क्या उपज का मूल्य डेढ़ गुना करने से किसानों की समस्याएं ख़त्म हो जाएंगी ?

vineet bajpaivineet bajpai   3 Feb 2018 2:17 PM GMT

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क्या उपज का मूल्य डेढ़ गुना करने से किसानों की समस्याएं ख़त्म हो जाएंगी ?उपज का मूल्य डेढ़ गुना करने से बढ़ेंगी किसानों की समस्याएं।

वित्त मंत्री अरुण जेटली के पेश किए गए यूनियन बजट के बाद किसानों की उपज का डेढ़ गुना मूल्य देने के मुद्दे पर चर्चा फिर से शुरू हो गई है। अरुण जेटली ने किसानों को लागत का डेढ़ गुना मूल्य देने का जो वादा किया है वो पूरा होगा या नहीं मैं इसपर बात नहीं कर रहा हूं। मेरा मानना है कि अगर सरकार किसानों को उपज में लगने वाली कुल लागत में 50 प्रतिशत मुनाफा जोड़कर मूल्य देना भी शुरू कर दे तो भी किसानों की समस्याएं समाप्त नहीं होंगी बल्कि और बढ़ेंगी ही।

ये बात पढ़कर आपके दिमाग में ये सवाल आना स्वाभाविक है कि उपज का डेढ़ गुना मूल्य देने से किसानों की समस्याएं घटने के बजाए बढ़ कैसे जाएंगी? तो आइये मैं आपको बताता हूं। अगर एक किसान की बात करें तो वो रोज जितने चीजों का उपयोग करता है उन सभी फसलों की खेती तो करता ही नहीं है। अब मान लीजिए जो किसान गेहूं उगाता है और एक कुंतल गेहूं उगाने में कुल 100 रुपए का खर्च आता है डेढ़ गुना मुल्य के हिसाब से उससे 150 रुपए में वो गेहूं खरीद लिया जाता है। अब जब जिसने 150 रुपए का एक कुंतल गेहूं खरीदा है वो उसी मुल्य पर तो आगे बेचेगा नहीं वो भी अपना लाभ लेगा और कम से कम 200 से 250 रुपए का एक कुंतल गेहूं बेचेगे, इस हिसाब से जो उस गेहूं का उपयोग करेगा उसे तो दो गुने से भी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी।

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अब जिसने गेहूं उगाया है उसे दाल तो खरीदनी ही पड़ेगी और उसपर भी यही सिस्टम लागू होगा। मतलब अगर उसे गेहूं पर 50 प्रतिशत मुनाफा मिल भी गया तो उसे दाल खरीदे के लिए दोगुने से भी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी और उसके लिए उसे और पैसों का इंतेजाम करना पड़ेगा। इस हिसाब से उसकी समस्याएं एक तरफ जहां थोड़ी कम होंगी वहीं दूसरी तरफ और ज्यादा बढ़ जाएंगी।

अब आप सोच रहे होंगे कि सरकार ने तो सभी फसलों पर एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय करने का फैसला किया है और वही खरीदेगी। तो इसके लिए मैं बता दूं कि सिर्फ छह फीसदी किसानों को ही एमएसपी का फयदा मिल पाता है बाकी के 94 प्रतिशत किसान बिना एमएसपी रेट के अपनी फसल को बेचते हैं। ये बात मध्य प्रदेश में किसानों को लेकर लड़ाई लड़ने वाले संगठन आम किसान यूनियन से कृषि विशेषज्ञ केदार सिरोही ने बताई हैं।

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इस लिए मूल्य डेढ़ गुना करने से बेहतर है कि किसान की लागत को कम किया जाए। क्योंकि जब लागत कम होगी तो मुनाफा खुद-ब-खुद बढ़ने लगेगा।

मैं पिछले वर्ष नवंबर महीने में मध्य प्रदेश की यात्रा पर गया था, जहां पर ऐसे कई किसानों से मिला था जिन्होंने खुद अपनी लागत को एकदम कम कर लिया है। वो बाज़ार से न तो ऊर्वरक खरीदते है और न ही कीटनाशक। गाय के गोबर से घर पर ही जैविक खाद बनाते हैं और उसके मूत्र से कीटनाशक। कीटनाशक बनाने के लिए वो जंगली पौधों की पत्तियों का प्रयोग करते हैं जिन्हें कोई जानवर खाना पसंद नहीं करते।

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सरकार अगर इसपर जोर दे, किसानों को इसके बारे में प्रशिक्षित करे और किसान भी बढ़चढ़ कर अपनाएं तो उनकी समस्याएं ज़रूर कम होंगी। हलांकि सरकार जैविक खेती पर जोर दे रही है लेकिन ज़मीनी स्तर पर अगर इसे और गति देने की ज़रूरत है।

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