवस्थित करने में मदद करेगा।

2. सरल पंजीकरण

वर्तमान में श्रमिकों को बीओसीडब्ल्यू अधिनियम के तहत पंजीकरण करने के लिए एक विस्तृत फॉर्म भरना होता है। उदाहरण के लिए दिल्ली में चार पेज के फॉर्म को 12 पेज के फॉर्म में बदल दिया गया है। श्रमिकों के लिए सभी आवश्यक विवरणों के साथ फॉर्म भरना एक बड़ा टास्क है क्योंकि आमतौर पर वह कम पढ़े लिखे होते हैं और डिजिटल सिस्टम तक उनकी पहुंच कम होती है।

वर्तमान में श्रमिकों के पंजीकरण का भार उन्हीं पर है। यह और फलदायी होगा अगर इसे ठेकेदारों या डेवलपर्स को दे दिया जाए। मतलब कि मालिक से पंजीकरण करवाने में श्रमिक को आसानी होगी। मालिक के पास ऐसा करने के लिए पर्याप्त संसाधन होते हैं क्योंकि उनके पास पहले से ही श्रमिक का पैन, आधार और बैंक खाता विवरण जैसे विवरण रहते हैं। इसके बाद मालिक आधिकारिक अनुबंधों और अधिकारियों को पंजीकरण के माध्यम से इन रोजगार संबंधों को औपचारिक रूप दे सकते हैं।

50 मिलियन निर्माण श्रमिकों में से लगभग 35 मिलियन केवल बीओसीडब्ल्यू अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं. फोटो: पिक्साबे

3. रोजगार प्रमाणन में छूट

इस अधिनियम के तहत श्रमिकों को पिछले 12 महीनों में रोजगार के प्रमाण के 90 दिनों का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होता है। उद्योग में श्रमिक टर्नओवर की उच्च दर है। उदाहरण के लिए गोदरेज प्रॉपर्टीज लिमिटेड निर्माण स्थलों परश्रमिक आमतौर पर लगभग 45 दिनों तक साथ रहते हैं।

छोटे निर्माण स्थलों पर यह संख्या काफी कम है। चूंकि श्रमिक एक जगह नहीं टिकते हैं इसलिए उन्हें खासकर उन ठेकेदारों से रोजगार के 90 दिन का प्रमाण मिलना मुश्किल हो जाता है जो उन्हें लघु परियोजनाओं के लिए नियुक्त करते हैं। इसलिए इस नियम को काम के प्रमाणन को 90 गैर-निरंतर कार्य दिवसों में छूट देने पर विचार करना चाहिए।

4. पंजीकरण बढ़ाने के लिए भागीदारी

बड़ी संख्या में निर्माण श्रमिक दैनिक मजदूरी कमाने वालों के रूप में नाकों (लेबर चौक) पर काम करते हैं। इन लोगों तक पहुंचना और उन्हें पंजीकृत करना जरूरी है। इसके लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं।

राज्य बीओसीडब्ल्यू अधिनियम बोर्ड गैर-लाभकारी संगठनों के साथ भागीदारी कर सकते हैं जो प्रवासी श्रमिकों के साथ काम करती है ताकि दैनिक मजदूरी करने वाले श्रमिकों को सुविधा केंद्रों में प्रभावी ढंग से पंजीकृत करने का काम किया जा सके।

इसके अलावा श्रमिकों के लिए राज्य परिवहन बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन और नाकों पर सूचना काउंटरों को स्थापित करना चाहिए ताकि उचित जानकारी प्राप्त की जा सके। एक केंद्रीय कार्यकर्ता का हेल्पलाइन नंबर भी उपयोगी साबित हो सकता है। उदाहरण के लिए दिल्ली सरकार सिस्टम में अधिक श्रमिकों को रजिस्टर करने के लिए लॉकडाउन के दौरान पंजीकरण करने का अभियान चला रही है। महाराष्ट्र भी इसी तरह का काम कर रहा है और इसे अन्य राज्यों द्वारा जल्दी ही अपनाया जा सकता है। हालांकिइस अभियान को बढ़ावा देने के लिए डेवलपर्स और निर्माण उद्योग का समर्थन जरूरी है।

बीओसीडब्ल्यू अधिनियम बोर्डों के लिए विभिन्न माध्यमों से पंजीकरण की निगरानी के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी का पता लगाना सार्थक होगा. फोटो: पिक्साबे

कॉर्पोरेट्स, आपूर्तिकर्ताओं, विक्रेताओं और साझेदारों के साथ मिलकर पंजीकरण और लाइसेंस को औपचारिक रूप देने, कर्मचारी सुरक्षा के लिए मानक निर्धारित करने और सार्वजनिक योजनाओं के लिंकेज को सामाजिक बनाने पर काम कर सकता है ताकि सामाजिक सुरक्षा कवच को और व्यापक बनाया जा सके। हितधारकों को प्रोत्साहित या दंडित किया जा सकता है और प्रगति की निगरानी की जा सकती है।

साथ ही BOCW एक्ट बोर्डों के लिए विभिन्न माध्यमों (ऑनलाइन, नागरिक समाज संगठनों, डेवलपर्स, बिल्डरों, ठेकेदारों) के द्वारा पंजीकरण की निगरानी के लिए एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी का पता लगाना सार्थक होगा।

हमें अपनी वर्तमान प्रणाली के गैप को उजागर करने के लिए किसी महामारी का इंतजार नहीं करना होगा। एक सुनियोजित संरचना यह सुनिश्चित करेगी कि श्रमिकों को वो लाभ मिलें जिनके वे हकदार हैं, चाहे बाहर परिस्थिति कुछ भी हो।

गायत्री दिवेचा गोदरेज इंडस्ट्रीज और एसोसिएट कंपनी में कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) को संभालती हैं। पूजा लापसिया गोदरेज इंडस्ट्रीज एंड एसोसिएट कंपनी में कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी समारोह के लिए संचार का नेतृत्व करती हैं।

इस स्टोरी को भारत विकास समीक्षा (Indian Development Review) से लिया गया है। मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे आर्टिकल को आप यहां क्लिक कर के पढ़ सकते हैं।

ये भी पढ़ें- श्रम कानूनों में बदलाव का विश्लेषण क्यों जरूरी है?

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